dadaji satsang

राधास्वामी गुरु Dadaji maharaj के अनमोल बचन -73: यहां पर तत्काल टिकट मिल रहा है

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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बड़भागी वही जीव है जिसने राधास्वामी दयाल की चरन सरन ग्रहण की है और किसी सच्चे प्रेमी से, सच्चे अभ्यासी से, साध गुरु से या भाग से संत सतगुरु मिल गए हैं तो उनसे उपदेश लेकर अंतर्मुख कार्यवाही करना शुरू कर दे, तब उसका काम होगा तत्काल। यहां पर तत्काल टिकट मिल रहा है। आइए और टिकट लीजिए, सफर कीजिए और पहुंचिए। पहुंचाने वाला मौजूद। किसी किस्म का खतरा नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता है कि आपकी गाड़ी किसी स्टेशन पर आकर खड़ी हो जाए। सत्संग बेड़ा है। तरह-तरह की जीव आते हैं और जो कोई भी आता है उसका मुख्य उद्देश्य होता है कि सत्संग करे, बचन सुने, दर्शन करे और इसी तरह से चौरासी लाख योनियों में भटका खाने से छूटे, नरदेही का भागी होवे, अभ्यास करके अभ्यासी बने और फिर उनकी गति प्राप्त करे, एक दिन सतपुरुष राधास्वामी के चरनों में जाकर मिले। इस उद्देश्य को लेकर जो इस भाव और भक्ति के साथ में आता है वो यहां से कोरा नहीं जा सकता।

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मालिक उसी की मदद करेगा जो दीन-गरीब है। यह मत दीन-गरीबी का है। इसलिए हम लोगों को दीनता के साथ, प्यार के साथ, कम से कम एक दूसरे से व्यवहार करना चाहिए। जब हम एक दूसरे से अच्छा व्यवहार करेंगे तो हमारे हाथ से परोपकार ही होगा, दूसरे की भलाई होगी, दूसरे की बुराई और कटाई नहीं होगी। यह काट छांट करना, व्यंग्य करना, तान-तंज करना, एक दूसरे को सुखी न देखना, यही निपट नीच दुनियादारी है। सतसंगी और सतसंगिनों में यही भाव बना रहा तो आप और दुनियादारों से कैसे अलग हुए? आपने कितना सत्संग किया है? आपने राधास्वामी नाम का कितना सुमिरन किया है? कितना स्वरूप का ध्यान किया है? कितना धुन को सुना है? अगर जीव भजन का रसिया होता तो दशा और ही होती। तब मन इधर दुनिया में नहीं रमता, मान बड़ाई नहीं चाहता। एक परमार्थी अपनी तारीफ सुनकर रो देता है जबकि दुनियादार की जरा सी बड़ाई करो तो फूल कर कुप्पा हो जाता है।