Agra, Uttar Pradesh, India. नेपाल केसरी व मानव मिलन संस्थापक जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने कहा कि जहां भक्ति होती है, वहां घृणा हो ही नहीं सकती। भक्ति से तो प्रेम का सागर उमड़ता है। करुणा की धारा प्रवाहित होती है। शांति और सद्भावना की प्रेरणा दी जाती है। जैन मुनि ने कहा कि हम पर कितना भी कोई संकट आए, भगवान से कभी शिकायत नहीं करनी चाहिए, बल्कि हमें धन्यवाद देना चाहिए कि हमें एक दिन का सूरज और देखने का मिला। इससे मन में सरलता आएगी और जीवन सार्थक हो जाएगा।
जैन स्थानक, राजामंडी में प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने कहा कि शरीर गंदगी से भरा है, फिर भी लोग उससे प्यार करते हैं। कई लोग तो शरीर को चमकाने के लिए बार-बार स्नान करते हैं। पाउडर क्रीम, न जाने क्या क्या लगाते हैं। मन में यदि श्रद्धा नहीं है तो शरीर को कितना भी चमका लो कोई लाभ नहीं है। मन में पवित्रता नहीं होगी तो धार्मिकता कैसे होगी।
जैन मुनि ने राम भक्त शबरी के प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि पंचवटी में भीलनी शबरी को संतों ने अपने आश्रमों में आश्रय नहीं दिया। उसने संतों के आश्रम की समीप ही अपनी झोंपड़ी बना ली और जब भगवान श्रीराम वहां पधारे तो सबसे पहले वे शबरी की झोंपड़ी में गए। वे शबरी की भक्ति में इतने लीन हो गए कि उसके झूठे बेर खाए। यह अनन्य श्रद्धा का फल है। शबरी के प्रति दुर्भावना रखने से पंचवटी के कुएं का पानी प्रदूषित हो गया। वह शबरी की ईश प्रार्थना से ही निर्मल हो सका था।
भक्तामर स्रोत की सातवीं गाथा सुनाते हुए जैन मुनि ने कहा कि आनंद, सुख, शांति तभी शाश्वत होगी, जब व्यक्ति वीतारागी हो। प्रशंसा से खुश न हो और आलोचना उसे दुखी न करे। दुखी वही रहता है जिसमें कषाय, यानि मोह, ममता, लोभ, लालच हो। प्रशंसा से वह खुश और निंदा से वह दुखी होते हैं, जिनमें आत्म विश्वास नहीं होता है। सामने वाला व्यक्ति अच्छा या बुरा कहे तो उसकी बात मानता है, अपने आप पर विश्वास नहीं होता।
जैन मुनि ने कहा कि जैसे संपूर्ण विश्व में अंधकार हो और फिर सूरज की किरणें पूरी धरती को प्रकाशित कर देती हैं। इसी प्रकार अज्ञान के अंधकार को भी ज्ञान के प्रकाश से आलोकित किया जा सकता है। जिन शासन में जो भी महापुरुष हुए हैं, उनमें सांसारिक सुख की कामना नहीं रही। वह तो धार्मिक क्रिया करते हैं और काम, वासना उन्हें छू भी नहीं पाती। उन्होंने कहा कि जीवन में साधना बहुत कठिन है। धर्म की राह पर चलना आसान नहीं होता। यदि आसान तो हो उपवास करके देख लो। एक बार उपवास कर लोगो तो बहुत आनंद आएगा। क्योंकि उससे मन और आत्मा तो पवित्र होती है, शरीर भी शुद्ध होता है। साधना का मार्ग कठिन तो लगता है, लेकिन जब एक बार उस पथ पर चलने लगते हैं तो उसमें जो रस आता है, जीवन बदल जाता है।
नेपाल केसरी ,मानव मिलन संस्थापक डॉक्टर मणिभद्र मुनि, बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में मंगलवार को सातवीं गाथा का लाभ संगीता संजीव सुराना एवम गुहावटी आसाम से पधारे रंजीता कांकरिया, किरण लुनावत परिवार ने लिया। नवकार मंत्र जाप के लाभार्थी लक्ष्मी जैन परिवार लोहामंडी थे।धर्म प्रभावना के अंतर्गत नीतू जैन, दयालबाग की 22 उपवास , बालकिशन जैन, लोहामंडी की 26 ,मधु जी बुरड़ की 14 आयंबिल की तपस्या निरंतर जारी है। मंगलवार के कार्यक्रम में श्वेतांबर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक जैन ओसवाल, नरेश चपलावत, विवेक कुमार जैन, संजय चपलावत, राजीव जैन, आदेश बुरड़, सुमित्रा सुराना, मनीषा सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।
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