नृत्य गोपाल दास स्वामी वामदेव

महंत नृत्य गोपाल दास ने कहा था- अगर कारसेवा न करने दी तो कारसेवक हनुमान बन जाएंगे और लंका जला देंगे

लेख

6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में कार सेवा से एक दिन पूर्व  स्वामी वामदेव और  महंत नृत्य गोपाल दास की प्रेसवार्ता हुई थी

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में जो कुछ हुआ, उसका मैं साक्षी हूँ। आज मैं राम मंदिर आंदोलन के पुरोधा रहे दो संतों के बारे में एक-दो बातें आप सबके समक्ष रखना चाहता हूँ। स्वामी वामदेव महाराज ने राम मंदिर आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई थी। वे सिर्फ चार फुट के थे। प्रायः शांत रहते थे। इसके बाद भी राम मंदिर के मुद्दे पर सरकार को रक्तपात तक की चेतावनी दे दी थी। स्वामी वामदेव महाराज के उलट महंत नृत्य गोपाल दास महाराज क्रांतिकारी हैं। यह अलग बात है कि इस समय अशक्त हैं और स्मृति लोप के शिकार हैं।

छह दिसम्बर की कारसेवा के कवरेज के लिए मुझे अमर उजाला आगरा ने अयोध्या भेजा था। नियमित प्रेसवार्ता हुआ करती थी। एक प्रसंग मुझे ध्यान आ रहा है। 4 या 5 दिसम्बर, 1992 को स्वामी वामदेव महाराज और महंत नृत्य गोपाल दास महाराज की प्रेसवार्ता हुई। इसमें एक सवाल आया कि अगर सरकार ने कारसेवा नहीं करने दी तो क्या करेंगे? स्वामी रामदेव महाराज ने उत्तर देने के लिए मुँह खोला ही था कि महंत नृत्य गोपाल दास महाराज खड़े हो गए और उछलकर कहा- कार सेवक हनुमान बन जाएंगे और लंका जला देंगे। नृत्य गोपाल दास इस तरह से अभिव्यक्ति करते थे। इस कारण वे पत्रकारों के भी प्रिय थे। कुछ न कुछ ऐसे बात कह दिया करते थे कि अखबारों की हेडलाइन बना जाया करती थी।

अयोध्या में अमर उजाला का कार्यालय मणिराम दास छावनी के निकट ही था। हमारे पास सूचनाएं आया करती थीं कि मणिराम दास छावनी में हथियारों का संग्रह किया गया है। साधु संतों के हाथ में प्रायः त्रिशूल, चिमटा होते हैं। इन्हें कभी भी हथियार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसके विपरीत हमसे कहा जाता था कि कट्टे आ गए हैं। इस सच्चाई का हम पता नहीं लगा पाए। मणिराम दास छावनी के कक्षों को अंदर स देखने का अवसर कभी नहीं मिला।

महंत नृत्य गोपाल दास, मणिराम दास छावनी के प्रमुख हैं। राम जन्मभूमि न्यास और श्रीराम जन्मभुमि तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख हैं। राम मंदिर आंदोलन में मंहत नृत्य गोपाल दास ने महती भूमिका निभाई है।

उल्लेखनीय है कि स्वामी रामदेव को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने इन्हें विश्व हिंदू परिषद से अलग करने की पुरजोर कोशिश की, मगर असफल रहे। स्वामी वामदेव की ही अध्यक्षता में साल 1984 में अखिल भारतीय संत-सम्मेलन का आयोजन जयपुर में हुआ। इसमें राम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए 15 दिनों तक लगातार 400 साधु-संतों के साथ गहन विचार-विमर्श किया गया। 30 अक्तूबर, 1990 को विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में कारसेवा का आह्व‍ान किया था। स्वामी वामदेव अपनी वृद्धावस्था के बावजूद सभी बाधाओं को पार करते हुए अयोध्या पहुँचे थे। 2 नवंबर, 1990 को जब कारसेवकों पर गोली चली तो इससे स्वामी जी इतने क्रोधित हो गए थे कि उन्होंने 4 नवंबर को प्रशासन को रक्तपात की चेतावनी दे दी। उन्होंने कहा कि अगर कर्फ्यू हटाकर प्रशासन ने कारसेवकों को रामलला के दर्शन नहीं करने दिए तो बड़े पैमाने पर खून बहेगा। 6 दिसंबर, 1992 को जब विवादित ढाँचा गिराया जा रहा था, स्वामी जी कारसेवकपुरम में ही मौजूद थे। मार्च 1993 को संत सम्मेलन में उन्होंने अयोध्या के बाद काशी और मथुरा का मुद्दा भी उठाया। अप्रैल 1993 की रामनवमी को अयोध्या में 9 दिनों का अनुष्ठान भी किया। राममंदिर के लिए जीवनपर्यंत लड़ने वाले स्वामी वामदेव का 20 मार्च, 1997 को देहावसान हुआ।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh