बसंत ऋतु पर पढ़िए कवि नीरज की कविता: धूप बिछाए फूल-बिछौना…

साहित्य


प्रसिद्ध कवि गोपाल दास नीरज ने यूं तो अनेक फिल्‍मी गीत भी लिखे हैं किंतु कवि सम्‍मेलनों में उनकी रचनाओं से हर उम्र वर्ग के लोग उल्‍लास से भर जाते थे।
नीरज ने ऐसी ही कुछ मशहूर कविताएं बसंत ऋतु पर भी लिखी हैं। पढ़िए नीरज की ऐसी ही कुछ कविताएं:

आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना !

धूप बिछाए फूल-बिछौना,
बगिय़ा पहने चांदी-सोना,
कलियां फेंकें जादू-टोना,
महक उठे सब पात,
हवन की बात न करना !
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना !
बौराई अंबवा की डाली,
गदराई गेहूं की बाली,
सरसों खड़ी बजाए ताली,
झूम रहे जल-पात,
शयन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।

खिड़की खोल चंद्रमा झांके,
चुनरी खींच सितारे टांके,
मन करूं तो शोर मचाके,
कोयलिया अनखात,
गहन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
नींदिया बैरिन सुधि बिसराई,
सेज निगोड़ी करे ढिठाई,
तान मारे सौत जुन्हाई,
रह-रह प्राण पिरात,
चुभन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।

यह पीली चूनर, यह चादर,
यह सुंदर छवि, यह रस-गागर,
जनम-मरण की यह रज-कांवर,
सब भू की सौगा़त,
गगन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh