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Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -49: अभ्यास में बैठ जाइए और फिर सब कुछ मालिक पर छोड़ दीजिए

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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सब सतसंगियों को यह समझना चाहिए कि अपना अभ्यास और सतसंग जारी रखें। यह कभी न सोचें कि उनका उद्धार नहीं होगा। निराश नहीं होना। आपकी वजह से न जाने कितने जीव चरनों में लग सकते हैं और उनका उद्धार हो सकता है।

 मैं लिखूं गुरु को पाती मन कीन्हीं बहुत उत्पाती।

इसलिए यह खत तो ऐसा है कि एक से दूसरा, चाहे जितने पढ़ें। यहां तो चरनों में लगाया जाता है और उसके बाद उसका उद्धार मालिक करते हैं। जैसे बने वैसी करनी करनी चाहिए यानी अभ्यास में बैठ जाइए और फिर सब कुछ छोड़ दीजिए। इस बात की फिक्र मत कीजिए कि क्या देखा, क्या सुनाई दिया, क्यों नहीं दिखा, क्यों नहीं सुनाई दिया। आपको तो प्रीत गहरी और गाढ़ी राधास्वामी दयाल के चरनों में और संत सतगुरु के साथ होनी चाहिए। यहां तक तो कह दिया कि प्रेमियों में भी आपस में प्रीत -प्रतीत रहेगी तो वह भी फायदा करेगी। कहने का मतलब यह है कि राधास्वामी दयाल की जोड़ने की नीति है, तोड़ने और छोड़ने की नहीं। जैसे बने तैसे, चाहे नकल ही हो, उसमें भी पास कर देते हैं यानी आप का उद्धार करके मानेंगे। इसलिए किसी किस्म की निराशा मन में नहीं लानी चाहिए। बहुत घबराना और परेशान भी नहीं होना चाहिए। जो कर्म बन गए हैं उनको बहुत धीरे से काट देंगे। आगे आपका बरताव और रक्षा उनके हाथ में है, आप उनको आगे लेकर चलें, आप भूले नहीं।

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जो वो फरमाते हैं उसको ग्रहण करिए। आपको जो समझाया जाए वह समझिए। क्या वजह है कि पाठ में दिलचस्पी नहीं आती। बचन सुनने में दिलचस्पी नहीं आती। दूसरे की निंदा स्तुति की आदत पड़ गई है। धीरे-धीरे यह जाएगी। जितने दक्ष आप होते जाएंगे वह आपके लिए फायदेमंद है। मालिक को सुधार मंजूर है। जब मालिक आपकी हर नालायकी को सहन कर सकता है तब फिर आप एक दूसरे की निंदा स्तुति क्यों करते हैं। अपने काम पर ध्यान क्यों नहीं देते। जान लीजिए कि कोई दया से महरूम नहीं रहेगा। एक  दिन का किया हुआ भजन भी बेकार नहीं जाएगा। इसलिए परमार्थी कार्य में दिलचस्पी रखिए। दूसरी जगह ज्यादा ठहरने की जरूरत नहीं है। जितना काम है, उतना ठीक है। जो सतसंग धार बह रही है उसमें नहाना है। यह सतसंग तो शक्ति का स्रोत है और सबको शक्ति देने वाले राधास्वामी दयाल हैं। आपको राधास्वामी दयाल का पता है। राधास्वामी नाम की महिमा आप जानते हैं तो क्यों नहीं राधास्वामी नाम का सुमिरन किया जाए, उनकी महिमा की जाए, राधास्वामी दयाल से प्रार्थना की जाए, क्यों न अपने समय के गुरु पर सब कुछ समर्पित कर दिया जाए। इसमें निष्क्रियता नहीं है, सबसे ज्यादा सक्रियता है। फिर तुम्हारी मर्जी है, दृष्टि तो यहां पर डाली जाएगी, उसको ग्रहण करना, न करना यह तुम्हारा काम है।