jain sadhvi vairagya nidhi maharaj

जैन साध्वी वैराग्य निधि ने FAMILY का नया अर्थ बताया, घर को स्वर्ग बनाने की तरकीब बताई

RELIGION/ CULTURE

Agra, Uttar Pradesh, India. ताजमहल के शहर में चातुर्मास कर रहीं परम विदुषी जैन साध्वी वैराग्य निधि महाराज ने ‘परिवार में प्रेम: स्वार्थ से परार्थ, परार्थ से परमार्थ की ओर’ विषय पर प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि हमें परिवार में आत्मिक स्तर पर जुड़ना चाहिए। परिवार को अंग्रेजी में FAMILY कहते हैं। इसका फुल फॉर्म करे तो father and mother l love you होता है। सबसे पहले हमारा परिवार हमारा धर्म होता है, उसके बाद परमात्मा की सेवा पूजा। पृथ्वीचंद जैन स्मृति भवन, जयपुर हाउस में चल रहे व्याख्यान के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. बीके अग्रवाल थे। तेला की तपस्या करने पर बिजेन्द्र लोढ़ा और ऊषा वैद का स्वागत किया गया। तेला की तपस्या में तीन दिन तक केवल पानी पीकर रहते हैं। श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक श्री संघ के अध्यक्ष राजकुमार जैन ने बताया कि 18 जुलाई को ‘अर्हं से अर्हं तक, साधर्मी वात्सल्य’ विषय पर प्रातः 9-10 बजे तक प्रवचन होंगे।

 

जैन साध्वी ने कहा कि परिवार तीन स्तर के होते हैं– आत्मिक, हृदय और बौद्धिक स्तर। भाई-भाई हो, सास-बहू हो, परस्पर संबंधों में प्रेम का पुष्प खिलने चाहिए। हमारा घर स्वर्ग जैसा होना चाहिए। ऐसा हो कि किसी का किसी के प्रति किंचित मात्र भी द्वेष का व्यवहार न हो, केवल कल्याण की भावना हो। सबका भला चाहेंगे तो हम भी उसमें समाहित हैं।

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प्रवचन सुनते जैन श्रद्धालु

उन्होंने कहा कि जिसमें सर्व कल्याण की भावना होती है, वही तीर्थंकर होता है। जो स्वयं का कल्याण करता है वह केवल ज्ञान को प्राप्त करता है, किन्तु जो सबके कल्याण की कामना करता है, वह तीर्थंकर पद को प्राप्त करता है। मैं सुखी होना चाहता हूं, ये सामान्य लक्षण हैं, सब सुखी हों ये तीर्थंकरत्व की पहचान है। हो सकता है हमारा संबंध विवाह के बाद जुड़े लेकिन उनके साथ आत्मीय व्यवहार हो। ऐसा होगा तो क्या धरती ही स्वर्ग नहीं हो जाएगी, क्या घर ही मंदिर नहीं हो जाएगा, क्या घर में रहने वाले देवता नहीं हो जाएंगे। परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि घर-घर आंगन-आंगन खुशियों की लहर दौड़े। उन्होंने भजन सुनाया-

बरसा दाता सुख बरसा

आंगन-आंगन सुख बरसा

 

जैन साध्वी ने कहा- जो स्टॉक मेरी दुकान में है वही स्टॉक बाजू वाले की दुकान पर है। अगर ग्राहक वहां ज्यादा आते हैं तो मुझे क्यों ईर्ष्या की भावना आती है। ईर्ष्या करने से लाभ नहीं बल्कि हानि ही हानि होगी। दूसरों से ईर्ष्या करने से लाभान्तराय कर्म का बंध होता है। पैसा पुरुषार्थ से नहीं, पुण्य से आता है। दुकान पर शुभ-लाभ लिखा जाता है। इसका मतलब है खूब लाभ हो जाए, पैसा आता जाए, और चाहिए, यह अंतहीन सिलसिला है, तभी मेरा शुभ है। क्या यह परिभाषा है, नहीं। वास्तव में शुभ लाभ का अर्थ होता है कि मेरे भाव शुभ बने रहें। जो मेरी दुकान पर आया है उसके प्रति मेरे मन में नकारात्मक तरंगें न आएं।

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प्रवचन सुनते जैन श्रद्धालु

दुकान में जब ग्राहक आता है हम विनम्र हो जाते हैं। ग्राहक कितना भी आपसे परिश्रम करवाये हम विनम्र बने रहते हैं। पैसे और कमाई का लालच हमें विनम्र बना देता है, लेकिन घर पर जाते हैं शेर का रूप धारण कर लेते हैं। यही विनम्रता यदि यदि घर के सदस्यों के प्रति दिखाएं तो घर स्वर्ग बन जायेगा। अंतिम समय में पैसा तो आप के साथ जाने वाला नहीं परंतु आपका व्यवहार आपके साथ अवश्य जाएगा। मेरी दुकान खूब चल रही है, ये मेरा पुण्य है। लेकिन पड़ोस की दुकान नहीं चलनी चाहिए, ये भावना हमारे पुण्य को कमजोर करेगी।

 

वैराग्य निधि महाराज ने संबंध चार प्रकार के बताए

दूध में राखः परिवार में बहू अपने सास ससुर आदि की मृत्यु की कामना करे तो हिंसानुबंधी रौद्र ध्यान है। ऐसे संबंध दूध में राख की तरह हैं।

दूध में नींबूः जिस प्रकार दूध में नींबू डालने से दूध फट जाता है उसी प्रकार जरा सी असावधानी से रिश्ते भी फट जाते हैं। एक होशियार गृहणी उस फटे दूध का भी उपयोग कर लेती है। किसी कारण से घर में अनबन हो गयी, तीसरे आदमी ने आकर भड़काया तुम्हारा भाई सब संपत्ति हड़प लेगा ? लेकिन अपने संबंधों की कद्र करते हुए हमें उस होशियार गृहणी की तरह आचरण करना है। आचार्य हरिभद्रसूरि जी ने कहा है कि जो सामान्य जीवन का पालन नहीं करता उसे धर्मादि क्रिया का कोई विशेष फायदा नहीं होता। संबंधों में प्रेम आत्मीय गुण है, वही साथ में जाता है।

दूध में शक्करः घर की सही परिभाषा घर के हर सदस्य के दिल में घर करना है। चुपचाप किसी के काम आ जाना, परिवार में शांति, सरलता, समता के साथ रहना दूध में शक्कर के समान है।

दूध में मेवाः चौथे तरह का संबंध दूध में मलाई मेवे की तरह होना चाहिए। ऐसे संबंधों में प्रेम घनीभूत हो जाता है, प्रेम सहन नहीं करना पड़ता बल्कि प्रेम surrender हो जाता है। जहाँ संबंधों में प्रेम होता है वहां सौहार्द होता है। स्वभाव की संपन्नता ही वास्तविक संपन्नता है, यही वास्तविक धर्म है।

 

आज के प्रवचन का लाभार्थी परिवार अशोक जैन सीए परिवार रहा। लोहामंडी स्थानक समिति के महामंत्री सुशील जैन, सुनीलकुमार जैन, केके कोठारी, ध्रुव जैन, विजय सेठिया, निशांत ललवानी, अरविंद शर्मा गुड्डू, संदेश जैन, जयराम दास, अजीत कुमार, आदित्य जैन, शशि जैन, सुप्रिया जैन, कोमल जैन, सुनीता जैन, सुमन जैन की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh