Raj kishor sharma raje

राजकिशोर शर्मा ‘राजे’ ने बताईं पद्मश्री केके मोहम्मद, आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव, जदुनाथ सरकार, इब्नबतूता, पीएन ओक समेत तमाम ‘इतिहासकारों की भूलें’

NATIONAL लेख साहित्य

डॉ. भानु प्रताप सिंह

उत्तर प्रदेश के आगरा में निवासरत चर्चित इतिहासकार राजकिशोर शर्मा ‘राजे’  का दो दिन पहले फोन आया और कहा- डॉक्टर साहब, मेरी नई पुस्तक आ गई है। कब आ रहे हैं। मैंने कहा कि आज ही आता हूँ शाम चार बजे। मैं उनके यहां साढ़े तीन बजे पहुंच गया। वे छत पर बसंत ऋतु की सुहानी धूप का आनंद ले रहे थे। मैंने घंटी बजाई तो उन्हें मेरे आने की खबर हुई। वे तुरंत नीचे उतरकर आए। फिर उनसे इतिहास को लेकर तमाम तरह की बातें होने लगीं।

मैं कोई इतिहास का विद्यार्थी नहीं हूँ। हां, इतिहास  पर चर्चा करना और नई जानकारी प्राप्त करने में आनंद की अनुभूति होती है। उन्होंने उत्साहपूर्वक मुझे अपनी नई पुस्तक भेंट की। पुस्तक का नाम है- इतिहासकारों की भयंकर भूलें। मैंने पुस्तक को अपने मस्तक से लगाया और धन्यवाद दिया कि पुस्तक के मूल्य 250 रुपये की बचत हो गई, वरना पुस्तक मंगाने के लिए निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीपब्यूटर्स के निदेशक मोहन मुरारी लाल शर्मा के मोबाइल नम्बर पर गूगल-पे करना पड़ता। साथ में अपना पूरा पता पिन कोड के साथ भेजना पड़ता।

मैंने सबसे पहले पुस्तक की प्रस्तावना पढ़ी, जिसे श्री राजगोपाल सिंह वर्मा ने लिखा है। उन्होंने इतिहास की परिभाषा बताते हुए विवेचना की है कि भूल आखिर कैसे होती है। श्री वर्मा स्वयं ऐतिहासिक उपन्यासकार हैं। फिर दो शब्द पढ़े, जिसे स्वयं लेखक श्री राजकिशोर शर्मा ‘राजे’  ने लिखा है। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि सैकड़ों शब्द वाले कथानक को सिर्फ दो शब्द क्यों कहा जाता है? बड़े-बड़े नामधारी इतिहास लेखकों की पुस्तकों में से कमियां निकालना बड़ा दुरूह कार्य है। पहले पुस्तक को पढ़ना, फिर अन्य पुस्तकों का संदर्भ लेना कि सही क्या है और गलत क्या है, कोई आसान बात नहीं है। ताज्जुब होता है कि श्री राजकिशोर शर्मा ‘राजे’ ने 75 साल की उम्र में इतना श्रमसाध्य कार्य कैसे किया होगा। इतिहास के प्रति उनका समर्पण देखते ही बनता है। वे भारत में अंग्रेज, ये कैसा इतिहास, मुगलों का अंत समेत कई चर्चित पुस्तकें लिख चुके हैं। इन पुस्तकों में वह सबकुछ है, जो आज की पीढ़ी को ज्ञात होना चाहिए।

मैं जब भी श्री राजकिशोर शर्मा ‘राजे से मिलता हूँ तो आश्चर्य में पड़ जाता हूँ। इतिहास से संबंधित तमाम तारीखें तो उनकी जिह्वा पर रहती हैं। वे 75 साल के हो चुके हैं और अध्ययन में रत हैं। इतिहास से संबंधित जो भी पुस्तक उन्हें मिलती है, खरीद लाते हैं और जुट जाते हैं पढ़ने में। वे सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं हैं, इसलिए ठीक से प्रचारित नहीं हो पाए हैं।

इतिहासकारों की भूलें पुस्तक में कुल 91 अध्याय हैं, जिनमें तमाम गलत तथ्य दिए गए हैं। सबसे पहला अध्याय पुरातत्वविद एसीएल कार्यालय की आर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट 1871-1872 का अंत्यपरीक्षण किया है। इसमें ऐसी त्रुटियां है जो इतिहास का विकृत करने वाली हैं। इस रिपोर्ट को सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है। जदुनाथ सरकार, एसआर शर्मा, डॉ. ईश्वरी प्रसाद, प्रो. चिंतामणि शुक्ल, राजेन्द्र प्रसाद जैन, डॉ. रामविलास शर्मा, बैनी प्रसाद वाजपेयी, सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, दामोदर विनायक सावरकर, डॉ. जयकिशन दास खंडेलवाल, इलियट एवं डाउन, बीएन लूनिया, डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव, बाबू वृंदावनदास, हरिशंकर मेहरा, बाला दुबे, इब्नबतूता, पुरुषोत्तम नागेश ओक, डॉ. प्रणवीर चौहान, सतीशचंद चतुर्वेदी, फ्रेंक्विस बर्नियर, शीरीं मूसवी, अमृतलाल नागर, मौलवी शुजाउद्दीन नक्शबंदी, अंशु मंगल, पद्मश्री केके मोहम्मद, खुशवंत सिंह, महाश्वेता देवी, सुरेन्द्र भारद्वाज, अहा जिन्दगी, विलियम डेलरिम्पल, भविष्य पुराण, अखंड ज्योति- डॉ. प्रणव पांड्या, रघुवीर सिंह, तैमूर लंग, शम्भूनाथ सिंह आदि लेखकों की पुस्तकों में भूलों के बारे में सप्रमाण अवगत कराया है। पुस्तक में 115 सहायक पुस्तकों का संदर्भ दिया गया है।

मैं श्री राजकिशोर शर्मा ‘राजे का आभारी हूँ कि उन्होंने ऐसी पुस्तक की रचना की है जो इतिहास के अध्यापकों और विद्यार्थियों के लिए संदर्भ पुस्तक है। यह पुस्तक इस तरह की है कि जिसके माध्यम से शोध किया जा सकता है।

Dr. Bhanu Pratap Singh