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आल्हा जयंती 2021: अमर हैं आल्हा, इस मंदिर में आज भी करने आते हैं पूजा

NATIONAL PRESS RELEASE RELIGION/ CULTURE लेख

वैशाख माह के शुक्ल चतुर्दशी को आल्हा जयंती मनाई जाती है। अंग्रेजी माह के अनुसार इस बार यह जयंती 25 मई 2021 मंगलवार को मनाई जाएगी। आओ जानते हैं कि आल्हा कौन थे और क्या है उनकी कहानी।

52 लड़ाइयां लड़ीं

 आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्‍वीराज चौहान के साथ लड़ी थी। मां शारदा माई के भक्त आल्हा आज भी करते हैं मां की पूजा और आरती। जो इस पर विश्वास नहीं करता वे अपनी आंखों से जाकर देख सकता है।

आल्हाखण्ड ग्रंथ

आल्हाखण्ड में गाया जाता है कि इन दोनों भाइयों का युद्ध 1182 ईसवी में दिल्ली के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज चौहान से हुआ था। पृथ्‍वीराज चौहान को युद्ध में हारना पड़ा था लेकिन इसके पश्चात आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने संन्यास ले लिया था। कहते हैं कि इस युद्ध में उनका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया था। गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी यह आखिरी लड़ाई थी।

 मंदिर में जंग की गवाही के अवशेष

मान्यता है कि मां के परम भक्त आल्हा को मां शारदा का आशीर्वाद प्राप्त था, लिहाजा पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था। मां के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है। मंदिर परिसर में ही तमाम ऐतिहासिक महत्व के अवशेष अभी भी आल्हा व पृथ्वीराज चौहान की जंग की गवाही देते हैं।

सबसे पहले आल्हा करते हैं माता की आरती

मान्यता है कि मां ने आल्हा को उनकी भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर अमर होने का वरदान दिया था। लोगों की मानें तो आज भी रात 8 बजे मंदिर की आरती के बाद साफ-सफाई होती है और फिर मंदिर के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बावजूद जब सुबह मंदिर को पुन: खोला जाता है तो मंदिर में मां की आरती और पूजा किए जाने के सबूत मिलते हैं। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और ऊदल ही करते हैं।