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दीपावली का धार्मिक, ऐतिहासिक और आर्थिक महत्व, कई देशों में रहती है सरकारी छुट्टी

RELIGION/ CULTURE लेख

भारत त्योहारों का देश है। यहां हर दिन कोई न कोई त्योहार होता है। फिर चाहे वह शुक्ल पक्ष हो या कृष्ण पक्ष। आज हम बात कर रहे हैं पर्वों के समूह दीपावली की। दीपावली एकमात्र ऐसा त्योहार है जो पूरे पांच दिन चलता है। इन पांच दिनों में उमंग और उत्साह देखते ही बनता है। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। इस साल दीपावली 4 नवम्बर को है। दीपावली को दीपोत्सव भी कहते हैं क्योंकि घर-घर में दीप प्रकाशित किए जाते हैं। वास्तव में दीपावली हमें अंधकार से प्रकाश की ओर चलने के लिए प्रेरित करती है। बृहदारण्यकोपनिषद् में कहा गया है-

ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मामृतं गमय ॥ ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥  

अर्थात, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥

पुराणों में लक्ष्मी जी के लिए लिखा है- ‘हे देवी जिस पर आपकी कृपा हो वही मनुष्य समाज में प्रशंसनीय, गुणी, कुलीन, बुद्धिमान, वीर और पराक्रमी होता है।’ इससे धन की महत्ता का पता चलता है। इसी कारण हर कोई धनार्जन करना चाहता है। इसी के लिए लक्ष्मीपूजन होता है। दीपावली के दिन खासतौर पर लक्ष्मी पूजा होती है। जिनका हृदय निर्मल है, उनके घरों में लक्ष्मी जी अवश्य आती हैं।

भगवान श्रीराम के जन्मस्थल अयोध्या में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दीपावली पर माटी के लाखों दीये जलाकर गिनीज बुक में नाम दर्ज कराया है। सरकारी स्तर पर इस तरह का पहला आयोजन हुआ है। पूरी दुनिया में इस आयोजन की धूम हुई है। इतना ही नहीं, रामलीला भी हुई।

 

विदेश में दीपोत्सव

दीपावली की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता है। एक ऐसा त्योहार जिसे दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। असल में जहां-जहां भारतवंशी अधिक संख्या में हैं, वहां दीवाली की रौनक है। विदेशी भी शामिल होते हैं। दीवाली के दिन भारत के अलावा नेपाल, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, श्रीलंका, मॉरीशस, म्यामांर, गुयाना, पाकिस्तान, फिजी, सिंगापुर, मलेशिया, सूरीनाम, ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर सरकारी छुट्टी होती है। इस तरह दीपावली की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता बढ़ रही है।

 

दीपावली के दिन क्या हुआ

त्रेतायुग में भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। वे आततायी रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे। श्रीराम के आगमन पर अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। हर किसी ने खुशियां मनाई। मान्यता है कि तभी से दीपावली मनाने की परंपरा शुरू हो गई। इस बारे में सब जानते हैं हम आपको बता रहे हैं दीपावली के दिन और क्या-क्या हुआ है।

कठोपनिषद में यम-नचिकेता का प्रसंग के अनुसार, नचिकेता जन्म-मरण का रहस्य यमराज से जानने के बाद यमलोक गए थे। नचिकेता के मृत्यु पर अमरता के विजय का ज्ञान लेकर लौटने की खुशी में भू-लोकवासियों ने घी के दीप जलाए थे। माना जाता है कि यही आर्यावर्त की पहली दीपावली थी।

दीपावली के दिन ही लक्ष्मी जी का समुद्र मंथन से आविर्भाव हुआ था। इस पौराणिक प्रसंगानुसार ऋषि दुर्वासा द्वारा देवराज इंद्र को दिए गए शाप के कारण लक्ष्मीजी को समुद्र में जाकर समाना पड़ा था। लक्ष्मीजी के बिना देवगण बलहीन व श्रीहीन हो गए। इस परिस्थिति का फायदा उठाकर असुर उनके ऊपर हावी हो गए। देवगणों की याचना पर भगवान विष्णु ने योजनाबद्ध ढ़ंग से सुरों व असुरों के हाथों समुद्र-मंथन करवाया। समुद्र-मंथन से अमृत सहित चौदह रत्नों में श्री लक्ष्मी भी निकलीं, जिसे श्री विष्णु ने ग्रहण किया। लक्ष्मीजी के पुनार्विभाव से देवगणों में बल व श्री का संचार हुआ और उन्होंने पुन: असुरों पर विजय प्राप्त की। लक्ष्मीजी के पुनः आगमन की खुशी में समस्त लोकों में दीप प्रज्जवलित करके खुशियां मनाईं गई। इसी कारण प्रतिवर्ष दीपावली पर लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। मार्कंडेय पुराण कहता है- श्री लक्ष्मी जी की पूजा सर्वप्रथम नारायण ने स्वर्ग में की। इसके बाद लक्ष्मीजी की पूजा दूसरी बार ब्रह्माजी ने, तीसरी बार शिवजी ने, चौथी बार समुद्र-मंथन के समय विष्णुजी ने, पांचवी बार मनु ने और छठी बार नागों ने की थी।

दानवीर राजा बलि ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली, तब बलि से भयभीत देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर प्रतापी राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में मांगी। महाप्रतापी राजा बलि ने भगवान विष्णु की चालाकी को समझते हुए भी याचक को निराश नहीं किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी। विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया, साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि उनकी याद में भू-लोकवासी प्रत्येक वर्ष ‍दीपावली मनाएंगे।

द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं। कहते हैं तभी से दीपावली मनाई जा रही है। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में पहली बार गाय चराने के लिए वन में गए तो लोगों ने दीये जलाए। संयोगवश इसी दिन श्रीकृष्ण ने इस मृत्युलोक से प्रस्थान किया था। उसके द्वारा बंदी बनाई गई देव, मानव और गंधर्वों की सोलह हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में लोगों ने दीप जलाए थे।

500 ईसा पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं।

ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और घाटों (नदी के किनारे) पर बड़े पैमाने पर दीप जलाए जाते थे।

सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के दिन हुआ था इसलिए दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।

कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंदसिंहजी 1619 में बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे। इसलिए सिखों के लिए भी दीपावली की महत्ता है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी 1577 में दीपावली के ही दिन शुरू हुआ था।

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों-लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्याग दिया। महावीर-निर्वाण संवत् इसके दूसरे दिन से शुरू होता है इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरंभ की शुरुआत मानते हैं। जैन ग्रंथ कल्पसूत्र में कहा गया है कि महावीर-निर्वाण के साथ जो अंतरज्योति सदा के लिए बुझ गई है, आओ हम उसकी क्षतिपूर्ति के लिए बहिर्ज्योति के प्रतीक दीप जलाएं। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय ‘ओम’ कहते हुए समाधि ले ली।

महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।

दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते थे।

 

आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ

दीपावली ऐसा पर्व है जिसमें हर किसी को आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ होता है। दीपावली पर बर्तन, आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक सामान, श्रृंगार का सामान, अन्नकूट के लिए सब्जियां, गाय का गोबर आदि बिकता है। पटाखे, आतिशबाजी की बिक्री होती है। पांच दिन तक मिठाई की बिक्री होती है। भैया दूज पर मिष्ठान्न खासतौर पर बिकता है। इस तरह इन कारोबारों में लगे लोगों को आर्थिक लाभ होता है। दीपावली बारिश के बाद आने वाला त्योहार है। दीपावली के पर घर, दुकान, कार्यालय आदि की सफाई करने का चलन है। बारिश में तमाम प्रकार के कीट पैदा हो जाते हैं। दीवाली पर सफाई होती है तो ये सब नष्ट हो जाते हैं। वर्षभर घर में जमा हुआ कबाड़ भी बेच दिया जाता है। इस कबाड़ के कारण घर में वास्तु दोष हो जाता है, जिसका हमारे स्वास्थ्य और समृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी तो लगता है कि दीपावली न आए तो घरों की पूरी तरह से सफाई भी न हो। दीवाली पर निजी कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों को बोनस दिया जाता है। उपहार भी मिलते हैं। किसी के पास थोड़ी संपत्ति आ जाए तो कहा जाता है तुम्हारी तो दीवाली हो गई। इस तरह दीपावली हर तरह से उपयोगी है।

 

पंचदिवसीय त्योहार

दीपावली त्योहारों का समूह है। धनतेरस, नरक चतुर्देशी या छोटी दीवाली, दीपावली, गोवर्धन और भैया दूज। दीपावली पर हर कोई अपना घर-आंगन सजाता है। झिलमिल होती है। मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। घर में सुख समृद्धि की कामना की जाती है। हर कोई प्रफुल्लित हो जाता है। आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से।

 

धनतेरस/ धनवंतरि जयंती

मान्यता है कि धनतेरस के दिन नया सामान खरदीने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होंगी। इसलिए इस दिन नए बर्तन, आभूषण खरीदने की प्रथा है। प्रत्येक व्यक्ति खरीदारी जरूर करेगा भले ही चम्मच खरीदे। माना जाता है कि इस दिन धनतेरस के दिन सामान खरीदने से 13 गुनी वृद्धि होती है। इसी दिन भगवान धनवंतरि जी समुन्द्र मंथन से अमृत कलश और औषिधियाँ के साथ निकले थे। उन्हें आयुर्वेद का प्रवर्तक भी माना जाता है। इसीलिये इस दिन वैद्य और चिकित्सक धनवंतरि जी की पूजा करते हैं। इस दिन यमराज के नाम का एक दीया जलाया जाता है।

 

छोटी दीवाली/नरक चौदस/ रूप चौदस

मान्यता है कि भगवन कृष्णाजी ने इस दिन नरकासुर राक्षस का वध करके 16000 राज कन्याओं को मुक्त कराया था। भगवना कृष्णाजी ने इनसे विवाह किया ताकि समाज में स्वीकार्यता हो। इसे रूप चौदस भी कहते हैं। सौंदर्य के प्रतीक भगवान कृष्ण की पूजा करते है जिससे सुन्दरता प्राप्त होती है। गोवा में इसी दिन दीवाली मनाई जाती है और नरकासुर के पुतले फूंके जाते है। इस दिन हनुमान जी की पूजा की जाती है। अयोध्या में हनुमानगढ़ी मंदिर में भव्य आयोजन होता है।

 

दीपावली

भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोगों ने घरों को दीप जलाकर सजाया था। इसी दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मीजी की विवाह हुआ था। दीपावली के दिन धन की देवी लक्ष्मीजी और बुद्धि के देवता श्री गणेशजी और कुबेरजी की पूजा की जाती है। व्यापारी दुकानों में नए बही खातों की पूजा करते हैं। आतिशबाजी की जाती है। वातावरण धुआं से भर जाता है। धूम-धड़ाक होती है। कुछ लोग जुआ खेलते हैं। वैसे यह सामाजिक बुराई है। एक दूसरे को उपहार दिए जाते हैं।

 

अन्नकूट/ गोवर्धन पूजा

इस दिन भगवान कृष्णाजी ने गोवर्धन पूजा करके देवताओं के राजा इन्द्र का मान भंग किया था। इसलिए घर में गोबर के गोवर्धन बना कर पूजा करते हैं। सभी प्रकार की सब्जियों को मिलाकर बनाया जाता है, जिसे अन्नकूट कहते हैं। गोवर्धन को भोग लगाने के बाद सेवन किया जाता है। मंदिरों में 56 प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं। इस दिन गुजराती अपना नया वर्ष मनाते हैं। इसदिन गायों की भी पूजा की जाती है।

 

भैया दूज/ यम द्वितीया

यमुनाजी और यमराज भगवान सूर्य की संतानें हैं। दोनों भाई-बहन है। एक दिन यमराज अपनी बहन यमुना के यहाँ गए। बहन बहुत प्रसन्न हुई और तिलक कर खूब आदर सत्कार किया। यमराज ने जाते समय बहन से कुछ मांगने को कहा। इस पर यमुनाजी ने कहा कि आज के दिन जो भाई अपने बहन के घर जाए उसको आप लम्बी उम्र प्रदान करें। इस कारण प्रथा है कि भैया दूज पर भाई, बहन के घर जाते है जहाँ बहन तिलक कर भाई का स्वागत करती और लम्बी उम्र की कामना करती है। भाई भी बहन को भेंट स्वरूप कुछ देते हैं। इस दिन भाई बहन हाथ पकड़ कर यमुनाजी में स्नान करते हैं। इस दिन चित्र गुप्त की कलम दवात के साथ पूजा की जाती है। कायस्थ समाज इस दिन खास पूजा करते हैं। चित्रगुप्त के बारे में कथा प्रचलित है। ब्रह्माजी ने यमराज को मनुष्यों के पाप पुण्य रखने का ज़िम्मा दिया। जब सृष्टि बहुत तेजी से बढ़ने लगी तब यमराज ने अपनी पीड़ा सुनाई। ब्रहमाजी समाधि में चले गए और जब आँख खुली तो सामने एक दिव्य पुरुष को कलम, दवात, तलवार और पुस्तक के साथ देखा। पूछने पर उन्होंने बताया कि वे गुप्त रूप से आपके चित्त में बसते हैं। तब ब्रहमाजी ने चित्रगुप्त को मनुष्यों के पाप-पुण्य रखने की ज़िम्मेदारी सौंप दी। इसके साथ ही दीपावली का त्योहार पूर्ण होता है।

प्रस्तुतिः डॉ. भानु प्रताप सिंह

9412652233, 8279625939

 

Dr. Bhanu Pratap Singh