Dadaji maharaj in agra

Radhasoami Guru दादाजी महाराज के अनमोल बचन -78: भ्रष्टाचार और व्यभिचार बढ़ने का कारण

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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राधास्वामी दयाल ने अपने दरवाजे सबके लिए खोल दिए हैं। बड़े और धन वालों के लिए भी तो छोटे और निर्धनों के लिए भी, अकलमंदों के लिए भी तो बेअक्लों के लिए भी, ऊंच-नीच मानने वालों के लिए भी। उनके दरबार में किसी के लिए कोई अंतर नहीं है। यह जितनी जात-पांत है वह सब संतमत के खिलाफ है और सत्संगी को इन मतभेदों में बिल्कुल विश्वास नहीं करना चाहिए। आज इस जमाने में जात का भेद तो नहीं मानते हैं लेकिन सबसे बड़ा भेद धन का मानते हैं। ये मानते हैं कि धनवान और निर्धन में कोई मेल नहीं हो सकता और इसीलिए भ्रष्टाचार और व्यभिचार बड़ा है। लोगों की मानसिकता बहुत गंदी हो गई है। इन अंगों से अपना बचाव भी नहीं करना चाहते। वह समझते हैं कि कोई अमर घुट्टी पी ली है लेकिन राधास्वामी दयाल के अलावा कोई उनको काल से नहीं बचा सकता है और इसलिए वक्त के गुरु को मुकर्रर किया गया है। जब तक उनके सामने दीन-अधीन होकर गुनाहों की माफी नहीं मांगोगे तब तक न तो काल से बचोगे और न ही दयाल के दरबार में दाखिल हो सकोगे।

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यह दुनिया अजीब कारखाना है। तरह तरह के लोग यहां हैं। कोई दुनिया के चाहने वाले हैं, कोई नामवरी के चाहने वाले हैं, उसमें बढ़ोतरी को देखते हैं, धन की बात करते हैं। धन को ऐसे जोड़ते हैं कि और जुड़ता चला जाए, खर्च ना होने पावे। कंजूस हैं तो दरियादिल भी हैं, जिन्हें कोई परवाह नहीं है। उमंग और प्रेम मालिक के चरनों में तो उस पर तन मन धन लुटाने को तैयार हैं। कुछ लोग शांत होकर अंतर अभ्यास पर जोर देते हैं। कुछ राधास्वामी मत की सच्ची समझौती चाहते हैं। ज्यादातर लोगों को ऐसे अभ्यासी गुरु की तलाश जरूर रहती है जो उनको सच्ची -सच्ची बात बता सके, उनसे यह अभ्यास करा सके और अपनी मदद उनको चढ़ाई में दे सके। कोई सच्चा खोजी है, कोई सच्चा दर्दी है और उसी को ऐसे महापुरुष मिल जाते हैं, जो अपने को निहायत छुपाए रखते हैं लेकिन खोजी को मिल ही जाते हैं।