Agra, Uttar Pradesh, India. कोरोना काल की पिछली लहर में साहित्यसेवी संजय गुप्त ने अपनी प्रतिभा को प्रखर करते हुए दो पुस्तकों ‘ईश वंदना@ कोविड 19’ व ‘करुणा सिंधु की मुक्तामणि’ का सृजन किया, उनका विमोचन किया गया। सभी ने साहित्य के इस सृजन को सराहा।
रावतपाड़ा स्थित श्री मनःकामेश्वर मंदिर पर हुए सादा समारोह में महंत योगेशपुरी ने दोनों पुस्तकों को श्रीनाथ जी व बाबा मनःकामेश्वर महादेव को समर्पित करते हुए विमोचन किया। उन्होंने कहा कि साहित्य ही समाज को संदेश देता है। ईश वंदना पुस्तक में देवी-देवताओं से कोरोना काल से मुक्ति, उससे पीड़ितों को जल्द स्वस्थ करने की कामना और मृतकों की आत्मा की शांति के लिए 108 काव्यमय प्रार्थना की गई है। जो एक सराहनीय प्रयास है। समाज में इससे एक अच्छा संदेश जाता है।
साहित्यकार डा.राजेंद्र मिलन ने ‘करुणा सिंधु की मुक्तामणि’ पर चर्चा करते हुए कहा कि इस पुस्तक में विभिन्न विषयों पर 108 कविताएं हैं। जो सहज और सरल भाषा में लिखी गई हैं। साहित्यसेवी अशोक अश्रु ने कहा कि करुणेश परिवार के सदस्य संजय गुप्त ने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाया है।
संचालन सुशील सरित ने किया और कहा कि इस प्रकार की पुस्तकों का प्रकाशन होते रहना चाहिए। पुस्तकें संजय गुप्त ने अपने पिता स्वाधीनता सेनानी स्व.रोशनलाल गुप्त करुणेश व माता स्व रामलता गुप्त को समर्पित की हैं। भूमिका वरिष्ठ कवि सोम ठाकुर, वरिष्ठ कवयित्री डा.शशि तिवारी ने की है।
आशीवर्चन महंत योगेशपुरी व आर्य विद्वान डॉ. शांति नागर के हैं। संजय गुप्त ने अपनी कृतियों के बारे में विस्तार से बताया। करुणेश परिवार के सदस्य शरद गुप्त ने अपनी काव्यांजलि के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन दिया।
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