Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -11: राधास्वामी नाम हमारा मित्र, मंत्र और सिद्ध

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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राधास्वामी दयाल की टेक बांधने में कोई हर्ज नहीं लेकिन वह टेक क्या है- वह यह है जो कुछ उन्होंने कहा है उसके अनुसार करना, यह है हमारी टेक। जो स्वामी जी महाराज ने कहा है उसको मानिए, जो हजूर महाराज ने कहा है उसको मानो। अपने से बड़े का संग करने में कोई हर्ज नहीं है और राधास्वामी दयाल को कुल मालिक मानना और राधास्वामी नाम लेकर हर एक के साथ प्यार से बरताव करना, कपट से नहीं, क्योंकि याद रखिए ऐसे पवित्र नाम को कपट के ढंग से लिया जाएगा तो वह मालिक को मंजूर नहीं है। जो नाम सारे कपट को समाप्त करता है उसको बहुत निष्कपट होकर सच्चे दिल से एक दूसरे से राधास्वामी कीजिए, मुंह में बंद करके नहीं, खोलिए मुंह को, यही एक हमारा मित्र, यही हमारा मंत्र, यही हमारा सिद्ध है। राधास्वामी नाम ही सच्चा नाम है और वही हमको सच्चे गुरु से मिलाएगा, काम भी बनवाएगा तो उस नाम को लेने में कोताही क्यों। इसलिए बस राधास्वामी नाम की टेक बांधिए, राधास्वामी दयाल की टेक बांधिए और फिर वक्त के गुरु का सत्संग और साथ कीजिए।

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अब अपनी फिक्र करो। राधास्वामी नाम को मानना, स्वामी जी महाराज को मानना, हजूर महाराज को मानना यह एक बात है। उसके बाद अब तुम्हारा काम समकालीन अभ्यासी गुरु से चलेगा। बिना उसके काम नहीं चल सकता। कब तक टेक में पड़े रहोगे। स्वामी जी महाराज ने सेवाबानी में वर्णन किया है तो सेवा किसकी करेंगे? जब तक स्वामी नहीं होगा तब तक सेवा किसकी की जाएगी? भक्ति करने के लिए भगवंत चाहिए और भक्त चाहिए। इसलिए कब तक अटकते रहोगे और भटकते रहोगे? क्या मिला है सिवाय दुख के? लेकिन अब भी नहीं चेतते हैं, टेक बांधे पड़े हैं। कैसे समझाया जाए जो सच्चा मददगार है वह आपसे कोई बात कड़वी कहना नहीं चाहता है जो आपको तकलीफ पहुंचाए। वो तो इशारे में बात करते हैं लेकिन समय पर इशारा समझ लेना चाहिए। कई पीढ़ियां ऐसी निकल गई जिनको कि गुरु देखने को ही नहीं मिला और इस बात पर गर्व करते हैं कि चार वक्त का सत्संग हो रहा है। तुम दिनभर सतसंग करो, किसने मना किया है। दुनियादार भी अखंड पाठ करते हैं तो करते चले जाते हैं, तुम कौन सी अचरज की बात कर रहे हो। तुम दुनियादारों को ढोंगी कहते हो, क्यों? उनके अंदर भाव तो है, भक्ति तो है, सिर्फ यही है कि वह यह नहीं जानते हैं कि भक्ति कहां करनी चाहिए तो वह तुम भी नहीं जानते हो। तुम भी किसी न किसी की टेक बांधे बैठे हुए हो. जिसको आंख से नहीं देखा। क्या विशेषता है तुम्हारे अंदर? हां, जिन्होंने दर्शन किए हैं, जिन्होंने संग किया है, वो तो ठीक है, उनकी तो मदद पूरी और पक्की है, लेकिन जिन्होंने सिर्फ कहानियां सुनी हैं, कथाएं सुनी हैं और संग  उन साधों का या भक्तों का नहीं किया है, तो सिर्फ उससे नजीर तो मिल सकती है कि रैल भक्ति करनी है, लेकिन मार्ग हाथ तभी आएगा जबकि अपने समय के गुरु को ढूंढ लेंगे, उनकी सेवा करेंगे, उनके भजन सुनेंगे, अपने संशय और भरम दूर करेंगे।