जैन मुनि मणिभद्र महाराज

जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने बताईं रावण की चार अंतिम इच्छाएं

RELIGION/ CULTURE

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Agra, Uttar Pradesh, India. नेपाल केसरी, मानव मिलन संस्थापक डॉ. मणिभद्र महाराज ने  कहा है कि व्यक्ति को अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना चाहिए, क्योंकि वे तो आकाश की तरह अनंत हैं,  उन्हें कभी पूरा नहीं किया जा सकता। उन्होंने इस बारे में रावण का उदाहरण दिया।

जैन स्थानक, राजामंडी में वर्षावास के दौरान भक्तामर स्रोत अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। शनिवार को प्रवचन देते हुए जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने कहा कि आचार्य मांगतुंग, तीर्थंकर की स्तुति करते हुए कहते हैं कि हर व्यक्ति की इच्छा बहुत होती हैं। एक इच्छा पूरी होती है, दूसरी शुरू हो जाती है। थोड़ा सा व्यवसाय चले तो मन करता है कि बड़ा उद्योगपति बन जाऊं। फिर सत्ता की लालसा होती है।

व्यक्ति चाहता तो है कि सिंहासन मिल जाए, पर उसके लिए पुरुषार्थ नहीं करना चाहता। सिंहासन तीर्थंकर का नहीं, राजा का मिले, सत्ता मिले। तीर्थंकर के सिंहासन के लिए त्याग, तपस्या सब करनी पड़ेगी। इसलिए महाराज नहीं बनना चाहते, उन्हें तो राजा-महाराजा बनना है।

मुनिवर ने बताया कि मृत्यु शैय्या पर पड़े रावण से एक जिज्ञासु ने पूछा-तुम्हारी क्या  कोई इच्छा अधूरी रह गई। रावण बोला, मेरी बहुत सारी इच्छा पूरी हुईं, मैं अजेय भी हो गया। सोने की लंका भी बना डाली, फिर भी चार इच्छाएं अधूरी रह गईं। मैं आसमान से तारे तोड़ कर जमीन पर लाना चाहता था।  धरती से स्वर्ग तक की सीढ़ी बनाने की बड़ी इच्छा थी। अग्नि को हमेशा के लिए बुझाना चाहता था। चौथी इच्छा थी सोने को सुगंधित करने की, लेकिन चारों इच्छा अधूरी रह गई हैं।

जैन मुनि ने कहा कि महाराज बनो या महाराजा, सबसे पहले इंसान बनो। जब हमें इंसान का जन्म मिला है तो सबसे पहले इंसानियत को तो मन में लाओ। सच्चा इंसान वही है जो दूसरों का हमदर्द हो। दूसरों के लिए उपकार करे। क्योंकि इंसान का काम केवल अपने लिए जीना नहीं, बल्कि औरों के लिए समर्पित होना है। उन्होंने कहा कि धनवान कभी निर्धन होगा, निर्धन कभी धनवान होगा। समय-समय पर संकट आएंगे। संकट में भी नहीं घबराये, वही इंसान होगा। संयम बहुत जरूरी है। संयम से व्यक्ति में संकटों से जूझने की ताकत आती है।

जैन मुनि ने कहा कि व्यक्ति जरा सी उन्नति कर ले,  अहंकारी हो जाता है। फिर तो वह सोचता है कि उससे गलती हो ही नहीं सकती, जबकि हर आदमी गलती का पुतला है। गलतियां सभी से होती हैं, लेकिन जो गलतियों को स्वीकार ले, उन पर पश्चाताप करे, वह सच्चा इंसान कहलाता है।

मानव मिलन संस्थापक नेपाल केसरी डॉक्टर मणिभद्र मुनि, बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी  एवं स्वाध्याय प्रेमी  विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में शनिवार को 29 वीं गाथा का जाप ऋषभ जैन, सुरेश जैन, शारदा जैन, अरविंद जैन, विवेक जैन, सुशील जैन परिवार ने लिया। नवकार मंत्र जाप की आराधना आनंद जैन परिवार ने की।

शनिवार की धर्मसभा में कानपुर, मेरठ, लुधियाना, जयपुर से आए अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे। शनिवार के अनुष्ठान में राजेश सकलेचा, प्रेम चंद जैन, विवेक कुमार जैन, अनिल जैन, अशोक जैन गुल्लू आदि उपस्थित थे।

Dr. Bhanu Pratap Singh