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Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -47: सतसंग में आने का क्या उद्देश्य होना चाहिए

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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निराशा किस बात की है, जब आपके साथ मालिक हरदम है, तब फिर क्या चिंता, क्या फिक्र, कोई क्या कर सकता है। जो कुछ जीव के उद्धार के लिए जरूरी है वह राधास्वामी दयाल कर सकते हैं या मुर्शिद कामिल कर सकते हैं या मुर्शिद कामिल से मिला हुआ कोई संत कर सकता है और कोई दूसरा नहीं कर सकता। आपके साथ रक्षक हमेशा मौजूद हैं, यह समझ लीजिए। वह आपकी रक्षा तभी करेगा जबकि आप जायज काम करेंगे। आपके अनैतिक कामों में वह आपसे प्रसन्न नहीं हैं। वह देख भी रहे हैं पैनी नजर से कि आप क्या कर रहे हैं। जो काम आपके लिए सही और दुरुस्त है उसमें वह हमेशा आपका साथ देंगे। इसलिए बहुत सोच-समझकर सतसंगग में आइए। सतसंग में आने का एक उद्देश्य होना चाहिए- अपने जीव के कल्याण का। जो सुख दुख है वह कर्मों का कारण भी हो सकता है। वह आप को शुद्ध करने के लिए भी भेजे जा सकते हैं। उनको जब आपने रक्षक मान लिया तो वह सारे वे उपाय करेंगे जिनसे कि आप निर्मल होते चले जाएंगे, मलीनता घटती चली जाए, जितने विरोधी अंग हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और विषय भोग वह दूर होते चले जाएंगे। इसलिए पहले पहचान लीजिए। वैसे आदमी को आदमी की पहचान तो है नहीं, वह संतों को कहां से पहचानेगा। अरे पिता तो मान सकते हो, बड़ा तो मान सकते हो। बड़ों का कहना मानने की हमारे यहां प्रथा रही है और जो बात बड़ों ने कही है हमेशा सच्ची कही है। फिर उनको कुछ मानो तो क्या हर्ज है भाई। जिस तरह से भी मानते हो उसी तरह से मानो और प्यार बढ़ाते चले जाओ। यह रिश्ता जो है वह व्यक्तिगत रिश्ता है। राधास्वामी दयाल से जो रिश्ता है सामूहिक रिश्ता है। इसलिए व्यक्तिगत रिश्ता सामूहिक रिश्ते में भी मददगार होता है। सामूहिक रिश्ता अगर तगड़ा है तो वह आसानी से पहचान भी करा देता है कि किससे कहां पर रिश्ता जोड़ना चाहिए चाहिए ताकि उनके धाम में पहुंच सकें। इसलिए ज्यादा मत घबराओ। वो आए हैं हमारे उद्धार के लिए, तो कैसे छोड़ेंगे। जो कोई भी उनके चरनों में आएगा, उनकी सरन लेगा, उसका उद्धार वो करेंगे।

 गुरु रक्षक सिर पर खड़े, कगा कमी तोहे दास।

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हमारा मत प्रेम और भक्ति का है। प्रेम, एक प्रेमी को अपने प्रीतम के अलावा और किसी का गुणानुवाद सुनने नहीं देगा। यह भी सही है कि 24 घंटे आप नहीं लगे रहते रह सकते। आपका रोजगार नहीं छुड़ाया जाता। आपका मनोरंजन नहीं छुड़ाया जाता। नशे की चीजों से परहेज करें। अपनी गृहस्थी को ठीक प्रकार से चलाएं। घर में शांति रहनी चाहिए और वह शांति बहुत कुछ आपके रवैये पर निर्भर करती है। आप खुद क्रोध करेंगे तो क्रोध की ज्वाला उठेगी और क्रोध जब आता है तो अपना आपा खो जाता है। इसलिए कहना यह है पुरुषों से कि अपने घर में शांति व्यवस्थित करने के लिए आपको बर्दाश्त भी करनी पड़ेगी और दृढ़ता भी दिखानी पड़ेगी। अपने सुमिरन, ध्यान और भजन पर ज्यादा ध्यान देना होगा। अगर यह काम महिलाएं करने लग जाएं, भजन और ध्यान पर अधिक जोर दें तो फिर कोई कुचाल नहीं चलेगी। आपके अंदर भी ऐसी क्षमता हो जाएगी कि आजकल के आधुनिक माहौल में जो बच्चे हमारे फंसते चले जा रहे हैं उनके ऊपर नकेल लग जाएगी । जमाना ऐसा नहीं है कि बच्चों को बहुत ज्यादा स्वच्छंदता दे दी जाए। थोड़ा नियंत्रण रखना पड़ेगा लेकिन नियंत्रण तब रख सकेंगे जब आप खुद नियंत्रित होंगे। खुद के नियंत्रित होने के लिए नाम का सुमिरन और गुरु स्वरूप का ध्यान रखकर करना पड़ेगा। यहां पहले आपका परमार्थ देखा जाएगा, तब आपका स्वार्थ देखा जाएगा। लोग स्वार्थ यहां पहले लेकर आते हैं। कोई बात नहीं है, अगर उनको परमार्थ की इच्छा है तो वह स्वार्थी परमार्थी कहलाएंगे और एक दिन परमार्थी बन जाएंगे।