हरियाणा लोक सेवा आयोग (HPSC) द्वारा आयोजित PGT (Post Graduate Teacher) लेक्चरर भर्ती में विकलांगता कोटे, विशेष रूप से ऑर्थोपेडिक (Ortho) श्रेणी के तहत फर्जीवाड़े के आरोप सामने आ रहे हैं। कई चयनित अभ्यर्थियों ने 80% या उससे अधिक विकलांगता का दावा किया, जबकि जांच या प्रत्यक्ष अवलोकन में वे सामान्य रूप से शारीरिक गतिविधियों में सक्षम पाए गए।
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब कुछ अभ्यर्थियों द्वारा कथित रूप से फर्जी मेडिकल प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए जाने की सूचना सोशल मीडिया और RTI के माध्यम से सामने आई। इससे पहले भी हरियाणा में फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र के ज़रिए सरकारी नौकरियों और योजनाओं का अनुचित लाभ उठाने के मामले सामने आ चुके हैं।
क्यों ज़रूरी है मेडिकल बोर्ड?
PGT लेक्चरर जैसी प्रतिष्ठित भर्तियों में, जहाँ उच्च शैक्षणिक गुणवत्ता की अपेक्षा होती है, वहाँ फर्जीवाड़ा न केवल न्यायसंगत चयन प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि वास्तव में दिव्यांग अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन भी करता है।
इसलिए ज़रूरी है कि HPSC एक स्वतंत्र “मेडिकल बोर्ड” का गठन करे, जो—
सभी विकलांगता दावों की स्वतः जांच करे,
जांच रिपोर्ट को अंतिम प्रमाण के रूप में स्वीकार करे,
और यदि कोई गड़बड़ी पाए, तो सीधे अयोग्य घोषित कर सके।
निष्कर्ष
हरियाणा में PGT जैसी शिक्षकीय भर्तियों में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए HPSC को मेडिकल जांच के लिए अपनी प्रणाली विकसित करनी चाहिए। एक मजबूत, निष्पक्ष मेडिकल बोर्ड का गठन न केवल फर्जीवाड़े को रोकेगा, बल्कि आयोग की साख को भी बरकरार रखेगा।
लेखक-ऋषि प्रकाश कौशिक, गुरुग्राम।
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