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राधास्वामी गुरु Dadaji maharaj के अनमोल बचन -69: डरना भी जरूरी है

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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देखने में आता है कि दोनों चीजें शौक और खौफ गायब हैं। ना खौफ है और नहीं शौक है, न तो अपनी करने से खौफ है। क्या करते हैं? जन्म मरन की बात तो बहुत दूर है, यह समझ बैठे हैं कि वह विशेष हैं और जितना जियो उतने दिन तो मौज से रहो, आगे की देखी जाएगी। एक जमाना था कि डर सबको था। मां-बाप से बच्चे डरते थे। पति से पत्नी भी डरती थी। बड़े बुजुर्गों का आदर होता था। उनसे डर लगता था कहीं कोई गलत बात हमसे न बन जाए, इसकी शिकायत घर तक न पहुंच जाए और उसी का नतीजा था कि लोग अपनी नैतिकता को कायम रख सके। वह डर बिल्कुल गायब है, लेकिन थोड़ा बहुत डर हर एक को होना चाहिए अपनी करनी का, यही सच्चा खौफ है। जो लोग अपनी मुक्ति चाहते हैं, इस जन्म मरन से आजिज आ गए हैं, यहां के दुखों से परेशान हैं, यहां की दिन-प्रतिदिन की तकलीफों से परेशान हैं, उनको इस बात में दिलचस्पी होगी कि कोई सच्चा मार्ग, कोई सच्चा मत ऐसा है जहां पर जाकर सच्ची शांति मिल सकती है, सच्ची सुरक्षा प्राप्त हो सकती है, इन आततायियों और आतंकियों से बचाव हो सकता है, रक्षा हो सकती है, हम इस नरदेही को सफल कर सकते हैं और जो काम इन नरदेही में किया जाना है, उसको पूरा कर सकते हैं, तो उनको यह जिज्ञासा होगी, उन्हीं को सच्चा शौक है। इसलिए हम लोगों के अंदर खौफ और डर होना चाहिए। आप किसी के भी लिए कोई बात बिना तौले हुए मुंह से बाहर मत निकालिए। हर आदमी को स्वयं की ओर निहारना भी चाहिए कि उससे क्या गलती बनी और उसका प्रायश्चित करना चाहिए। दूसरे के बारे में बार-बार कोई बात नहीं कहनी चाहिए। दूसरे सच्चा शौक आपको अपनी नरदेही को सुधारने का है तो नाम के सुमिरन से, बचन की धार से, अंतर में सुरत और शब्द को लगाने के अभ्यास से (यदि वास्तव में लग जाए, इतना आसान नहीं है, दुनिया भर के ख्याल भजन के वक्त भी पैदा होते है), लेकिन इस करनी के करने से मालिक आपका सहाई और रक्षक हैं। उन्हीं का भरोसा कीजिए। राधास्वामी दयाल रक्षक हैं। जिन्हें संत सतगुरु मिले उनका बड़ा भाग है। सतगुरु से बड़ा रक्षक और कोई दूसरा हो नहीं सकता। आप शौक के साथ सतसंग कीजिए। शौक के साथ चरनों में लगिए, खौफ तो वह अपनी दया से आप मिटा देंगे।

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संकट की घड़ी एक तरह से मौका भी देती है, सच्चे मालिक के चरनों में लगने का, अपने इष्ट और इश्क को मजबूत करते जाने का। अपना रिश्ता मजबूती के साथ सत्संग से बांधे रहो, तुम्हारी रक्षा और सम्हाल करना मालिक के जिम्मे है, लेकिन जो प्राणी दिशा को भूले हुए हैं उनसे बचाव करना होगा। मालिक को जो नहीं मानता, उसका उद्धार नहीं हो सकता। हजूर महाराज ने प्रेम और भक्ति का मार्ग जारी किया है, उस पर चलते रहो दृढ़ता के साथ, लेकिन दरे हजूर को नहीं छोड़ना। वहां पर हाजिरी नहीं छोड़नी है। देखिए, यह भक्ति और प्रेम का मार्ग है। इसमें आप लगे रहिए और अपने साथी से भी कहते जाइए कि इस प्रेम और भक्ति के मार्ग में लगो। मानना या न मानना उस पर छोड़िए। जो कोई मानेगा वह अपना भला करेगा, जो कहना नहीं मानेगा अपनी करता चला जाएगा, अपने अंगों पर नियंत्रण नहीं करेगा तो वह अपनी करनी अपने आप भोगेगा। इसमें कोई दूसरा कुछ नहीं कर सकता। इसलिए हमको अपने कल्याण से मतलब है और इसके लिए घर में सतसंग होना चाहिए, नितप्रति अभ्यास होना चाहिए-

प्रेम  से   प्रेम  को  पाते  चलो।

सतसंग में चित को लगाते चलो।।