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इनके कारण है चार साहिबजादों के शहीद होने की पूरे देश में गूंज, पीएम मोदी तक पहुंची बात, पढ़िए पूरी कहानी

NATIONAL RELIGION/ CULTURE

डॉ. भानु प्रताप सिंह

Agra, Uttar Pradesh, India.  सिखों के दशम गुरु गुरु गोविन्द सिंह जी के चार साहिबजादों बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह धर्म की रक्षा के लिए शहीद हो गए। चार साहिबजादों के बलिदान की गूंज अगर पूरे देश में हो रही है तो इसका श्रेय इन्हें को जाता है। ये हैं- गुरुद्वारा गुरु का ताल के मौजूदा मुखी संत बाबा प्रीतम सिंह, शांति दूत बंटी ग्रोवर और अभियान फाउंडेशन के अध्यक्ष रवि दुबे। रवि दुबे यात्रा संयोजक, बंटी ग्रोवर यात्रा प्रभारी के रूप में काम किया। संत बाबा प्रीतम सिंह ने अरदास और सरोपा भेंटकर यात्रा को रवाना किया। इनके कारण चार साहिबजादों की शहादत की अमर गाथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंची।  इसके अलावा तमाम लोगों ने पर्दे के पीछे रहकर काम किया।

 

राष्ट्र जागरण सड़क यात्रा

हम आपको पूरे घटनाक्रम से अवगत कराएं, इससे पहले पृष्ठभूमि को जान लेना आवश्यक है। 2020 में अभियान फाउंडेशन के बैनर तले एक टीम बनाई गई। नौजवान पीढ़ी चार साहिबजादों की शहीदी को स्मरण रख सकें, इसके लिए राष्ट्र जागरण सड़क यात्रा का आयोजन आगरा से फतेहगढ़ साहिब (सरहिंद, पंजाब) तक किया गया। यात्रा शुरू करने से पूर्व अभियान फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं यात्रा संयोजक रवि दुबे, पूरन डावर, बंटी ग्रोवर, भूपेंद्र ठाकुर, शंक्रेश शर्मा, मनीष गुप्ता, मास्टर गुरनाम सिंह के नाम से एक पत्रक वितरित किया गया। आगरा किला से युवाओं का जत्था 25 दिसम्बर, 2020 को रवाना हुआ। मार्ग में पड़ने वाले विभिन्न जिलों से होते हुए 28 दिसम्बर, 2020 को फतेहगढ़ साहिब (पंजाब) पहुंचा। वहां शहीदी दिवस पर आयोजित कीर्तन दरबार में माथा टेका और खुद को धन्य माना। गुरु गोविन्द सिंह जी के चार साहिबजादों, माता गूजर कौर के सम्मान में सात मांगें की गईं। वह भी इसलिए कि शहादत भावी पीढ़ी को मस्तिष्क में रहे और प्रेरणा ग्रहण कर सके।

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राष्ट जागरण यात्रा के लिए 2020 में हुई प्रेसवार्ता

करनाल और पानीपत का वह दृश्य

राष्ट्रीय सिख संगत के संगठन मंत्री जसवीर सिंह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्थान-स्थान पर यात्रा के लिए व्यवस्थाएं कीं। पूरी यात्रा में सिर्फ तीन सरदार थे, बंटी ग्रोवर, मास्टर गुरनाम सिंह और नवजोत सिंह। यह भी लोगों के लिए अचरज भरी बात थी कि अन्य समाज के लोग चार साहिबजादों की बात कर रहे हैं। पानीपत में तो यात्रा का इतना जबर्दस्त स्वागत हुआ कि एक मिष्ठान्न विक्रेता ने दुकान की पूरी मिठाई वितरित कर दी। करनाल में यात्रा रात्रि दो बजे पहुंची। घने कोहरे में भी लोग बड़ी संख्या में स्वागत के लिए खड़े हुए थे। यात्रा संयोजक रवि दुबे का जबर्दस्त भाषण सुनकर लोग रोमांचित हो उठते थे।

 

यात्रा का प्रभाव

इस यात्रा का प्रभाव यह हुआ कि 26 दिसम्बर को वीर बाल दिवस घोषित किया गया। वैसे मांग की गई थी कि 14 दिसम्बर के स्थान पर 26 दिसम्बर बाल दिवस घोषित किया जाए। सिख इतिहास को देखें तो पता चलता है कि गुरु गोविंद सिंह के शहीद चार सुतों को कहीं भी बाल या बालक नहीं लिखा गया है। उन्हें साहिबजादा कहा गया है। इसलिए संत बाबा प्रीतम सिंह कहते हैं कि वीर बाल दिवस के स्थान पर साहिबजादा दिवस होना चाहिए। इसके निमित्त वे प्रयास कर रहे हैं। साहिबजादों की जीवनी को यूपी बोर्ड और सीबीएसई ने पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है।

आगरा में हजारों विद्यार्थियों ने मानव श्रंखला बना चार साहिबजादों की शहादत को नमन किया, देखें तस्वीरें

गुरु गोविंद सिंह जी का बलिदान सर्वोपरि

गुरु गोविंद सिंह जी का बलिदान सर्वोपरि और अद्वितीय है, क्योंकि गुरूजी ने धर्म के लिए अपने पिता गुरु तेगबहादुर साहिब जी और अपने चार पुत्र बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को बलिदान कर दिया था। बड़े दो पुत्र तो चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए थे और दो छोटे पुत्र बाबा जोरावर सिंह (आयु आठ वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (आयु पांच वर्ष) जब अपनी दादी के साथ सिरसा नदी पार कर रहे थे तो अपने लोगों से बिछड़ गए, जिनको मुसलमान सूबेदार वजीर खान ने ठन्डे बुर्ज में सरहिंद में कैद कर लिया था। वजीर खान ने पहले तो साहिबजादों को इस्लाम कुबूल करने के लिए लालच दिया, जब साहिबजादे नहीं माने तो मौत की धमकी भी दी, लेकिन बच्चों ने कहा कि हमारे दादा जी ने धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली में अपना सिर कटवा लिया था। हम मुसलमान कैसे बन सकते हैं? हम तेरे इस्लाम पर थूकते हैं (गुरु तेगबहादुर साहिब जी ने 16 नवम्बर, 1675 को हिन्द धर्म की रक्षा के लिए अपना सिर कटवा लिया था) साहिबजादों का जवाब सुनकर वजीर खान आगबबूला हो गया उसने दोनों को दीवार में जिंदा चिनवा दिया। हिन्दुत्व के लिए वह शहीद हो गये। यह सन् 1704 की बात है, उस समय देश में औरंगजेब की हुकूमत थी। जब गुरु गोविंद सिंह जी को साहिबजादों के दीवार में चिनवाए जाने की खबर मिली तो वह हताश नहीं हुए। गुरुजी चाहते थे कि लोग अपनी कायरता का त्याग करके निर्भय होकर अत्याचारी मुगलों का मुकाबला करें, तभी धर्म की रक्षा हो सकेगी। इसके लिए गुरुजी ने अस्त्र-शस्त्र की उपासना की रीति चलाई। आजादी के 75 साल बाद भी इस शौर्यगाथा का इतिहास और न ही किसी पाठ्यक्रम में कोई वर्णन है।

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light and sound show

पाठ्यक्रम में आज भी मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत के पाठ

यह देश का दुर्भाग्य है कि सोने की चिड़िया रहे इस देश को लूटने खसोटने वाले, खंड-खंड करने वाले तथा बहुसंख्यक हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर अल्पसंख्यक बनाने वाले विदेशी आक्रांताओं को आजाद भारत में खूब महिमा मंडित किया गया। विदेशी आतातायी गए लेकिन हमारे इतिहास को भी बदल गए। विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम में आज भी मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत के पाठ पढ़ाए जा रहे हैं। देश की रक्षा में प्राण न्योछावर करने वाले राजाओं, धर्मगुरुओं, संन्यासी और वैरागियों के विषय में एक पंक्ति भी किसी पाठ्यक्रम में शामिल नहीं की गई। जो उचित सम्मान उन वीर सपूतों को मिलना चाहिए था, उनके बलिदान को आज की नई पीढ़ी समझ पाती, उनसे वह वंचित है। ना ही किसी चौराहा, राजमार्ग, गली-मोहल्ले, पार्क व इमारत का नाम देश और धर्म की रक्षा में प्राण न्योछावर करने वालों के नाम पर रखा गया।

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आगरा से सरहिन्द गए यात्रियों का स्वागत।

केन्द्र सरकार से आग्रह

1.बाल दिवस को 14 नवम्बर की जगह गुरु गोबिंद सिंह जी के शहीद पुत्रों की स्मृति में उनके शहीदी दिवस के दिन 26 दिसंबर किया जाए।

2.चमकौर युद्ध को छठवीं से आठवीं कक्षा तक के कोर्स में सभी राज्यों के सभी बोड़ों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

3.फतेहगढ़ साहिब से लेकर पटना साहिब तक एन.एच.-2 का नाम माता गूजर कौर राजमार्ग किया जाए।

4.गुरु गोविंद सिंह जी व उनके परिवार का जीवन चरित्र दसवीं से 12 तक के पाठ्यक्रम में सभी राज्यों में सभी बोर्ड में शामिल किया जाए।

5.चमकौर (पंजाब राज्य के रूपनगर जिले में स्थित एक नगर) तथा फतेहगढ़ साहिब (सरहिंद, पंजाब) में राष्ट्रीय स्तर का स्मारक गुरु गोविंद सिंह जी के चारों पुत्रों की स्मृति में बनाया जाए।

6.भविष्य में कोई भी नया उपग्रह, लड़ाकू विमान अथवा नए वैज्ञानिक आविष्कार का नामकरण गुरु गोविन्द सिंह जी के शहीद पुत्रों के नाम बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह के नाम पर किया जाए।

7.गुरु तेगबहादुर साहिब जी के 400वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में दिल्ली मेट्रो के राजीव चौक स्टेशन का नाम बदलकर गुरु तेगबहादुर साहिब जी चौक किया जाए।

सिख नेता
सिख समाज के नेताओं को अवगत कराया। साथ में मास्टर गुरनाम सिंह, बंटी ग्रोवर, रवि दुबे।

मुख्यमंत्री से आग्रह

गुरु तेगबहादुर साहिब जी के गिरफ्तारी स्थल गुरुद्वारा गुरु का ताल आगरा में म्यूजियम बनाने के लिए मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ से पहले ही निवेदन किया जा चुका है।

 

क्या कहते हैं गुरुद्वारा दुख निवारण के मौजूदा मुखी संत बाबा प्रीतम सिंह

चमकौर साहिब का युद्ध 6 दिसम्बर, 1704 में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और सरहिन्द के नवाव वजीर खान की मुगल सेना के बीच हुआ, जिसमें गुरु साहिब के दोनों बड़े बेटे साहिबज़ादा अजीत सिंह जी व साहिबज़ादा जुझार सिंह अद्भुत वीरता से लड़ते हुए शहीद हुए थे। लाखों मुगल मात्र 40 सिखों की खालसा सेना को हरा ना पाए। 26 दिसम्बर, 1704 को बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह को दीवार में जिन्दा चिनवाकर शहीद कर दिया गया। 27 दिसम्बर, 1704 को माता गूजर कौर ने प्राण त्याग दिए। चार साहिबजादे धर्म व कौम की रक्षा के लिए शहीद हो गए। वीर बाल दिवस के स्थान पर ‘साहिबजादा दिवस’ घोषित किया जाना चाहिए।

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चार साहिबजादों पर केन्द्र ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम देखने के लिए लोग उमड़ पड़े। आगरा किला के पार्श्व में यह कार्यक्रम हुआ।

क्या कहते हैं मानव श्रंखला के सूत्रधार बंटी ग्रोवर

चार साहिबजादों की शहादत अमर है। इसी कारण इस बार आगरा में सात दिन तक विभिन्न कार्यक्रम हुए हैं। आगरा किला के पार्श्व में चार साहिबजादों पर केन्द्रित ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम आयोजित किया गया। सर्दी का अहसास कराने के लिए खुले में  हजारों लोग बैठे और उस दर्द का आत्मसात किया जो साहिबजादों को हुआ होगा। आगरा के इतिहास में पहली बार चार साहिबजादों की शहादत को नमन करने के लिए हजारों विद्यार्थियों ने मानव श्रंखला बनाई। 2021 की पहली मानव श्रृंखला में 300 लोग थे। 2023 में यह संख्या 20 हजार करेंगे। मिशनरी स्कूल भी शामिल होंगे। नई पीढ़ी को चार साहिबजादों के बारे में जानकारी मिले, इसके लिए आवश्यक है कि सभी प्रकार के बोर्ड में उनकी जीवनी शामिल की जाए। हमारी मांगों के प्रति सरकार का रुख सकारात्मक है।

आगरा किला के पार्श्व में गूंजी गुरु गोविन्द सिंह के चार साहिबजादों की शहादत

क्या कहते हैं अभियान फाउंडेशन के अध्यक्ष रवि दुबे

गुरु गोविन्द सिंह जी हमारे लिए युद्ध के देवता हैं। उन्होँने अधर्मियों के खिलाफ लड़ना सिखाया। तलवार धारण करना सिखाया और यही कारण है आज हिन्दू धर्म बचा हुआ है। यह बड़े ही दुख की बात है कि हम भारतीयों ने गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानियों को सिर्फ 318 साल में भुला दिया। अपने गौरवशाली इतिहास को भुला दिया और यही मूल कारण है कि हम गुलाम बने। न भूलें कि श्री गुरू गोविन्द सिंह ही हैं जिनके कारण आज सनातन संस्कृति बची हुई है। हमने 2020 में यात्रा निकालकर केन्द्र सरकार के समक्ष मांगें रखी हैं। इसका परिणाम भी निकला है। आशा है आगरा में जल्दी ही गुरु तेग बहादुर जी की स्मृति में संग्रहालय बनेगा।

Dr. Bhanu Pratap Singh