ओवैसी ने शुरू कीं लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां, यूपी की 80 सीटों पर नजर – Up18 News

ओवैसी ने शुरू कीं लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां, यूपी की 80 सीटों पर नजर

POLITICS

 

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। 2024 में होने वाले आम चुनाव को लेकर ओवैसी की नजर देश की सबसे अधिक 80 सीटों पर प्रदेश पर है। इसके लिए वे एक नए राजनीतिक समीकरण को यूपी की राजनीतिक जमीन पर उतारने की तैयारी में हैं।

समाजवादी पार्टी ने माय(मुस्लिम-यादव) और बहुजन समाज पार्टी ने दलित-मुस्लिम-ओबीसी समीकरण के जरिए यूपी की राजनीति को करीब तीन दशकों तक प्रभावित किया। भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले यूपी के राजनीतिक मैदान में सवर्ण-गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को एकजुट कर बड़ी सफलता दर्ज की। इस समीकरण में पार्टी की ओर से अन्य वर्गों को जोड़ने में पार्टी को सफलता मिलती दिखी है।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 49 फीसदी से अधिक वोट बैंक हासिल किया था। इस स्थिति को देखते हुए असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम-दलित-आदिवासी (MDA) समीकरण को आगे बढ़ाने पर जोर दिया है। अखिलेश यादव के PDA (पिछड़ा दलित एलायंस) के जवाब में इस नए समीकरण को देखा जा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कई मसलों पर अपनी राय रखी। उन्होंने दलितों, मुसलमानों और आदिवासियों के राजनीतिक सशक्तिकरण के प्रति अपनी पार्टी की प्रतिबद्धता दोहराई।

पटना में विपक्षी दलों की बैठक को आप कैसे देखते हैं?

यह पुराने स्कूली बच्चों के नेटवर्क जैसा था। यह एक एलीट राजनेताओं का एक समूह है, जिन्होंने यह तय कर लिया कि भाजपा को हराने का अधिकार केवल उनके पास है। वे सोच रहे हैं कि केवल वे ही भाजपा को हरा सकते हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक इतिहास को भी नजरअंदाज करने का विकल्प भी चुना है। आप देखेंगे कि उनमें से अधिकांश ने भाजपा के साथ काम किया था और उनमें से कुछ ने एक से अधिक बार ऐसा किया है।

क्या आप इस पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे?

मेरी मानना है कि वे सांप्रदायिक ताकतों को हराने की विचारधारा का समर्थन नहीं करते हैं। इस बैठक के आयोजन की भूमिका निभाने वाले नीतीश कुमार को ही ले लीजिए। उन्होंने अपनी राजनीति में धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की जगह भाजपा को चुना। गोधरा कांड के दौरान वे केंद्र में रेल मंत्री थे। गुजरात में जब नरसंहार हुआ, तब वह भाजपा के साथ रहे। बिहार का सीएम बनने के लिए उन्होंने भाजपा का साथ लिया। शिवसेना के मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा के अंदर खड़े होकर कहा कि उन्हें गर्व है कि शिवसेना ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस में भाग लिया था। अरविंद केजरीवाल ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में भाजपा का समर्थन किया था। कांग्रेस के कारण ही भाजपा केंद्र में दो बार सत्ता में आई थी। भाजपा से मुकाबला करने की वैचारिक प्रतिबद्धता कहां है?

आपके अनुसार इस विपक्षी एकता का भविष्य क्या है?

निजामुद्दीन औलिया की फारसी कहावत है, हनुज दिल्ली दूर अस्त (दिल्ली अभी दूर है)। यह कहावत आपके सवाल के जवाब को बेहतर तरीके से बताती है।

आपके अनुसार विपक्ष की ओर से संभावित पीएम उम्मीदवार कौन होगा?

हम नहीं चाहते कि 2024 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें। इसके लिए सभी 543 लोकसभा सीटों पर राजनीतिक लड़ाई लड़नी होगी। अगर नरेंद्र मोदी के खिलाफ आमने-सामने लड़ने के लिए कोई चेहरा होगा तो इसका फायदा भाजपा को होगा।

बैठक के लिए एआईएमआईएम को आमंत्रित नहीं किया गया था और न ही बसपा को, क्या कहेंगे आप?

एआईएमआईएम को बैठक में आमंत्रित नहीं करना उनके राजनीतिक अहंकार को दर्शाता है। इससे पता चलता है कि वे उस बैठक में किसी को भी मुस्लिम चेहरे स्वीकार नहीं हैं। वहां हर जाति और समुदाय के नेताओं को आमंत्रित किया गया था। उन्होंने दलित समुदाय की सबसे बड़ी नेता मायावती को भी नहीं बुलाया। आप उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। खासकर तब जब सपा के अखिलेश यादव दावा करते हैं कि वह यादव समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।

नीतीश कुमार कहते हैं कि वह कुर्मियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। तेजस्वी यादवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ममता बनर्जी कहती हैं कि उनकी ‘गोत्र’ ऊंची जाति है। राहुल गांधी की पार्टी ने कहा है कि वह जनेऊधारी हैं। शरद पवार मराठों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं।

क्या आप कहना चाहते हैं कि बैठक में दलितों और मुसलमानों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं था?

विपक्षी बैठक में भाग लेने वाली पार्टियों को दलितों, मुसलमानों और आदिवासियों के राजनीतिक सशक्तिकरण से एलर्जी है। वे चाहते हैं कि हम तीनों अनुयायी बनें। वे नहीं चाहते कि हम समान राजनीतिक भागीदार बनें।

लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में कांग्रेस, बसपा या किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन की संभावनाओं को आप कैसे देखते हैं?

मैं उन पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं कर कर सकता हूं, जिन्हें मुसलमानों को समानता देने के विचार से भी एलर्जी है। मैं उन पार्टियों के साथ गठबंधन करने के लिए नहीं मर रहा हूं, जिन्हें मुसलमानों के सशक्तिकरण से दिक्कत है। क्या ये दल एक साथ खड़े होकर कह सकते हैं कि चुने जाने पर वे यूएपीए को रद्द कर देंगे, जिसका कांग्रेस ने 2019 में समर्थन किया था। यूएपीए के कारण सैकड़ों लोग वर्षों से जेल में बंद हैं। जहां तक बीएसपी का सवाल है तो इस मुद्दे पर न तो हमने उनसे बात की है। न ही उन्होंने हमसे संपर्क किया है।

क्या यह ऐसा तो नहीं कि पहला कदम कौन उठाएगा?

नहीं-नहीं। इसमें अहंकार के शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं है। सच तो यह है कि हम दोनों में से किसी ने भी इस बारे में एक-दूसरे से बात नहीं की है। मुझे नहीं पता कि भविष्य में क्या होगा? लोकसभा चुनाव के लिए एआईएमआईएम यूपी में गठबंधन के लिए तैयार है।

2017 के चुनावों में आपके ‘जय भीम-जय मीम’ के फॉर्मूले को आकार देने के प्रयासों की क्या संभावनाएं हैं?

हम दलितों, मुसलमानों और आदिवासियों का राजनीतिक नेतृत्व करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारतीय राजनीति की कड़वी सच्चाई यह है कि हर दूसरी जाति और समुदाय के पास अपने नेतृत्व की झलक है। लेकिन मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों के पास कोई स्वतंत्र राजनीतिक नेतृत्व नहीं है, जिसे राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हो।

एआईएमआईएम और सपा के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं। क्या इसकी वजह यह है कि दोनों का ध्यान मुस्लिम वोट बैंक पर है?

सेलेक्टिव भूलने की बीमारी अच्छी नहीं है। सपा और कांग्रेस दोनों ने मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है और कुछ नहीं। जब मुजफ्फरनगर दंगों में 50,000 मुस्लिम विस्थापित हुए थे, तब अखिलेश मुख्यमंत्री थे। वह एक बार भी उनसे मिलने नहीं गए। 1980 के दशक में मुसलमानों ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बड़े पैमाने पर वोट दिया था। पुलिस फायरिंग में सबसे ज्यादा लोग मुरादाबाद में मारे गए, वो भी ईद के दिन। आप उसे क्यों भूल रहे हैं, कांग्रेस सरकार और शरद पवार ने मुसलमानों को आरक्षण क्यों नहीं दिया? महाराष्ट्र में जब वे सत्ता में थे, बंबई हाई कोर्ट ने कहा था कि हां, मुसलमान शैक्षिक रूप से सबसे पिछड़े हैं।