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23 साल की उम्र में साधु बने थे डॉ. प्रदीप गुप्ता, अब जाने-माने होम्योपैथ, पढ़िए निजी जीवन पर सबसे बड़ा Video Interview

HEALTH NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL साक्षात्कार

Agra, Uttar Pradesh, India. नेमिनाथ होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर कुबेरपुर, आगरा के चेयरमैन डॉ. प्रदीप गुप्ता अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी हैं। उन्होंने 23 साल की उम्र में ही संन्यास ले लिया था। साधुओं का आडम्बर देखकर मोह भंग हो गया। उनकी पत्नी सीमा जैन साध्वी बनना चाहती थीं लेकिन ऐसा हो न सका। दोनों में साधुत्व के लक्षण इसलिए विवाह हो गया। कोरोना काल में डॉ. प्रदीप गुप्ता ने सेवा की मिसाल कायम कर दी। जब अस्पतालों ने मरीजों को ‘एटीएम मशीन’ समझ लिया था तब डॉ. प्रदीप गुप्ता ने ‘नर सेवा नारायण सेवा’ को साकार किया। देश और दुनिया के ऐसे पहले होम्योपैथ जिन्होंने कोरोना से बचाव के लिए 2.5 लाख लोगों को दवा का निःशुल्क वितरण किया। साथ ही कोरोना का भय दूर किया। डॉ. प्रदीप गुप्ता देश और दुनिया के पहले होम्योपैथ हैं जिन्होंने बिना वेंटिलेटर, बिना रेमडेसिवर इंजेक्शन, बिना प्लाज्मा थेरेपी, बिना ग्लव्स, बिना ऑक्सीजन, बिना मास्क, बिना पीपीई किट के कोरोना संक्रमित मरीजों को सफलतापूर्वक स्वस्थ किया। कोरोना संक्रमित मरीजों को गले लगाकर इलाज किया। देश और दुनिया का ऐसा पहला होम्योपैथिक हॉस्पिटल स्थापित किया, जहां इमरजेंसी सेवाएं दी जाती हैं। लोगों को कोरोना की तीसरी लहर से बचाने के लिए पांच लाख लोगों को होम्योपैथी दवा वितरित करने का अभियान चला रहे हैं। पत्रकार-संपादक डॉ. भानु प्रताप सिंह ने डॉ. प्रदीप गुप्ता से लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत है पूरी बातचीत-

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपके जीवन का लक्ष्य क्या था?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः जीवन का लक्ष्य संन्यास है। मैंने 1984 में डॉक्टर बनने के बाद विधिवत संन्यास लिया था। दीक्षा होनी बाकी थी। मेरा मोह भंग हो गया इसलिए वापस आ गया।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या संन्यास से मोह भंग हो गया?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः मैंने उच्च आदर्श मूल्यों के लिए संन्यास लिया था। तथाकथित संन्यासियों के छह माह रहा तो मेरा मोह भंग हो गया। मैंने बोला कि इतने आडंबर से तो आदमी गृहस्थ रहे, वह अच्छा है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या डॉक्टर बनना नहीं चाहते थे?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः डॉक्टर बनना तो मैं नहीं चाहता था। मेरी माताजी चाहती थीं कि मैं डॉक्टर बन जाऊं। उनकी इच्छा पूर्ति के लिए मैं डॉक्टर बना। मैंने उन्हें बता दिया था कि मैं डॉक्टर बन गया हूँ और अब संन्यास ले रहा हूँ। घर में खलबली सी मच गया। ईश्वर ने मुझे एक खराब चीज दी है जिद। जो मैं ठान लेता हूँ, वह करता हूँ।  इसलिए संन्यास ले लिया लेकिन वहां के क्रियाकलाप और आचरण ने मेरा मोह भंग कर दिया।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः संन्यासी तो बड़े पूजनीय होते हैं?
डॉ. प्रदीप गुप्ताः मैं गलत जगह पहुंच गया। उस समय मेरी अवस्था 23 वर्ष थी। मुझे इतना ज्ञान नहीं था कि कौन गुरु चाहिए। मुझे लगा कि संन्यासी तो सभी एक जैसे हैं। इस कारण गुरु का चयन गलत हो गया, इसलिए मेरा मोह भंग हो गया।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः भोजन में सबसे ज्यादा क्या पसंद है?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः एकदम सादा भोजन। मक्के की रोटी और उड़द की दाल।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः भोजन कितनी बार करना चहिए, क्या नहीं खाना चाहिए, कृपया डॉक्टर के नाते बताएं

डॉ. प्रदीप गुप्ताः जवान लोगों को भोजन तीन बार करना चाहिए। प्रौढ़ हो जाएं तो दो बार और जैसे ही हमारी उम्र में  जाएं तो एक बार कर देना चाहिए।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः हमें पता चला है आप भोजन बहुत कम करते हैं?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः हां, मैं एक दिन भोजन करता हूँ और एक दिन नहीं करता हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः फिर आप इतनी सारी ऊर्जा कहां से लाते हैं?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः सब ईश्वर की कृपा है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आप साधु बनना चाहते थे, लगता है वह भी कुछ कृपा है?
डॉ. प्रदीप गुप्ताः मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर का मेरे प्रति विशेष स्नेह है। उसी स्नेह से मैं आध्यात्मिकता की अनुभूति करता रहता हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः भोजन मां के हाथ का अच्छा लगता है या पत्नी के हाथ का?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः भोजन किसी के भी हाथ का हो, इसमें कोई फर्क नहीं है। भोजन मैंने कभी भी स्वाद के लिए नहीं किया है। भोजन ऊर्जा ग्रहण के लिए करता हूँ। जब मैंने जैन मुनियों से साक्षात्कार किया तो पता लगा कि वि अंजुली भर खाते हैं तो मैंने भी उतना ही खाना शुरू कर दिया।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः इतना कम भोजन तो उनके लिए है जो कुछ काम नहीं करते हैं, चिन्तन करते हैं और आराम करते हैं?
डॉ. प्रदीप गुप्ताः ऐसा नहीं है। जैनमुनियों का जीवन बड़ा कठोर है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः कभी पत्नी को अपने हाथ से खाना खिलाया है?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः हां, बहुत बार।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या पत्नी ने भी अपने हाथ से खाना खिलाया है कभी?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः हां, बहुत बार।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः ऐसा अवसर कब आया जब आपने पत्नी को खाना खिलाया?
डॉ. प्रदीप गुप्ताः एक बार उन्हें बुखार हो गया। मैंने खाना बनाया। उन्हें खिलाया तो ठीक हो गईं। फिर मैंने कहा कि आपकी दवा पकड़ में आ गई। खाना बनाकर खिलाना है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या आप भीषण सर्दी में भी रोजाना स्नान करते हैं?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः वैसे तो दिन में तीन बार करता था। अभी समय का अभाव है तो एक या दो बार अवश्य करता हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः घूमने के लिए सबसे ज्यादा कौन सा स्थान अच्छा लगता है?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः नैनीताल। जहां भी झील होती है मुझे आकर्षित करती हैं।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपकी हॉबीज क्या हैं?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः हॉबीज जैसी कोई चीज नहीं है। लोगों के काम आ सकूं, यह हॉबी है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः पसंदीदा गाना कौन सा है?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः पसंदीदा कविता थी- वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूथा जाऊं…

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या बाथरूम में कभी गाना नहीं गुनगुनाया?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः गाना गुनगुनाने का शौक नहीं है। मैं सगीत का विरोधी नहीं हूँ लेकिन कभी गाना नहीं सुनता हूँ। कार में मंहगे सिस्टम हैं, लेकिन कभी गाना नहीं सुनता हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपकी नजर में सबसे अच्छा अभिनेता और अभिनेत्री कौन सी है?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः मैं फिल्में नहीं देखता हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः फिल्में कब से नहीं देखी?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः होम्योपैथी जीवन का विज्ञान है। जीवन को करीब से जानने के लिए एक हजार फिल्में देखी होंगी। 1988 से 1990 तक वीसीआर पर दिन में तीन-चार फिल्में देखीं। मैं यह देखना चाहता था कि दुख में और खुशी में व्यक्ति कैसा होता है। इससे लोगों के मनोभावों को गहराई से जानने का अवसर मिला और मैं सफल चिकित्सक बना। मैं अपने स्टूडेंट्स को रणवीर कपूर की एक फिल्म रॉकस्टार के बारे में बताता हूँ। इसमें रणवीर कपूर गायक बना है। फिल्म की हीरोइन में होम्योपैथी दवा इग्नीशिया के लक्षण हैं। रणवीर कपूर में कोस्टिकम दवा के लक्षण हैं।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः फिल्म से भी होम्योपैथी पढ़ाई जा सकती है?
डॉ. प्रदीप गुप्ताः फिल्म पूरे जीवन का रूपांतरण होता है। तीन घंटे में पूरा जीवन सामने आता है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः सबसे अच्छा नेता कौन सा है?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः योगी बाबा।


डॉ. भानु प्रताप सिंहः वस्त्रों में कौन सा रंग पसंद है?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः गेरुआ। बहुत सारी गेरुआ कमीजें हैं।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपको किससे डर लगता है और क्यों?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः मुझे खुद से डर लगता है कि कोई गलत काम न हो जाए।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः मेरी कई लोगों से बात हुई और उनका कहना है कि बीवी से डरते हैं।

डॉ. प्रदीप गुप्ताः मुझे पत्नी से डरने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि मैं सत्यवादी हूँ। मैं तो संत नहीं हूँ पर मेरी पत्नी लगभग संत है। एकदम निश्छल।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपने पत्नी से कुछ तो छिपा रखा होगा?
डॉ. प्रदीप गुप्ताः ऐसा नहीं है। जब नोटबंदी हुई तो उनके पास 100-100 के कुछ नोट थे। मुझसे बोलीं कि ये भी बदलने हैं क्या। मैंने कहा कि यही पूंजी है। एक बार मेरी जैकेट में दो-दो हजार के 8-10 नोट निकले। बोलीं कि कुछ नोट निकले हैं। मैंने कहा कि आपके हैं क्या तो उन्होंने कहा- नहीं, आपकी जैकेट में निकले हैं। पता लगा कि वह जैकेट मैंने अपने बेटे को पहनने के लिए दी थी और पैसे दिए थे, वह रखकर भूल गया। हमारे पास ऐसा पैसा होता नहीं है कि हम भूल जाएं।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः कॉलेज लाइफ में कोई महिला मित्र बनी क्या?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः नहीं, कभी ऐसा मौका नहीं आया। मैं कम से कम 18 घंटे पढ़ता था। महिला मित्र क्या, मेरा कई पुरुष मित्र नहीं था। किताबें ही मेरी मित्र रहीं।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपने क्या लव मैरिज की थी?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः नहीं। मैरिज की बड़ी कहानी है। जैसे मैं संन्यासी बनना चाहता था, वैसे ही मेरी पत्नी सीमा गुप्ता जैन साध्वी बनना चहती थी। गुप्ता परिवार में जन्म हुआ लेकिन उन पर जैनिज्म का बहुत प्रभाव है। जब मुझे पता चला कि कोई ऐसी लड़की है जो जैन साध्वी बनना चाहती है तो मैंने घर वालों को बताया और सबकी मर्जी से शादी हुई।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः उन्होंने क्या बाद में जैन धर्म अपना लिया?
डॉ. प्रदीप गुप्ताः हाँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः तो उससे कोई समस्या तो नहीं है परिवार में?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः नहीं। आचरण जैन है, भोजन जैन है, दर्शन जैन है। जैन कोई धर्म नहीं है। हमारे षडदर्शन सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदांत।  अभी विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय संयुक्त सचिव स्वामी विज्ञानंद महाराज मेरे पास आए थे, उन्होंने मुझे बताया था कि पहली लोकसभा में 52 सांसद जैन थे। पांच मुख्यमंत्री जैन थे। हिन्दू समाज, सनातन संस्कृति को जाति, धर्म में मत बांटिए। मेरा नाम प्रदीप कुमार है लेकिन लोग मुझे प्रदीप गुप्ता कहते हैं। मेरी फेसबुक आईडी, पासपोर्ट, डिग्री प्रदीप कुमार के नाम से है। मेरी परवरिश ऐसे माहौल में हुई है, जिसमें जाति और धर्म की संकीर्णता नहीं है। हमारे घर में काम करने वाले मुसलमान थे।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः शादी से पहले लड़की देखी थी क्या?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः मुझे बताया गया था कि एक बार देख लेना चाहिए तो मैंने देखी थी।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः शादी और सगाई के बीच में संवाद कैसे कायम हुआ?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः कभी संवाद नहीं हुआ। उस जमाने में संसाधन नहीं थे।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः ऐसा कोई वाकया जब आपकी पत्नी से तकरार हुई हो और आपने अलग अंदाज में मनाया हो?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः ऐसा कोई वाकया नहीं हुआ। हम कभी भी एक दूसरे से ऊँची आवाज में बात नहीं करते हैं। मैं कुछ कहता हूँ वो चुप हो जाती हैं और वो कुछ कहती हैं तो मैं चुप हो जाता हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः जीवन का कोई ऐसा किस्सा जो सबके साथ शेयर करना चाहते हैं?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः आप कितनी भी परेशानी में हैं, सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता मत छोड़िए।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपकी सफलता का रहस्य क्या है?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः सरलता, सहजता, सत्यता और लोगों की सेवा करने की भावना। मुझे क्या मिलेगा, ऐसा मैंने कभी सोचा नहीं और अभी भी नहीं सोचता हूँ। मैंने कभी भी व्यक्ति में अंतर महसूस नहीं किया है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आप रहने वाले अमांपुर (कासगंज) के हैं, आपको आगरा पसंद कैसे आ गया?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः आगरा मेरी पत्नी को बहुत पसंद है। मुझे दिल्ली पसंद है, मैंने कोशिश भी की लेकिन उन्हें आगरा से विशेष लगाव है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या आप अपने वर्तमान जीवन से संतुष्ट हैं?

डॉ. प्रदीप गुप्ताः हां, पूरी तरह। मुझमें असंतुष्ट का कोई भाव नहीं है।

डॉ. प्रदीप गुप्ता को साक्षात्कार क्यों लिया

देश और दुनिया के ऐसे पहले होम्योपैथ जो ट्रिपल एमडी हैं।

देश और दुनिया के पहले होम्योपैथ जिन्होंने सीटीआरआई के साथ कोविड-19 के इलाज में होम्योपैथिक दवा का प्रभाव पर शोध किया और सफलता प्राप्त की।

देश का ऐसा पहला मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (नेमिनाथ होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, कुबेरपुर, आगरा) स्थापित किया जिसे 2017 में National Accreditation Board for Hospitals & Healthcare Providers (NABH) से मान्यता मिली।

देश और दुनिया के पहले होम्योपैथ जिन्होंने कोरोना का होम्योपैथी के माध्यम से मैनेजमेंट विषयक वेबिनार, सेमिनार और वर्कशॉप के माध्यम से होम्योपैथ चिकित्सकों को निःशुल्क ट्रेनिंग दी।

देश का पहला होम्यपैथिक मेडिकल कॉलेज जहां 200 बिस्तरों के साथ कोरोना क्वारेंटाइन सेंटर स्थापित किया गया।

देश और दुनिया के ऐसे पहले होम्योपैथ जिन्होंने बिना ऑपरेशन ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस का सफलतापूर्वक इलाज किया। आमतौर पर ऐसे मरीजों की आँख निकाल दी जाती है या प्रभावित अंग का ऑपरेशन करना पड़ता है। साथ ही 70 हजार रुपये प्रतिदिन वाला इंजेक्शन लगाया जाता है।

एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने कोविड-19 महामारी से पीड़ित जनता को होम्योपैथी के माध्यम से सस्ता और सुलभ इलाज की नई तकनीक विकसित की।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और देश-विदेश के अनेक विशेषज्ञों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि कोविड का डेल्टा डेल्टा प्लस वैरिएंट आ रहा है। तीसरी लहर के रूप में अपना दुष्प्रभाव दिखाएगा। डेल्टा वैरिएंट से प्रभावित होने वालों में सामान्य लक्षणों के साथ ये नए लक्षण हैं- सिर में भयंकर दर्द, नाक बहना, त्वचा का रंग बदलना, गला बैठ जाना, श्वांस फूलना और तेज बुखार। होम्योपैथी से डेल्टा और डेल्टा प्लस वैरिएंट पर नियंत्रण संभव है। लक्षणों के आधार पर बचाव की दवा तैयार है। नेमिनाथ हॉस्पिटल एक बार फिर तीसरी लहर से बचाव की नई दवा का निःशुल्क वितरण करेगा। पांच लाख लोगों को दवा देकर अपना सामाजिक दायित्व पूरा करेंगे।

जब कोरोना की प्रथम लहर 2020 में पूरा देश त्राहि-त्राहि कर रहा था, तब नेमिनाथ होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर, कुबेरपुर, आगरा ने होम्योपैथी से इलाज की नई दवा पर शोध किया। क्लीनिक ट्रायल्स रजिस्ट्री इंडिया (Clinical Trials Registry India) से अनुमति लेकर कोरोना मरीजों पर दवा का परीक्षण किया। यह पाया गया कि आर्सेनिक और ब्रायोनिया नामक होम्योपैथी दवाइयां कोरोना संक्रमित मरीजों पर कारगर है। जिन्हें यह दवा दी गई, वे कोविड से पूरी तरह सुरक्षित रहे। इसके बाद जनहित में बड़ा कदम उठाते हुए नेमिनाथ हॉस्पिटल ने आगरा शहर में दो लाख से अधिक लोगों को कोरोना से बचाव की दवा वितरित की।

आगरा जिला प्रशासन, आगरा पुलिस, गैर सरकारी संगठन- सारथी वेलफेयर सोसाइटी आगरा, महाराजा अग्रसेन यूथ ब्रिगेड आगरा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आगरा, समर्पित फाउंडेशन आगरा, हम संस्था आगरा, अरिहन्त सेवा मंडल आगरा, आगरा मंडल व्यापार संगठन, विश्व हिन्दू परिषद बृज प्रांत, व्हाइट वॉलंटियर आगरा, एनर्जी यूथ आरा, जैन सभा रजिस्टर्ड जंगपुरा, भोगल (नई दिल्ली), अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन फिरोजाबाद, सेंट्रल जेल आगरा, समर्पित फाउंडेशन आगरा, गऊ सेवा सदन धौलपुर, कुंभ मेला मथुरा, वृंदावन आदि संगठनों के साथ शिविर लगाकर कोरोना से बचाव की दवा का वितरण व्यापक स्तर पर किया। दिल्ली में जंगपुरा क्षेत्र से विधायक प्रवीन कुमार के साथ कस्तूरबा निकेतन लाजपत नगर, दिल्ली में छह जुलाई, 2020 को कोरोना से बचाव की दवा का वितरण 15 हजार लोगों को किया गया।

इसके साथ ही आगरा और आसपास के जिले जैसे उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, कासगंज, एटा, हाथरस, अलीगढ़, मथुरा, मैनपुरी, इटावा, राजस्थान के धौलपुर, भरतपुर, मध्य प्रदेश के ग्वालियर से लोग नेमिनाथ हॉस्पिटल से आकर दवा ले गए।

कोरोना की द्वितीय लहर में मौतों की संख्या बढ़ी तो नेमिनाथ हॉस्पिटल ने संजीवनी की तरह काम किया। कुल 312 मरीजों को भर्ती करके इलाज किया गया। छह मौतें हुईं और ये वे मरीज थे जो कहीं न कहीं एलोपैथी इलाज कराने के बाद यहां आए थे, जहां इन्हें वेंटिलेटर और ऑक्सीजन पर रखा गया था। जब यहां आए तो सिर्फ ऑक्सीजन के सहारे जीवित थे।

सेवाभाव से प्रभावित होकर आगरा की 150 वर्ष पुरानी और समाजसेवा में अग्रणी संस्था श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी ने नेमिनाथ हॉस्पिटल में कोविड केयर सेंटर स्थापित किया। इसमें 3000 रुपये प्रतिदिन पर कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज किया गया। ऑक्सीजन की व्यवस्था निःशुल्क की गई।

कोरोना संक्रमण से उबरे मरीजों में कई नई बीमारियां घर कर गईं। इनके इलाज के लिए श्रीक्षेत्र बजाजा कमेटी, आगरा ने नेमिनाथ हॉस्पिटल में पोस्ट कोविड केयर सेंटर की स्थापना की। इसमें मरीजों को विशेष प्रकार की डाइट, होम्योपैथी चिकित्सा के साथ योगा, ध्यान, पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा भी की गई। इसका प्रतिदिन व्यय 1500 रुपये से शुरू है।

जब एलोपैथी अस्पताल कोरोना संक्रमित मरीजों से 50 हजार से एक लाख रुपये तक प्रतिदिन चार्ज कर रहे थे, तब नेमिनाथ होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर, कुबेरपुर, आगरा में 1500 रुपये से लेकर 3 हजार रुपये प्रतिदिन चार्ज किया। इसमें मरीज को दो बार जलपान, दो बार भोजन, दवा, डॉक्टर की फीस, रूम चार्ज, साथ में रहने वाले मरीज का भोजन भी शामिल है। बावजूद इसके कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कोविड हॉस्पिटल को 10 हजार रुपये प्रतिदिन रूम चार्ज का शासनादेश जारी किया था।

अनेक गम्भीर मरीज जिन्हें वेंटिलेटर पर रखने के बाद एलोपैथी चिकित्सकों ने इस आशंका से डिस्चार्ज कर दिया था कि ये मरने वाले हैं, उन्हें नेमिनाथ हॉस्पिटल में आशा की किरण दिखाई दी। यहां आकर भर्ती हुए और ईश कृपा से स्वस्थ होकर घर गए। अनेक मरीज ऑक्सीजन के साथ गम्भीर अवस्था में आए थे। एलोपैथी चिकित्सा में लाखों रुपये खर्च करके भी स्वस्थ नहीं हुए थे। नेमिनाथ हॉस्पिटल ने ऐसे कुछ मरीजों को गोद लिया और सेवाभाव के साथ इलाज किया।