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राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल Quotes -5: सतसंग में किस तरह बैठें और किस तरह सुनें

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादाजी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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सतसंग में जब बैठिए तो एक आसन ले लीजिए, शरीर को बहुत ज्यादा हिलाने की कोशिश मत कीजिए। आंख से आंख मिलाने की कोशिश कीजिए और कान कड़ियों पर, शब्दों पर लगे रहने चाहिए। यानी एक घंटा- डेढ़ घंटा जो सत्संग होता है उसमें पूरी एक्सरसाइज है। उसमें एक क्षण व्यर्थ गंवाने का नहीं है। हर घड़ी पर निगाह भी रखनी है, आंख से दर्शन भी करना है यानी कान भी ठीक रखना है, आंख भी ठीक रखनी है। मुंह से बोलना नहीं है। एक आसन से बैठना है और ऐसे देखना है कि पलक से पलक ना मिलने पाए। अगर तीसरे दिल पर बैठने की आदत आ गई है और सुरत और मन को समेट लेते हो तो आंख बंद करके वहां पर ध्यान कीजिए लेकिन कान पोथी कि हर कड़ी पर होना चाहिए और जैसे-जैसे चढ़ाई के शब्द स्थान स्थान पर आते जावें, उस तरीके से तीसरे दिल से लेकर सत्तलोक तक, जो सब आपको बताया गया है, उसमें अपनी सुरत और मन को लगाइए। यह आसान काम नहीं है। जो उच्चकोटि के अभ्यासी हैं वही करते हैं। सत्संग के वक्त जो नींद आती है, गफलत आती है, यह कमी है, या तो कोई शारीरिक कष्ट है, लोगों को बैठे-बैठे सोने की आदत हो जाती है लेकिन जागते पुरुष के संग जागते रहना होगा। इसलिए यहां जो जाग्रत का संग है, जागता पुरुष है, जो कुल मालिक का प्रतिनिधि और आपको भी वह जगाने आया है, बताने आया है कि मन और इंद्री और यहां के जो विकार और भोग विलास हैं, वह सब भरमाने वाले, भुलाने वाले और आप को फंसाने वाले और अंत में चौरासी  ले जाने वाले हैं। इनसे बचकर होशियार रहिए। इसलिए हर वक्त सतर्क रहना चाहिए, हरदम ताजा रहना चाहिए और सत्संग से बढ़कर और ताजगी देने वाली चीज कहां है। आप जागते पुरुष का संग करते हैं, इसलिए जागिए। हजूर महाराज का हुक्म है कि जगाओ, चरनों में लगाओ, दर्शन कराओ, सुरत को चढ़ाओ और पहुंचाओ, उनकी दया अंग-संग रहती है।

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