क्लासरूम से लेकर बोर्डरूम तक: विकसित भारत की राह दिखा रहीं महिला लीडर्स
मुंबई (अनिल बेदाग) : मुंबई स्थित प्रिन. एल. एन. वेलिंगकर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट डेवलपमेंट एंड रिसर्च (वीस्कूल) ने एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैनेजमेंट स्कूल्स (एआईएमएस) और रतन टाटा महाराष्ट्र स्टेट स्किल्स यूनिवर्सिटी के सहयोग से, ‘विकसित भारत में महिलाओं का नेतृत्व’ शिखर सम्मेलन का आयोजन सफलतापूर्वक किया। यह भारत की विकास यात्रा में महिला अग्रणियों की भूमिका को मान्यता देने और सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से आरम्भ की गई एक शक्तिशाली पहल है।
शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान, मैनेजिंग काउंसिल, एसपी मंडली के चेयरमैन एवं वीस्कूल के सीडीसी, एडवोकेट श्री एस. के. जैन ने कहा, “भारत की संस्कृति – हमारे धर्मग्रंथों से लेकर हमारे सामाजिक मूल्यों में महिलाओं की गरिमा और शक्ति का सदैव सम्मान किया गया है। आज, इस बात पर चर्चा नहीं होनी चाहिए कि क्या महिलाओं का नेतृत्व करना सही है या नहीं, बल्कि इस बात पर होनी चाहिए कि हम अधिक महिलाओं को अग्रणी भूमिका निभाने का मौका कैसे दे सकते हैं, विशेष रूप से वंचित समुदाय की महिलाओं को। महिलाओं का सही मायनों में सशक्तिकरण केवल उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना नहीं बल्कि उनके लिए अभिगम्यता, शिक्षा और संस्थागत समर्थन सुनिश्चित करना है। इस शिखर सम्मेलन जैसे मंच जागरूकता पैदा करने और अधिक समावेशी तथा विकसित भारत निर्माण की दिशा में सार्थक बदलाव लाने के लिए आवश्यक हैं।”
वीस्कूल के ग्रुप डायरेक्टर, प्रो. डॉ. उदय सालुंखे ने कहा, “किसी भी राष्ट्र की प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपनी महिलाओं को कैसे सशक्त बनाता है। न केवल शिक्षा के माध्यम से, बल्कि उनमें नेतृत्व करने में क्षमता विकसित करके भी। वैश्विक स्तर पर, रवांडा, फ़िनलैंड और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों ने साबित किया है कि समावेशी लीडरशिप किस प्रकार राष्ट्रीय विकास को गति देता है। वीस्कूल में, हम शिक्षा को एक परिवर्तनकारी शक्ति मानते हैं। इस प्रकार के शिखर सम्मेलन जैसे मंच एक ऐसी पारिस्थितिकी तंत्र को आकार देने हेतु महत्वपूर्ण हैं ताकि महिलाएँ अपने नेतृत्व के माध्यम से सही मायनों में एक विकसित भारत का मार्ग प्रशस्त कर सकें।”
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैनेजमेंट स्कूल्स (एआईएमएस) के नेशनल प्रेसिडेंट डॉ. रमाकांत पात्रा ने अपने प्रारंभिक भाषण में इस बात पर प्रकाश डाला कि, “समाज की मानसिकता को बदलते देखना अत्यंत उत्साहजनक है—महिलाएँ अब उद्योगों, शिक्षा जगत और शासन-प्रशासन में नेतृत्वकारी भूमिकाएँ निभा रही हैं। महिलाओं का नेतृत्व केवल समानता की बात नहीं है; बल्कि यह वास्तव में विकसित और प्रगतिशील भारत के लिए आवश्यक है।”
रतन टाटा महाराष्ट्र स्टेट स्किल्स यूनिवर्सिटी की फाउंडिंग वाइस चांसलर डॉ. अपूर्व पालकर ने कहा, “आज भारतीय उच्चतर शिक्षा में लगभग 48% नामांकन महिलाओं का हो रहा है, लेकिन केवल 9-10% ही बोर्डरूम तक पहुँच पाती हैं। यह केवल लिंग का अंतर नहीं दर्शाता – यह समावेशी विकास के पथ पर एक बहुत बड़ी कमी की ओर इशारा करता है। अगर देश के महत्वपूर्ण निर्णयों में महिलाएं शामिल नहीं हैं तो उन फैसलों से कभी भी समाज का सम्पूर्ण कल्याण नहीं हो पाएगा। विकसित भारत तभी संभव है जब देश के सभी वर्ग के नागरिक अपनी पूरी शक्ति के साथ विकास का मार्ग प्रशस्त करें।”
शिखर सम्मेलन में कई प्रभावशाली वक्ताओं ने भाग लिया, जैसे डॉ. उज्ज्वला चक्रदेव (वाइस चांसलर, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय) – जिन्होंने महिला नेतृत्व में आत्मविश्वास और सांस्कृतिक आधार के महत्व पर बल दिया; श्रीमती विनीता सिंघल, आईएएस (प्रमुख सचिव, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग, महाराष्ट्र सरकार), श्रीमती राधिका रस्तोगी, आईएएस (प्रमुख सचिव, अपील एवं सुरक्षा, गृह विभाग, महाराष्ट्र सरकार), और श्रीमती मनीषा वर्मा, आईएएस (अतिरिक्त मुख्य सचिव, कौशल, रोजगार, उद्यमिता एवं नवाचार विभाग, महाराष्ट्र सरकार) – जिन्होंने लिंग-समावेशी विकास को बढ़ावा देने में नीतियों के सुदृढ़ीकरण और जमीनी स्तर पर सशक्तिकरण के महत्व को उजागर किया।
सुश्री आरती हरभजनका (फाउंडर एवं एमडी, प्राइमस पार्टनर्स), डॉ. तनया मिश्रा (ग्लोबल सीएचआरओ, इन-सॉल्यूशन ग्लोबल लिमिटेड), और सुश्री पोयनी भट्ट (पूर्व सीईओ, एसआईएनई -आईआईटी बॉम्बे) ने कॉर्पोरेट और स्टार्टअप इकोसिस्टम के माध्यम से समावेशी विकास को संभव बनाने पर अंतर्दृष्टि साझा की। डॉ. उपासना अग्रवाल (क्षेत्र अध्यक्ष – ओबीएचआर, आईआईएम मुंबई) और डॉ. मधुमिता पाटिल (सीईओ, चेतना इंस्टीट्यूट्स ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई) सहित अकादमिक क्षेत्र से जुड़े कई हस्तियों ने शिक्षा और कौशल विकास में संस्थागत चुनौतियों के समाधान पर जोर दिया। लोक प्रशासन, उद्यमिता और शिक्षा जगत की कई अन्य महिला अग्रणियों ने भी इस संवाद में भाग लिया, जिससे यह शिखर सम्मेलन वास्तव में एक समावेशी और क्रियाशील मंच बन पाया।
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