भारत के सबसे प्राचीन संवत ‘वीर निर्वाण संवत्’ का भी आरम्भ हुआ था
गुरु गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान प्राप्ति हुई थी, दादाबाड़ी में हुआ कार्यक्रम
Agra, Uttar Pradesh, India. ईसा से लगभग 527 वर्ष पूर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन होते ही स्वाति नक्षत्र में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का बिहार स्थित पावापुरी में निर्वाण हुआ था। इसके एक दिन बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से भारत के सबसे प्राचीन संवत् ‘वीर निर्वाण संवत्’ का भी आरम्भ हुआ था। भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस पर जैन मंदिर दादाबाड़ी शाहगंज में मूलनायक परमात्मा को लाड़ू चढ़ाया गया। साथ ही दीपावली के दिन ही गुरु गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए गुरु गौतम स्वामी के मंदिर में भी लाड़ू अर्पित किया गया।
जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्री संघ के अध्यक्ष राजकुमार जैन ने बताया कि एक बार जब महावीर स्वामी पावा नगरी के मनोहर उद्यान में गए हुए थे, जब चतुर्थकाल पूरा होने में 3 वर्ष और 8 माह शेष थे। उसी दौरान भगवान महावीर स्वामी अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्रस्थान कर गए। इन्द्रादि देवों ने आकर भगवान महावीर के पार्थिव शरीर की पूजा की। पावा नगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया। तभी से जैन धर्म में दीपावली मनाने की परंपरा चली आ रही है। दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है।
दादाबाड़ी में दुष्यंत लोढ़ा ने विधि-विधान द्वारा परमात्मा की जय-जयकार और मंत्रोच्चार के बीच लाडू अर्पण कराया। भक्तजनों ने महामंत्र नवकार के साथ भक्तामर महामंत्र का भी जाप किया। श्रावक और श्राविकाएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इसके साथ ही चिंतामणि पार्श्वनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर रोशन मोहल्ला, गौरी पार्श्वनाथ मंदिर मोतीकटरा, वासुपूज्य स्वामी मंदिर मोती का मंदिर मोतीकटरा एवं शीतलनाथ स्वामी मंदिर नाई की मंडी में भी लाडू अर्पण किया गया।
इस मौके पर सुनील कुमार जैन, दादाबाड़ी के संयुक्त सचिव महेंद्र जैन, विनय चंद्र लोढ़ा, अशोक कोठारी, अशोक ललवानी, वीरचंद गादिया, कमलचंद जैन, दुष्यंत लोढ़ा, सीए चिराग, राजीव पाटनी, केके कोठारी, अर्पित वेद, अतिन वेद, प्रवीन लोढ़ा की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।