स्कूल संचालक बोले- फीस नहीं तो पढ़ाई नहीं, अभिभावकों ने कहा- पढ़ाई नहीं तो फीस नहीं

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Mathura (Uttar Pradesh, India) मथुरा कोरोना महामारी के चलते स्कूल खुलेंगे या नहीं बच्चा कैसे पढे़गा, आगे चलकर उसके भविष्य का क्या होगा। यह आज के समय में हर अभिभावक टेंशन में चल रहे है। जबकि कोरोना काल में हर इन्सान परेशान है अपने काम धन्धे से, रोजगार से, घर का खर्चा ठीक से चल जाये यही चिन्ता सबसे अधिक है, साथ ही अपने पाल्यों की चिन्ता भी सता रही है अगर स्कूल की फीस नहीं दी तो बच्चे का एडमीशन नहीं होगा। महामारी के चलते अभी तक स्कूल कॉलेजों के खुलने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं। उपर से संक्रमण का खतरा दिन पे दिन बढ़ता ही जा रहा है। जैसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि अगस्त और सितम्बर में इस महामारी का प्रकोप और अधिक बढ़ना तय माना जा रहा है।

स्कूलों को अभिभावकों की मान लेनी चाहिए और उन पर भी थोड़ी सहानुभूति रखें

अच्छा व समझदार दुकानदार वही समझा जाता है जो अपनी दुकान पर आये ग्राहक को खरीददारी किये विना जाने ही न दे चाहें अपने सामान के दामों में कुछ कम ही क्यों न करना पड़े। आज ग्राहक और अभिभावक एक जैसे हैं ग्राहक आना बंद कर दें, दो चार जगह बुराई करें, अरे फलां दुकानदार का व्यवहार ठीक नहीं है, एक से दो, दो से दस होने में देर नहीं लगती, इसी प्रकार ज्यादा दिन तक ठसक में रहने से अपना ही नुकसान होने वाला है। स्कूलों को अभिभावकों की मान लेनी चाहिए और उन पर भी थोड़ी सहानुभूति रखें, इससे आपका ही फायदा होगा।

शिक्षा भी एक व्यवसाय के रुप में ललचा रहा है, कुछ औद्योगिक घराने इधर आ भी चुके हैं

व्यवस्था बदलते और समय बदलते देर नहीं लगती है, नमक भी टाटा बनाता है, साबुन भी टाटा बनाता है, दुकानदार तो पैकेट लाकर बेचता है, छोटे-छोटे हाथों के व्यवसाय बडे़ औद्योगिक घरानों के प्रोडक्ट बनते जा रहे हैं, कहीं सरकारे और औद्योगिक घरानों के गठजोड़ से या कहीं देश के बड़े पूजीपतियों की नजर में भी यह धन्धा आ गया और शिक्षा और परीक्षा का खेल उनकी समझ में आ गया तो सोचिए सालों की आपकी मेहनत व आपकी तपस्या सब धरी की धरी रह जायेगीं। कुछ हद तक हो भी रहा है। शिक्षा भी एक व्यवसाय के रुप में ललचा रहा है, कुछ औद्योगिक घराने इधर आ भी चुके हैं। ऑन लाइन क्लास के लिए स्कूल कॉलेज अभी सस्ती जुगाड़ों को ढूंड रहे हैं, कम्प्युटर लगा रहे हैं एक छोटे से कमरे को स्टुडियो में तब्दील करने में लगे हैं। एक्सपर्ट से सलाह ले रहे हैं। टीचरों को ट्रेनिंग दिलवा रहे हैं। वहीं एक बड़ी कम्पनी ने अपना काम शुरु कर भी दिया है, कुल 35 हजार में दो वर्ष तक कोचिंग क्लासेज चला रहे है। वर्षों से चलायें जा रहे कोर्स के रिकार्ड प्रोग्राम, कभी भी पढ़ो, कभी भी देखो, किसी भी सब्जेक्ट को पढ़ो। यही आगे चल कर परीक्षा भी संचालित करायेंगे तथा शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन भी करवा लेंगे। वर्तमान हालात को देखते हुए यह भी सम्भव सा लग रहा है।

मम्मियों को नाश्ता टिफिन बनाने का टेंशन खत्म

अभिभावाक तो इस वात से खुश होंगे कि बच्चे घर पर हमारे सामने होंगे, फीस कम जायेगी, ऑटो, टेम्पो, बस का भाडा बचेगा, छोडने लाने का टेशंन खत्म होगा। बच्चों को भारी बस्ते से निजात मिलेगी और मम्मियों को नाश्ता टिफिन बनाने का टेंशन खत्म आदि आदि। फिर आप क्या करियेगा।

टीचर्स और स्कूल, स्कूल संचालक सबसे ज्यादा परेशानी में हैं

कोरोना महामारी न आई होती तो सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। जिसको पढ़ना है वह तब भी पढ़ रहा था और अब भी पढ़ रहा है, यह कोई नई वात नहीं है, सभी का केन्द्र सिर्फ टीचर्स और स्कूल, स्कूल संचालक सबसे ज्यादा परेशानी में हैं, मुसीबत हर इन्सान हर परिवार हर जगह आई है। स्कूल संचालकों ने ऑनलाइन क्लासेस के बहाने पूरी फीस मार्च, अप्रैल, मई, जून जुलाई की भी जमा करा ली है, इस पीरियेड में कितनी क्लास हुई हैं और कैसे हुई है यह सबको मालुम है, अब पुनः फीस भी जमा कराने का नोटिस भी भेजा जा चुका है, स्कूल खुले न खुले, पढ़ाई हो न हो, बच्चे जायें या न जायें, स्कूलों को अभिभावक फीस देते रहें।

10 टीचर्स से ही ऑनलाइन क्लासेस होती हैं, मगर स्कूल को फीस पूरी चाहिए

स्कूल खुलता था तब 80 टीचर्स व स्टाफ से पूरे स्कूल का काम चलता था। अब ऑनलाइन क्लासेस के बहाने केवल 10 टीचर्स से ही ऑनलाइन क्लासेस होती हैं, मगर स्कूल को फीस पूरी चाहिए। टांसर्पोटेशन बस, टेम्पों में बच्चा गया नहीं, पूरे साल का पैसा संचालकों को चाहिए। स्कूल कॉलेजों ने गुपचप तरीके से टीचर्स, स्टाफ की सेलरी आधी कर दी, सबका मुंह बंद किसी ने विरोध नहीं किया, किसी टीचर्स का वेतन यदि 10 हजार है उसे चैक व ऑन लाइन देते हैं और दूसरे दिन स्कूल पहुंचने पर उस टीचर से 4 हजार नकद बापस ले लेते हैं। इस पर स्कूल कॉलेज के टीचर्स, स्टॉफ मुंह बंद रहता है किसी से चर्चा भी नहीं करते हैं, न ही कोई इसका विरोध करता है।

साड़ी छपाई के कारखाने थे वह अब स्कूल वन गये हैं स्कूल संचालकों की ओर से, फीस, टीचर्स, स्टाफ, खर्च, मेन्टीनेन्स का रोना रोया जा रहा है, जिनका एक स्कूल था उनके चार स्कूल बन गये हैं, जहां साड़ी छपाई के कारखाने थे वह अब स्कूल वन गये हैं, चॉदी व्यापारी अब शिक्षाविद् हो गये हैं, ऐसे तमाम स्कूल व कॉलेज हैं जिनके पास कुछ अधिक ही धन था उन्होंने स्कूल व कॉलेज खोल लिये हैं। जो 20 साल से स्कूल संचालित कर रहे हैं उनके पास स्टॉफ और टीचर्स को सैलरी देने को पैसे नहीं हैं। यह सब बंद होना चाहिए सरकार को इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए स्कूल संचालक परेशान हैं फीस मिलेगी या नहीं। अभिभावक परेशान हैं कि बच्चों का भविष्य का क्या होगा। फीस भी देनी होगी पढ़ाई हुई नहीं फीस की मांग स्कूल संचालक करने लगे हैं। स्कूल कहते हैं फीस नहीं तो पढ़ाई नहीं, अभिभावक कहते हैं स्कूल नहीं तो फीस नहीं।

Dr. Bhanu Pratap Singh