‘पद्म भूषण’ साहित्‍यकार विष्णु प्रभाकर का जन्मदिन आज

‘पद्म भूषण’ साहित्‍यकार विष्णु प्रभाकर का जन्मदिन आज

साहित्य


अपने साहित्य में भारतीय वाग्मिता और अस्मिता को व्यंजित करने के लिये प्रसिद्ध विष्णु प्रभाकर का आज जन्मदिन है। 21 जून 1912 को उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर अंतर्गत गांव मीरापुर में जन्‍मे विष्णु प्रभाकर की मृत्‍यु 11 अप्रैल 2009 को दिल्‍ली में हुई थी।
विष्णु प्रभाकर ने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृत्तांत और कविता आदि प्रमुख विधाओं में अपनी बहुमूल्य रचनाएँ की हैं। प्रभाकर जी ने आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के प्रत्येक क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की थी। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करने वाले विष्णुजी जीवन-पर्यन्त पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य साधना करते रहे।
विष्णु प्रभाकर का एक अन्य नाम ‘विष्णु दयाल’ भी था। इनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद था, जो धार्मिक विचारधारा वाले व्यक्ति थे। प्रभाकर जी की माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं, जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का घोर विरोध किया था। प्रभाकर जी की पत्नी का नाम सुशीला था। शिक्षा विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर गांव में हुई थी। उन्होंने सन् 1929 में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की।
इसके उपरांत नौकरी करते हुए पंजाब विश्वविद्यालय से ‘भूषण’, ‘प्राज्ञ’, ‘विशारद’ और ‘प्रभाकर’ आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण कीं। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से ही बीए की डिग्री भी प्राप्त की थी। व्यवसाय प्रभाकर जी के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। यही कारण था कि उन्हें काफ़ी कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ा था। वे अपनी शिक्षा भली प्रकार से प्राप्त नहीं कर पाये थे। अपनी घर की परेशानियों और ज़िम्मेदारियों के बोझ से उन्होंने स्वयं को मज़बूत बना लिया। उन्होंने चतुर्थ श्रेणी की एक सरकारी नौकरी प्राप्त की। इस नौकरी के जरिए पारिश्रमिक रूप में उन्हें मात्र 18 रुपये प्रतिमाह का वेतन प्राप्त होता था। विष्णु प्रभाकर जी ने जो डिग्रियाँ और उच्च शिक्षा प्राप्त की उनके जरिए अपने घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह निभाया।
मुख्य रचनाएँ
‘अर्द्धनारीश्वर’, ‘आवारा मसीहा’, ‘क्षमादान’ तथा ‘पंखहीन’ (आत्मकथा) आदि।
पुरस्कार-उपाधि
‘पद्म भूषण’, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ‘पाब्लो नेरूदा सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ और ‘शलाका सम्मान’।
अन्य जानकारी
कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य लिखने के बावजूद शरतचन्द्र की जीवनी ‘आवारा मसीहा’ उनकी पहचान का पर्याय बन गयी।
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh