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Motivational Story by Rajesh Khurana पिता-पुत्र की यह कहानी खुद पढ़ें और अपने बच्चों को भी पढ़ाएं

PRESS RELEASE लेख

पापा, ये क्या है, दादाजी ने सारे आँफिस के सामने आपको डांटा और आप चुपचाप सुनते रहे। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगाष आप भी कम्पनी में सारे कामकाज देखते हैं। क्या हुआ जो गलती से आर्डर इधर-उधर हो गया। ऑफिस में सभी आपका सम्मान करते हैं। ऐसे सबके सामने वो आपको डांटकर बेइज्जत कैसे कर सकते हैं। सुमित ने अपने पिता मोहनबाबू से अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा.।

मोहन बाबू ने सुमित से कहा- देखो बेटा, यहां आओ बैठो आराम से। सबसे पहले तो ये गुस्सा त्याग दो क्योंकि ये गुस्सा हमें केवल नकारात्मकता की ओर ही बढ़ाता है। सही और गलत की दिशा से भटकाता है। अब ध्यान से सुनो सारी दुनिया के भले ही मैं बड़ा आदमी हो सकता हूं पर अपने मम्मी पापा के लिये मैं सिर्फ उनका बेटा हूं और उन्हें सारी उम्र मुझे कुछ भी कहने का हक है। तुम अभी छोटे हो। तुम्हें अभी समझ नहीं आयेगा। परिपक्व होने पर खुद समझ जाओगे। माता पिता की ये डांट, ये समझाने का तरीका. बेटा ये उनका एक मार्गदर्शन करने का वो तरीका है जो हमें सही और गलत का अंतर बताता है।

उन्होंने सबके सामने मुझे डांटा कयोंकि गलती मेरी थी, मुझे ध्यान देना चाहिए था। एक जिम्मेदार व्यक्ति, एक जिम्मेदार कर्मचारी होने के नाते ये मेरा कम्पनी के प्रति कर्तव्य बनता है। बात कम्पनी की है तो कम्पनी में ही समझाकर खत्म कर देते हैं पिताजी।

बेटा, बड़े जब समझाते हैं न या डांटते हैं न वो उनकी चिंताओं का एक रूप होता है, जो अनुभवों से जुड़ा होता है। वो अपने बच्चों को वो गलती नहीं करने देना चाहते जिसके चलते बाद मे उन्हें कोई दुष्परिणाम भुगतना पडे। और मैं उनकी डांट से खुश होकर कुछ ना कुछ नया सीखता हूँ। जानते हो जब वह मुझे डांटते है ना तब मेरी मेरे बचपन से मुलाकात हो जाती है। मोहनबाबू ने बेटे के कंधे पर हाथ रख कर समझाते हुए कहा।

सुमित पापा की बातों को सुनकर थोड़ा शर्मिंदा सा बैठा था।

मोहनबाबू मुस्कुरा कर बाहर की ओर चलने को हुए ही थे कि वापस सुमित के पास लौटकर बोले- हां, एक बात और बेटा, कोई तुम्हारे पिता को कुछ कहे तुम्हें अच्छा नहीं लगता, है न?

जी पापा।

तो बेटा जी कोई मेरे पिताजी को कुछ कहे मुझे भी अच्छा नहीं लगता। यह कहकर सुमित के सिर के बालों में अंगुलियों को फिराते उन्हें सहलाते हुए प्यार भरी मुस्कुराहट देकर एक उचित मार्गदर्शन करते हुए कमरे से बाहर निकल गये।

दूसरी ओर दूसरे कमरे में बैठे बुजुर्ग मोहनबाबू के पिताजी की आँखें भी खुशी से नम थीं। उन्हें भी अपनी परवरिश और अपने बेटे को दिए संस्कारों भरे मार्गदर्शन पर गर्व महसूस हो रहा था।

सीख

अगर आज हम अपने माता-पिता-दादा का सम्मान नहीं करेंगे तो हमारी संतान भी हमारा सम्मान नहीं करेगी।

प्रस्तुतिः राजेश खुराना, सदस्य, आगरा स्मार्ट सिटी एवं प्रदेश सह संयोजक हिन्दू जागरण मंच