Swami Ji Maharaj dadaji maharaj

राधास्वामी मत के संस्थापक स्वामी जी महाराज का भंडारा आज, पढ़िए अनकही कहानी

INTERNATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

कोरोनावायरस के चलते हजूरी भवन में इस बार नहीं आ रहे हजारों भक्त

मत के आचार्य दादाजी महाराज गुरुओं के कार्य को कर रहे पूर्ण

Agra (Uttar Pradesh, India) स्वामी जी महाराज व हजूर महाराज, राधास्वामी मत के आदि गुरु हैं। द्वितीय आचार्य हजूर महाराज ने इसी जगह से अपनी दया लुटाई तथा सहस्त्रों जिज्ञासुओं को उपदेश देकर उनकी आंतरिक व्याकुलता को शांति प्रदान की और माया के मोहपाश से उन्हें मुक्त कराया। इस केन्द्र की आचार्य परंपरा में संप्रति दादाजी महाराज, गुरुओं के पुराने कार्यों को पूरा कर रहे हैं। हजूर महाराज के बाद इस कार्य को इस केन्द्र को परम पुरुष पूरन धनी लाला जी महाराज, परम पुरुष पूरनधनी कुंवर जी महाराज ने पूरा किया। दादाजी महाराज, कुंवर जी महाराज के ज्येष्ठ पौत्र हैं।

छह जून को स्वामी जी महाराज का भंडारा है। राधास्वामी मत के आदि केन्द्र हजूरी भवन (पीपल मंडी, आगरा) में हजारों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन इस बार स्थिति अलग है। कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन है, जिसके चलते सार्वजनिक कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया है। हजूरी भवन, परिसर में रहने वाले ही सामाजिक दूरी का पालन करते हुए सतसंग करेंगे। भंडारा स्थगित होने के बारे में सतसंगियों को पहले ही सूचित किया जा चुका है।

परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज के लिए सबकुछ, उनके हर पल, हर क्षण के आधार, आखों के तारे, पुरनूर कुलमालिक परम पुरुष पूरन धनी स्वामी जी महाराज राधा स्वामी साहब ने अपने अतिप्रिय (बड़े हंस) हजूर महाराज के आग्रह व विनती पर ही बसंत पंचमी के पुण्य दिवस पर 1861 ई. में राधास्वामी सतसंग की स्थापना की थी।

सतगुरु से करूं पुकारी संतन मत कीजे जारी

जीवों का होय उद्धारी मैं देखूं यही बहारी।

स्वामी जी महाराज 25 अगस्त 1818 को एक खत्री परिवार में अवतरित हुए। छह वर्ष की अल्प आयु में आपने योगाभ्यास शुरू किया। शीघ्र ही परमसंत के रूप में उनकी ख्याति चहुंओर फैलने लगी। उन्होंने गृहस्थ जीवन में रहकर ऐसा योग करके दर्शाया जो अपने आप में अनूठा है, अलौकिक है, अद्वितीय है, जिसने समूचे विश्व को आश्चर्यचिकत कर दिया। हजूर स्वामी जी महाराज लगातार तीन-तीन, चार-चार दिन तक योगाभ्यास में लीन रहते और किसी प्रकार की भौतिक और शारीरिक जरूरियात की आवश्यकता महसूस नहीं होती थी। हर पल, हर क्षण में अपने निज धाम में ही रहते थे और थोड़ा खफीफ सा (अतिसूक्ष्म) संपर्क यहां (दुनिया) से रहता था। किसी युग में भी ऐसा योगाभ्यास नहीं दीख पड़ता। उनके रोम-रोम से करोड़ों सूर्यों के प्रकाश से भी कहीं अधिक तेज निकलता था और सदैव बरसता था अमृत। चहुं ओर रहता था अति सुगंधित दिव्य वातावरण। केवल 59 वर्ष की आयु में ही जो मुखड़े पर बुजुर्गी थी, जो स्वरूप विद्यामान रहता था, उससे साफ विदित होता था कि यही सबसे बड़े मालिक हैं, कुल करतार हैं, रखवार हैं, कुल विधाता हैं, पुरुष पुराने हैं।

चलो री सखी मिल आरत गावें

ऋतु बसंत आए पुरुष पुराने।

किशोरावस्था में उनके मुखारबिन्द से उच्च दार्शनिक विचार व आध्यात्मिक उपदेश सुनकर लोग भावविभोर हो जाते थे। उनकी आध्यात्मिक शक्ति बंजर भूमि को उर्वरा बनाने व सूखाग्रस्त क्षेत्र में वर्षा कराने में सक्षम थी। स्वामी जी महाराज के बचनों की धार बिजली से भी तेज गति की होती थी और यह हजूर महाराज की ही सामर्थ्य थी कि वे उसे ग्रहण कर सकें। बाद में हजूर महाराज साहब ने उन बचनों को ‘सार बचन छंदबंद’ में एवं ‘सार बचन बार्तिक’ नाम देकर प्रकाशित करवाया। स्वामी जी महाराज ने निजधाम सिधारने की मौज 15 जून, 1878 को फरमाई। उनकी समाध आगरा से पांच किलोमीटर दूर स्वामी बाग में स्थित है। इसे दयालबाग मंदिर भी कहा जाता है।

स्वामी जी महाराज के बारे में

मूल नामः सेठ शिवदयाल सिंह

जन्मः 25 अगस्त, 1818

स्थानः पन्नी गली, आगरा, उत्तर प्रदेश

भाषाः हिन्दू, उर्दू, फारसी, गुरमुखी

विवाहः नारायनी देवी (फरीदाबाद)

उपलब्धिः राधास्वामी मत की स्थापना, सुरत शब्द योग की साधना।

भक्तों में प्रसिद्धः स्वामी जी महाराज

रचनाएं- ‘सार वचन बार्तिक’ (सार वचन गद्य- 1878 तक सतसंग में दिए गए प्रवचन, मत की शिक्षाएं)

‘सार वचन छंद बंद’ (सार वचन पद्य- अवधी, बृजभाषा, राजस्थानी, पंजाबी आदि भाषाओं में पद्यात्मक अभिव्यक्ति)

उत्तराधिकारीः हजूर महाराज

परमतत्व में विलीनः 15 जून, 1878, पन्नी गली, आगरा, उत्तर प्रदेश