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काकोरी ट्रेन एक्शनः वामपंथी इतिहासकारों ने शहीदों ने साथ अन्याय किया, सही इतिहास लिखने की जरूरत

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काकोरी ट्रेन एक्शन के शहीदों को 95 साल बाद याद किया

भारतीय इतिहास संकलन समिति, बृज प्रांत की विवि में संगोष्ठी

Agra, Uttar Pradesh, India. भारतीय इतिहास संकलन समिति, बृज प्रांत ने काकोरी के शहीदों को 95 साल बाद याद किया। काकोरी में क्रांतिकारियों ने 25 अगस्त, 1925 को सरकारी खजाना लूटा था। ब्रिटिश सरकार ने 19 दिसम्बर, 1927 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को फैजाबाद, अशफाक उल्ला खां को गोरखपुर और ठा. रोशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी दी। दो दिन बाद राजेन्द्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में फांसी दी गई। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के दीनदयाल उपाध्याय ग्राम्य विकास संस्थान में बीए आर्ट्स के विद्यार्थियों के साथ हुए कार्यक्रम में कहा गया कि वामपंथी इतिहासकारों ने शहीदों ने साथ अन्याय किया। इसी कारण सही इतिहास लिखने की जरूरत है।

 

मुख्य वक्ता और समिति के महामंत्री डॉ. तरुण शर्मा ने कहा– अंग्रेजों ने काकारी की घटना को कांड का नाम हमें चिढ़ाने के लिए दिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने काकोरी ट्रेन एक्शन (कार्यवाही) दिवस के रूप में मनाया। सरकारी खजाने से 4601 चांदी के सिक्के लूटे गए। मौके पर एक चादर छूट जाने से पूरी घटना का खुलासा हुआ। पुलिस ने कुल 40 लोगों को आरोपी ठहराया। यह घटना वास्तव में 10 क्रांतिकारियों ने की थी। उन्होंने कहा कि आजादी का इतिहास ठीक से नहीं लिखा गया। श्रेष्ठ अतीत को याद करने से हमारे अंदर आत्मसम्मान और आत्मविश्वास का भाव जाग्रत होता है और यही व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है। उन्होंने दो कहानियां सुनाते हुए कहा कि चैन से रहना है तो जीवन की खट-खट को सहना है।

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समिति के संयुक्त मंत्री और वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह ने रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां के साहित्यिक योगदान को रेखांकित किया। अशफाक उल्ला खां ने लिखा है-

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,

चलवाओ गन मशीनें हम सीना अड़ा देंगे।

दिलवाओ हमें फांसी ऐलान से कहते हैं,

खूं से ही हम शहीदों के फौज बना देंगे।

फांसी से कुछ समय पहले अशफाक ने लिखा-

बुजदिलों ही को सदा मौत से डरते देखा,

गो कि सौ बार उन्हें रोज ही मरते देखा।

मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा।

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मंचासीन बाएं से डॉ. मनोज राठौर, प्रो.यूसी शर्मा,डॉ. भानु प्रताप सिंह, डॉ. तरुण शर्मा, वर्षाय़।

न कोई इंग्लिश न कोई जर्मन न कोई रशियन न कोई तुर्की,

मिटाने वाले हैं अपने हिन्दी जो आज हमको मिटा रहे हैं ।

कहाँ गया कोहिनूर हीरा किधर गयी हाय मेरी दौलत,

वह सबका सब लूट करके उल्टा हमीं को डाकू बता रहे हैं ।

 

कुछ आरज़ू नहीं है, है आरज़ू तो यह है,

रख दे कोई जरा-सी, खाके-वतन कफन में ।

 

उनका सर्वप्रसिद्ध शेर है, जो सही साबित हो रहा है

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले

वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा।

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उपस्थित बीए आर्ट्स के विद्यार्थी।

उनकी जिन्दादिली इस शेर से प्रकट होती है

बुजदिलों को ही सदा मौत से डरते देखा,

गो कि सौ बार उन्हें रोज़ ही मरते देखा।

मौत से वीर को, हमने नहीं डरते देखा,

तख्ता-ए-मौत पै भी खेल ही करते देखा।

 

रामप्रसाद बिस्मिल की लिखी ये पंक्तियां तो बहुत मशहूर हैं –

अब न अगले वलवले हैं, और न अरमानों की भीड़!

एक मिट जाने की हसरत, अब दिले बिस्मिल में है!

गरीबों का दर्द बिस्मिल ने इस तरह बयां किया

दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा,
एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा।
बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन,
मैं उनकी अमीरी को मिट्टी में मिला दूंगा।
जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़,
गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा।

 

चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?
कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो 
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है 

 

डॉ. भानु प्रताप सिंह ने दो किस्से सुनाए-

अशफाक उल्ला खां और पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल बचपन से ही गहरे दोस्त थे। अलग अलग मजहब के होने के बावजूद दोनों शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में एक साथ रहते, एक ही थाली में खाना खाते थे। रामप्रसाद हिन्दू तो अशफाक पाँच वक्त के पक्के नमाजी मुसलमान थे। शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में जहाँ पंडित रामप्रसाद बिस्मिल यज्ञ करते थे तो वहीं यज्ञशाला के पास अशफाक उल्ला खां नमाज अदा करते थे। साथ-साथ ही स्कूल भी जाते थे।

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संगोष्ठी में उपस्थित बीए आर्ट्स के विद्यार्थी।

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां के मुताबिक़ एक बार जब अशफाक उल्ला खाँ और पंडित जी की लंबे समय तक मुलाकात नहीं हुई। अशफाक उल्ला खाँ की तबियत भी बहुत ज्यादा खराब हो गयी। अशफाक को कई वैद्य हकीम को दिखाया पर दवाइयाँ असर ही नहीं कर रही थी। अशफाक बिस्तर पर पड़े हुए राम-राम कह रहे थे। तब एक व्यक्ति ने कहा कि ये पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे हैं। जब पंडित जी आए तो उनकी एक आवाज़ सुनकर ही अशफाक उल्ला उठकर बैठ गए। धीरे-धीरे अशफाक के स्वास्थ्य में सुधार हो गया।

 

दीनदयाल संस्थान के डीन प्रो. यूसी शर्मा ने छात्रों से कहा कि एक व्यक्ति की आत्मकथा जरूर पढ़नी चाहिए। उन्होंने आज का वक्तव्य सुनने के बाद इतिहास दोबारा पढ़ने की इच्छा जाहिर की। साफगोई के साथ कहा कि राजेन्द्र लाहिड़ी के बारे में नहीं सुना था। कहा कि बीए आर्ट्स में 70 विद्यार्थी हैं, जिनमें से 90 फीसदी ने इतिहास विषय लिया है। सभी का आभार जताया।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh