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श्रीराम नगरी अयोध्या को है भरत का श्राप, विक्रमादित्य के बाद योगी आदित्यनाथ का नाम, पढ़िए अनसुनी कहानी

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अयोध्या हिंदुओं के प्राचीन व सात पवित्र तीर्थ (सप्तपुरियों) में एक है। इसको ईश्वर का नगर बताया गया है। अथर्ववेद में  इसे ईशपुरी कहा गया है। इसके वैभव की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन  (लगभग १४४ कि.मी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग ३६ कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी।  कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। वैवसत् मनु ने ही कोसल देश बसाया और अयोध्या को उसकी राजधानी बनाया । मत्स्यपुराण में लिखा है कि अपना राज अपने बेटे को सौंप कर मनु मलय पर्वत पर तपस्या करने चले गये। यहाँ हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर ब्रह्मा उनसे प्रसन्न होकर बोले, “वर मांग” ।  राजा उनको प्रणाम करके बोले, “मुझे एक ही वर मांगना है। प्रलयकाल में मुझे जड़ चेतन सब की रक्षा की शक्ति मिले” | इस पर ‘एवमस्तु’ कहकर ब्रह्मा अन्तर्धान हो गये और देवताओं ने फूल बरसाये थे। इसके अनन्तर मनु फिर अपनी राजधानी को लौट आये ।

मत्स्य अवतार की कहानी:-
एक दिन पितृ तर्पण करते हुये उनके हाथ से पानी के साथ एक नन्ही सी मछली गिर पड़ी। दयालु राजा ने उसे उठाकर घड़े में डाल दिया। परन्तु दिन में वह नन्ही सी मछली इतनी बड़ी हो गयी कि घड़े में न समायी। मनु ने उसे निकाल कर बड़े मटके में रख दिया परन्तु रात ही भर में वह कूप गंगा (सरयू) में भी नहीं समायी तो मनु को दर्शन देकर और प्रलय से बचने का उपाय बता अंतर्ध्यान हो गई। तभी से यह उथल-पुथल का प्रतीक भी बन गई।
अयोध्या एक लड़की/अधिष्ठात्री देवी का नाम:-
कालिदास लिखित रघुवंशम् पढ़िए तो पता चलेगा कि अयोध्या एक लड़की का नाम है। अयोध्या इस नगर की अधिष्ठात्री देवी भी कही जाती हैं। इस स्त्री अयोध्या के नाम पर ही अयोध्या नगर बसा। रघुवंशम् के अनुसार अयोध्या चिर यौवना थी। इंद्र का वरदान था कि वह कभी बूढ़ी नहीं होगी। सदा – सदियों-सदियों जवान रहेगी। आज फिर अयोध्या सब से ज़्यादा जवान होने की ओर अग्रसर है। तो योगी और मोदी के कारण अयोध्या का वैभव फिर लौट रहा है।
महाराज दिलीप विषयक विवरण:-
इक्ष्वाकु वंश के महाराज दिलीप को एक ऋषि ने बताया था कि जहां भी कहीं जाइएगा, वहां एक लड़की मिलेगी। वहीं अपना नगर बसा लीजिएगा। तो महाराज दिलीप एक दिन सरयू नदी में नहा कर निकले तो वह अयोध्या नाम की लड़की मिली। पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है। तो उस ने बताया अयोध्या। दिलीप ने पूछा कि कब से हो यहां ? तो वह लड़की बोली , लाखों साल से यहीं हूं। महाराज दिलीप हंसे और बोले, इतनी तो तुम्हारी उम्र भी नहीं है। तो अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया और कहा कि इसीलिए लिए वह चिरयौवना हूँ।  महाराज दिलीप ने फिर यहां अयोध्या नाम से नगर बसाया। तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस के बालकांड में लिखा भी है :-
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
महाराज दिलीप ने अयोध्या नगर बसाया और न्याय प्रिय शासन की स्थापना की। कालिदास ने राजा दिलीप के चरित्र का बहुत ही दिलचस्प वर्णन किया है। रघुवंशम में  बताया है कि वैवस्वत मनु के उज्जवल वंश में चंद्रमा जैसा सुख देने वाले दिलीप का जन्म हुआ। दिलीप को सारा सुख था पर उनकी पत्नी सुदक्षिणा के कोई संतान नहीं थी। फिर गुरु वशिष्ठ के यहां जाने, कामधेनु का श्राप प्रसंग, नंदिनी गाय और शेर आदि की कई दिलचस्प कथाओं का वर्णन मिलता है। फिर एक पुत्र का जन्म होता है जिस का नाम रखा जाता है- रघु।
रघु का पराक्रम:-
कालांतर में  रघु के पराक्रम के कारण इस वंश को रघुवंश नाम से जाना जाता है। फिर अज, दशरथ आदि के किस्से सभी जानते हैं। रघुकुल मर्यादा, सत्य, चरित्र, वचनपालन, त्याग, तप, ताप व शौर्य का प्रतीक रहा है।
राम की जल समाधि के बाद कुश ने बसाई अयोध्या;-
बीच में एक कथा फिर यह भी आती है कि राम ने जब भाइयों, पुत्रों के बीच सारा राज-पाट बांट कर जल समाधि ले ली तो बाद के समय में अयोध्या पूरी तरह उजड़ गई। तो अयोध्या नाम की वह लड़की पहुंची कुश के पास। माना जाता है कि वर्तंमान छत्तीसगढ़ में ही तब कुशावती  कुश का शासन था। तो अयोध्या अचानक कुश के शयनकक्ष में पहुंच गई। कुश उसे देखते ही घबरा गए। बोले, तुम कैसे यहां आ गई। किसी ने रोका नहीं तुम्हें ? फिर वह प्रहरी आदि को बुलाने लगे। अयोध्या ने कहा – घबराओ नहीं। किसी को मत बुलाओ। मैं अयोध्या  हूं। मेरे युवा होने पर मत जाओ। तुम्हारे सभी पुरखों को जानती हूं। सभी मेरी गोद में खेले हैं। फिर अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया और कहा कि राम के बाद अयोध्या नगर उजड़ कर अनाथ हो गया है। जंगल हो गया है। अयोध्या में अब मनुष्य नहीं, जानवरों का वास हो गया है। सो तुम चलो और अयोध्या को फिर से बसाओ। कुश ने कहा कि लेकिन पिता राम ने तो मुझे यहां का राजकाज सौंपा है। अयोध्या कैसे चल सकता हूं। फिर अयोध्या ने जब कुश को बहुत समझाया तो कुश मान गए। जब लौटे तो अयोध्या  उजड़ चुकी थी। अयोध्या को फिर से बसाया।  आज की अयोध्या कुश की बसाई हुई अयोध्या है। वैसे अयोध्या को पहला तीर्थ और धाम भी माना जाता है। कहा ही गया है :
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥

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अयोध्या में जगमग

विक्रमादित्य की बसाई  अयोध्या
भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या त्रेतायुग की मानी जाती है। हालांकि, मौजूदा अयोध्या राजा विक्रमादित्य की बसाई हुई है। कोई 29 पीढ़ी की कथा मिलती है रघुवंश की। जिस में अग्निवर्ण अंतिम राजा बताए गए हैं। अग्निवर्ण की कोई संतान नहीं हुई। सो रघुवंश की यहीं इति मान ली गई है।
अयोध्या कैसे बसी:-
अयोध्या मनु, दिलीप, कुश और विक्रमादित्य की बसाई कही जा चुकी है। अभी जो अयोध्या हमारे सामने उपस्थित है, कम से कम राम की बसाई अयोध्या नहीं है। यह बात भी लोगों को अच्छी तरह जान लेना चाहिए। राम की बसाई अयोध्या उजड़ गई थी। बहुत बाद में इसे फिर  से राम के पुत्र कुश और विक्रमादित्य ने बसाया था। यह कितनी बार उजड़ी, यह तथ्य भी कम लोग ही जानते हैं ।
त्याग और संघर्ष के साथ राम का अवतरण:-
मथुरा की भाँति अयोध्या अपने शासकों के लिए कभी शुभ नहीं रही। कम से कम अयोध्या राम के लिए तो कभी शुभ नहीं रही। अयोध्या सर्वदा ही उथल-पुथल की नगरी रही है। रामराज्य में सुख कम दुःख ज्यादा रहा है। उनका बनवासी जीवन सदैव वन्दनीय रहा परंतु उनका राजा वाला जीवन कठिनाइयों से भरा देखा गया है। अधिकांश जन और कवि राम राज्य की दुहाई देते हैं। पर राम  के त्याग संघर्ष मय जीवन के तह में जाने की जरूरत महसूस नहीं करते हैं। राम का व्यक्तिगत जीवन  चुनौतियों और संघर्षों से भरा पड़ा है। रामराज्य में राम से ज़्यादा दुःखी और कौन था ? राज्याभिषेक होने वाला था, तभी चौदह बरस के वनवास पर भेज दिए गए। वन में पत्नी का अपहरण हो गया। भाई की जान बचते बचते रही। वन में अनेक राक्षसों का बध करना पड़ा। सोने के मृग के पीछे भागना पड़ा। रावण का वध कर  अपनी पत्नी लेकर अयोध्या लौटे तो पत्नी को वनवास देना पड़ा। अपने ही अज्ञात पुत्रों से पराजित होना पड़ा। अपने भाई को देश से निष्कासित करना पड़ा। स्वयं भाईयों परिवार और नगर के निवासियों के साथ जलसमाधि लेना पड़ा। राम का वनवासी जीवन तो वंदनीय है। वही वनवासी जीवन उन्हें भगवान, पूजनीय और वंदनीय बनाता है। पर राजा राम का जीवन ? कई सारी दुविधाओं, धब्बे और कठिनाइयों से भरा पड़ा है। ऐसी अनेक कथाओं और दुःखों से रामराज्य के राम का जीवन भरा पड़ा है।
भरत का तथाकथित श्राप:-
कहते हैं अयोध्या को भरत का एक श्राप भी लगा हुआ है। कहते हैं कि जब राम लौटे वनवास से तो भरत की उपस्थिति में प्रजा से औपचारिकतावश पूछ लिया कि आप सब लोग सुखी तो हैं। मेरे न रहने से कोई कष्ट तो नहीं हुआ ? कोई व्यक्ति बोल पड़ा , कहां सुख ? आप के न रहने से दुःख ही दुःख था। वह तो राम से विछोह का दुःख बता रहा था। पर भरत को उसकी यह बात अपने राजकाज से जुड़ी लगी। लगा कि वह भरत के शासन की बुराई कर रहा है। भरत दुःखी हो गए। इस बात को दिल पर ले लिया। फिर श्राप दे दिया अयोध्या को कि जाओ हरदम दुःखी ही रहो। तो यह भरत का यह एक श्राप भी अयोध्या के साथ जुड़ गया।
गणेश गौरी जी की पूजा का ही प्रचलन:-
वर्तमान राम मंदिर की अस्मिता के लिए हिंदू समाज ने  लंबा संघर्ष किया,  अनेक लड़ाई लड़ी। पर जब कभी कोई मंगल कार्य संपन्न किया जाता है, कोई शुभ कार्य  करना होता है तो गणेश जी की पूजा होती है। शंकर और पार्वती जी की पूजा होती है। लेकिन राम या कृष्ण की पूजा अभी भी किसी मांगलिक कार्य में नहीं होती है।
कृष्ण का जीवन भी राम जैसा परिवर्तित होता रहा है :-
यदि हम श्री कृष्ण के जीवन पर दृष्टिपात करें तो कृष्ण का जीवन भी राम जैसा परिवर्तित होता देखा गया है। वेदव्यास ने ही महाभारत लिखी और गीता भी। कृष्ण ही दोनों में केंद्रीय विषय वस्तु हैं। लेकिन महाभारत के कृष्ण और हैं और गीता के कृष्ण और। जैसे राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने लक्ष्मणपुरी बसाया जो अब लखनऊ है। वैसे ही शत्रुघन द्वारा बसाए नगर मथुरा में पैदा होते ही कृष्ण को मथुरा छोड़ना पड़ा। मां देवकी को छोड़ना पड़ा। यमुना की लहरों से लड़ते हुए यशोदा के पास पहुंचे। बचपन ही से राक्षसों का वध ही हिस्से आया। महाभारत की कथा को आप जैसे देखिए, कृष्णनीति को पढ़िए। कृष्ण का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज होने से बहुत दूर है। कृष्ण कई जगह खल चरित्र के रूप में भी उपस्थित हैं। आखिरी समय में मथुरा छोड़ द्वारिका जाना पड़ा। लेकिन गीता के कृष्ण हमारे आध्यात्मिक पक्ष के इतने सशक्त हस्ताक्षर हें कि गीता का ज्ञान मशहूर और महाभारत से इतर है । गीता के नाम पर आज भी न्यायालयों में लोग शपथ लेते हैं। रामायण या महाभारत को वह स्थान आज के शासकीय जीवन में नहीं मिल पाया है। हम भजन ज़रूर गाते हैं , “जग में सुंदर हैं दो नाम , चाहे कृष्ण कहो या राम।” पर राम और कृष्ण का जीवन सुंदर और सुविधा जनक नहीं , संघर्षों और कांटों से भरा पड़ा है। शायद इस लिए कि अयोध्या और मथुरा दोनों ही अपने शासकों के लिए कभी शुभ नहीं रही।

अयोध्या
अयोध्या

फैजाबाद सीट का संसदीय इतिहास:-

फैजाबाद लोकसभा में फैजाबाद शहर और अयोध्या शहर के साथ साथ  दरियाबाद, बाराबंकी,  रुदौली फैजाबाद,  मिल्कीपुर फैजाबाद, बीकापुर फैजाबाद पांच विधान सभा क्षेत्र आते हैं।  श्री पन्ना लाल  कांग्रेस के 1952 में  अकबरपुर सुरक्षित से सांसद हुए थे। फ़ैज़ाबाद इसी क्षेत्र  में आता था। 1957 में फ़ैज़ाबाद पृथक ससदीय सीट बना । इस सीट पर पहली बार 1957 में आम चुनाव हुए।  पूरा बाजार फ़ैज़ाबाद निवासी कांग्रेस के राजाराम मिश्र चुनाव जीते। कांग्रेस के बृज बासी लाल 1962

में सांसद रहे। कांग्रेस के आर के सिन्हा  1967 में सांसद रहे। कांग्रेस के राम कृष्ण सिन्हा 1971 में  सांसद रहे।1977 में भारतीय लोकदल के अनंतराम जायसवाल को फैजाबाद ने संसद पहुंचाया।  कांग्रेस के जय राम वर्मा 1980 में सांसद रहे।

 

कांग्रेस के निर्मल खत्री  1984 में सांसद रहे।  मित्र सेन  सीपीआई 1989 मे सांसद रहे। 1990 में राम मंदिर आंदोलन ने भारतीय जनता पार्टी के लिए माहौल तैयार किया। पूरी अयोध्या भगवामय हो गई। 1991 में जब आम चुनाव हुए तो अयोध्या से भाजपा के विनय कटियार को संसद पहुँचे। अयोध्या में राम लहर थी और भाजपा राम मंदिर के मुद्दे को सबसे ज्यादा जोर-शोर से उठा रही थी। परिणाम यह हुआ कि 1996 के आम चुनाव में भी जनता ने भाजपा को जीत का मुकुट पहनाया और विनय कटियार फिर से सांसद चुने गए। लेकिन 1998 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को कड़ा झटका दिया और सीट छीन ली। चुनाव में समाजवादी पार्टी के मित्रसेन यादव की जीत हुई। फिर 1999 में फैजाबाद की जनता ने भाजपा के विनय कटियार के सिर जीत का सेहरा बांधा। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के अलावा यहां से 2004 में बसपा के मित्रसेन यादव पुनः चुनाव जीत चुके हैं। समाजवादी पार्टी, भारतीय लोकदल और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी एक-एक बार चुनाव जीत चुकी है।   2009 में यहां से कांग्रेस से निर्मल खत्री सांसद चुने गए। 2014 में मोदी लहर में भारतीय जनता पार्टी से  यहां  में लल्लू सिंह चुनाव जीते हैं। पुनः 2019 में वह फिर दुबारा सांसद बने हैं।

अयोध्या विधान सभा:-

अयोध्‍या विधानसभा 1967 में वजूद में आई थी। इससे पहले अयोध्‍या नगरी फैजाबाद सदर विधानसभा का हिस्‍सा हुआ करती थी। अयोध्‍या ने लेफ्ट से लेकर राइट तक हर पार्टी को विधायक बनाने का मौका दिया है। 1967 के चुनाव में अयोध्या सीट से जनसंघ के बृजकिशोर अग्रवाल ने जीत दर्ज की थी। 1969 में यह सीट कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर के हाथ लगी। 1974 में जनसंघ के वेद प्रकाश अग्रवाल जीते। 1977 में जनता पार्टी से जयशंकर पांडेय यहां से व‍िधायक बने। 1980 में कांग्रेस से निर्मल खत्री यहां से जीते। 1985 में कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र प्रताप सिंह अंतिम बार अयोध्या विधानसभा का चुनाव जीते थे। 1989 में जनता दल से जयशंकर पांडेय विधायक चुने गए।1991 की अयोध्या राममंदिर लहर में भाजपा ने सभी सीटों पर भगवा परचम लहरा दिया। 1991, 93, 96, 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में लल्लू सिंह अयोध्या सीट से लगातार जीतते रहे है। 2012 में भाजपा के लल्लू सिंह को हराकर पहली बार सपा के तेज नारायण पांडेय उर्फ पवन पांडेय चुनाव जीते।  2017 से विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर अयोध्या सीट पर कब्जा कर लिया।  2017 और 2022 के चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी वेद प्रकाश गुप्ता को जीत मिली थी। यदपि मोदी जी और योगी जी इसे पुनःचिर यौवन प्रदान कर रहे हैं पर कब तक ये इनके साथ रहेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि अयोध्या बार-बार अपने संरक्षकों को बदलती रहती है और नये-नये लोगों को कुछ करने का अवसर प्रदान करती है।

डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

 

 

Dr. Bhanu Pratap Singh