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Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -42: रिश्ता खून का नहीं, प्रेम का होना चाहिए

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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जब हमारा संबंध मालिक से बन गया तो फिर क्या फिक्र है। उन संबंधियों को लेकर क्या करोगे जो सिर्फ स्वार्थ से जुड़े हैं। हमेशा याद रखो कि प्रेम का जो रिश्ता है उसी रिश्ते से बरताव आपस में एक दूसरे के साथ करना चाहिए। खून का रिश्ता नहीं होना चाहिए, प्रेम का रिश्ता चाहिए। आपका काम अर्ज करने से बनता है। उनकी दया से काम बनता है। उनकी मेहर से काम बनता है। वह हर चीज जानते हैं। अंतर्यामी भी हैं, लेकिन यह भी तरीका उन्होंने बनाया है कि आप अर्ज करें और फिर वह नर रूप में प्रगट हुए हैं इसलिए ताकि आप अपनी बात उनसे सीधे कह सकें। जब मालिक प्रगट हुए उसमें दुनिया की हालत इतनी खराब नहीं थी जितनी कि अब हो रही है। यानी दुनिया के जो रिश्ते हैं उनका भरोसा नहीं हो सकता। किसी पर कोई भरोसा नहीं कर सकते, तो उन्होंने स्वयं कहा कि हम पर भरोसा करके देख लो। इसलिए राधास्वामी दयाल की दया का मेहर का भरोसा रखिए। अपना नित्य प्रति अभ्यास भी जारी रखिए। भजन भी वह अपने आप बनाएंगे, वो चढ़ाएंगे सुरत को। इसलिए सत्संगी को आपस में न तो भिन्नता होनी चाहिए, न दूसरे के लिए गलत समझौती होनी चाहिए। दूसरे की निन्दा-स्तुति, बुराई, काट-छांट दुनियादार करते रहते हैं, फिर करम फल भोगते हैं। वे नहीं जानते कि इन कर्मों से चौरासी लाख योनियों में जाएंगे। कभी-कभी तो मालिक माफी भी देते हैं लेकिन दुनियादारी का व्यवहार सत्संग में ठीक नहीं है।

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हजूर महाराज के दरबार में प्रेम ही प्रेम है और कोई उससे बच नहीं सकता। जो आएगा वह रंगा जाएगा। कहा है कि रंग ही रंग बरसाओ। रंग से मतलब क्या है-  एक रंग वो जिससे आपको रंगा जाएगा और कौन सा रंग है- वो प्रेम का रंग है। उनका दिया हुआ प्रेम दीखता नहीं है, अंतर में सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। मालिक को न तो आपकी करनी का बदला लेना है, न मालिक आपसे नाखुश होता है, न मालिक आपको दुख देना चाहता है, मालिक आपके कष्टों को दूर करना चाहता है, उन कष्टों को जो कि आपके द्वारा किए गए कर्मों की वजह से बने हैं। सबसे ज्यादा वो क्या करता है- वो सुरत की सम्हाल करता है। उस समय न तो बीमार के तन की फिक्र, व मन की फिक्र, उन्हें तो सुरत की सम्हाल की फिक्र रहती है और जब सुरत की सम्हाल हो गई, सुरत में शक्ति आ गई तो मन कहां जाएगा और तन कहां जाएगा। फिर जैसी उनकी मौज होती है, काम पूरा होना है और काम पूरा होगा। संत सतगुरु जरूर जीव को मालिक के चरनों में पहुंचाएंगे।