basant panchami

बसंत पंचमी आज, आइए जानते हैं क्या है महत्ता और क्यों मनाते हैं?

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

श्रीसरस्वती देवी की व्युत्पत्ति एवं अर्थ

‘सरसः अवती’, अर्थात् एक गति में ज्ञान देनेवाली अर्थात् गतिमति । निष्क्रिय ब्रह्मा का सक्रिय रूप; इसीलिए उन्हें ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’, तीनों को गति देने वाली शक्ति कहते हैं ।

बसंत पंचमी पर श्रीसरस्वती पूजन का शास्त्रीय आधार

उत्तर भारत में बसंत पंचमी पर श्रीसरस्वती पूजन किया जाता है। इसका शास्त्रीय आधार इस प्रकार है – गणेश जयंतीपर कार्यरत ‘इच्छा’ संबंधी गणेश तरंगों के प्रभाव से नवनिर्मित ब्रह्मांड में एक मंडल (‘विद्यासे संबंधित पुरुषतत्त्व) कार्यरत होता है। इस मंडल की आकर्षण शक्ति के सूक्ष्म परिणाम से शक्तिरूपी तरंगें उत्पन्न होती हैं । इन्हें ‘प्रकृतिस्वरूप विद्या से संबंधित सरस्वती-तरंगें’ कहा गया है । श्री गणेश जयंती के उपरांत आनेवाले इस विद्यमान कनिष्ठ रूपी तारक तरंगों के प्रवाहमें  (‘विद्यमान’ अर्थात् तत्काल निर्मित होकर कार्य हेतु सिद्ध हुआ; ‘कनिष्ठ रूपी’ अर्थात् संपूर्ण तारकप्रवाहका अंश), ब्रह्मा की इच्छा का सरस्वती रूपी अंश होता है । इसलिए सरस्वती पूजन से जीव को इस अंशतत्त्व का आवाहन कर, जीव की देह में बुद्धिवेंद्र को जागृत कर, उसे सात्त्विक कार्य की दिशा प्रदान की जाती है ।

श्री सरस्वती देवी को ब्रह्मा की शक्ति क्यों मानते हैं?

महासरस्वती देवी एवं श्री सरस्वती देवी ने क्रमशः निर्गुण एवं सगुण, दोनों स्तरों पर ब्रह्मा की शक्ति बनकर ब्रह्मांड की निर्मिति में ब्रह्मदेव का सहयोग किया । श्री सरस्वती देवी अर्थात् ब्रह्मा की निर्गुण अथवा सगुण स्तरपर कार्यरत शक्ति। ‘ब्रह्मा की शक्ति उससे एकरूप ही होती है । आवश्यकतानुसार वह कार्यरत होती है ।’ मानव इस बातको समझ पाए, इसलिए कहते हैं, ‘श्री सरस्वती देवी ब्रह्मा की शक्ति हैं ।’

बसंत पंचमी की कथा

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे। तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई । जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती देवी को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं ।

बसंत पंचमी के दिन को माता सरस्वती का जन्मोत्सव

पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि, बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी । इस कारण बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा की जाती है। माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा बसंत का आरंभ हो जाता है। यह दिन नवीन ऋतु के आगमन का सूचक है। इसीलिए इसे ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है ।

 -कु. कृतिका खत्री,

सनातन संस्था, दिल्ली