डॉ. भानु प्रताप सिंह
आज 22 फरवरी, 2021 को आगरा में छठवें अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव में भाग लेने का अवसर मिला। करीब पांच घंटे वहां बिताए। वहां जो कुछ देखा और सुना, वह अद्भुत, अविस्मरणीय, अनोखा, अकल्पनीय, अवर्णनीय और असहनीय है। आप कहेंगे कि इतने विशेषणों के साथ असहनीय क्यों लिख दिया है। मित्रो, असहनीय तुकबंदी के लिए नहीं लिखा है। मेरे लिखने के केन्द्र में यही असहनीय बात है। अब मैं जो कुछ लिखने जा रहा हूँ, उसे अपने दिल पर लें। आपको अनच्छ भी लगना चाहिए। फिर आपको अगर अपनी बदगोई महसूस होती है तो और भी अच्छा है।
पहले आपको अवगत करा दूँ कि आगरा उत्तर भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी रहा है। गजल का जन्मदाता आगरा ही है। मीर तकी मीर, नजीर अकबराबादी, मिर्जा गालिब आगरा के हैं। अकबर के समय रहीमदास आगरा में रहे। सूरदास ने आगरा में ही सूरसागर की रचना की। हिन्दी के पहले ग्रंथ प्रेमसागर के रचयिता लल्लूलाल और खड़ी बोली के जनक राजा लक्ष्मण सिंह आगरा के हैं। 1911 में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना हुई। संगीत की बात करें तो महान संगीतज्ञ बैजू बावरा और तानसेन को भला कौन नहीं जानता। उस्ताद फैयाज खां ने आगरा घराना की स्थापना की। उस्ताद हुसैन खां के बाद आगरा घराना लुप्त हो गया। हवेली संगीत परंपरा आगरा में फलीफूली।
भगत, रास, नौटंकी, नाट्यमंच में आगरा सदैव अग्रणी है। भारतेन्दु युग में आगरा में नाटकों का मंचन होता रहा। थियेट्रिकल कंपनी, कृष्णा थियेट्रिकल कंपनी, सरस्वती थियेटर, जननाट्य संघ इप्टा ने उल्लेखनीय कार्य किया। रंगमंच में संक्रिय रहे आगरा के अनेक कलाकार मायानगरी मुंबई में नाम रोशन कर रहे हैं। इनमें राज बब्बर के नाम से हर कई परिचित है। रंग लोग संस्था ने आगरा में व्यावसायिक थियेटर शुरू किया। केशव प्रसाद सिंह कई साल तक नाट्य महोत्सव आयोजित करते रहे हैं। अनिल शुक्ल और डॉ. श्रीभगवान शर्मा ने भगत विधा को फिर से जीवित किया है। राजेन्द्र रघुवंशी, अरुणा रघुवंशी, जितेन्द्र रघुवंशी के योगदान को कौन भुला सकता है।

इन दिनों नटरांजिल थियेटर आर्ट्स चर्चा में है। इस संस्था ने रंगमंच के क्षेत्र में पूरे विश्व में आगरा की धाक जमा रखी है। 21 से 25 फरवरी तक छठवां अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव चल रहा है। इसे ताज कल्चरल ओलंपियाड 2021 भी लिखा जा रहा है। संस्था की निदेशक हैं अलका सिंह। वे रंगमंच के लिए समर्पित हैं। न जाने कहां से इतनी ऊर्जा और साहस लेकर आती हैं कि लगातार छह साल से देशभर के कलाकारों को आगरा की धरती पर लाती हैं और रंगमंच को सजाती हैं। ये कलाकार मंच पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करते हैं। जो देखता है, देखता ही रह जाता है। पूरे देश की कला और संस्कृति एक ही स्थान पर है। मतलब आगरा में ताजमहल के अलावा लघु भारत कहीं है तो अंतरराष्ट्रीय ताज रंग महोत्सव में।
अब मैंने जहां से बात शुरू की थी वहीं आ रहा हूँ। ताजरंग महोत्सव में अद्भुत, अविस्मरणीय, अनोखा, अकल्पनीय, अवर्णनीय और असहनीय है। स्थिति असहनीय क्यों है? कारण यह है कि कलाकारों की कला को देखने और सुनने वाले नहीं है। 10 लाख से अधिक की आबादी वाले शहर से 100 लोग भी ऐसे नहीं हैं जो कलाकारों को प्रोत्साहित कर सकें। क्या हो गया है मेरे शहर को? शहर की सांस्कृतिक विरासत पर टसुए बहाने वाले कहां हैं? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी संस्था संस्कार भारती को कौन नहीं जानता, इससे जुड़े कलाकारों का बेड़ा भी न जाने कहां है? क्या सोशल मीडिया पर विलाप करने से भारतीय संस्कृति सुरक्षित, संवर्धित, संरक्षित हो जाएगी? आगरे में रंगमंच से जुड़े सैकड़ों कलाकार हैं, लेकिन रंगमंच को समर्पित अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव से गायब हैं। आखिर क्यों? क्या इसलिए कि यह महोत्सव अलका सिंह करा रही हैं? क्या इसलिए कि आप आए तो दर्शक संख्या बढ़ जाएगी और श्रेय अलका सिंह को मिल जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं है कि एक महिला कलाकार को आप आगे नहीं बढ़ने देना चाहते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि महिला को आगे बढ़ते हुए देखकर आप ईर्ष्या से जलभुन गए हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि प्रसिद्ध साहित्यकार श्रुति सिन्हा ने अलका सिंह को ‘लौह महिला’ की संज्ञा दी है, जिससे सुनकर आपका मन वितृष्णा से भर गया है? कहीं आप यह देखकर तो नहीं कुढ़ रहे हैं कि एक महिला बिना सरकारी सहायता के इतना बड़ा आयोजन कर लेती है?

अगर इन प्रश्नों का उत्तर ‘हाँ’ में है तो आप कृपया कतई मत आइए। हां, अगर एक भी प्रश्न का उत्तर ‘न’ में है तो आपको ताजरंग महोत्सव में अवश्य आना चाहिए। इस बार पूरे समय चाय, जलपान और भोजन की भी अच्छी व्यवस्था है। रतन हीरा रिसोर्ट पहुंचने के लिए सीधा सा रास्ता है। आप कारगिल पेट्रोल पम्प सिकंदरा से पश्चिमपुरी की ओर चलिए। दाएं हाथ पर रतन हीरा रिसोर्ट दिखाई दे जाएगा। टेम्पो से भी आना आसान है। आप आइए, कलाकारों की कला को मान-महत्व दीजिए। कलाकार को आपसे कुछ नहीं चाहिए। आपकी तालियां ही उनका हौसला बढ़ाने के लिए पर्याप्त हैं। 21 और 22 फरवरी बीत चुकी है। तीन दिन और बचे हैं। किसी न किसी कार्यक्रम में शामिल होइए। आगरा का होने के नाते आप यह कतई नहीं चाहेंगे कि पूरे देश से आए कलाकार शहर की नकारात्मक छवि लेकर वापस जाएं।
हां, एक बात और। आयोजन स्थल पर भेंट हुई डॉ.सुशील गुप्ता, डॉ. सीपी राय, डॉ. पार्थसारथी शर्मा, सुरेशचन्द्र गर्ग, रंजीत सामा, सर्वज्ञशेखर गुप्त से। सबको आश्चर्य था कि इतने सुंदर आयोजन और श्रेष्ठ कलाकारों को कला को देखने वाले नहीं आ रहे हैं। डॉ. शर्मा के शब्दों में, ताजरंग महोत्सव में आना सौभाग्य है। लोकस्वर के अध्यक्ष राजीव गुप्ता का फोन आया तो वे भी कहने लगे- अलका सिंह की बड़ी हिम्मत है इतना बड़ा आयोजन अकेले कर रही हैं। हमारी तो दम ही निकल जाएगी। दुख है कि अन्य कलाकार नहीं पहुंच रहे हैं। कार्यक्रम समन्वय और शांतिदूत बंटी ग्रोवर, टोनी फास्टर आदि के बारे में क्या लिखूं, सब दिन-रात एक किए हुए हैं। सबने मिलकर आगरा शहर को सौगात दे दी है, अब शहवासियों की जिम्मेदारी है कि शिखर तक पहुंचाएं। कलाकारों से मेरा निवेदन है कि राजनीति न करें। आपकी अलग-अलग संस्थाएं हैं, होनी भी चाहिए लेकिन जब रंगमंच के उत्थान की बात आए तो एकजुट होना ही पड़ेगा अन्यथा रंगमंच में सिर्फ ‘मंच’ रह जाएगा और ‘रंग’ गायब हो जाएगा।
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