Independence Day

आइए, सुराज्य की स्थापना का संकल्प लेकर मनाएं स्वतंत्रता दिवस

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हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपार बलिदान और अपने प्राणों की आहुति देकर हमारे देश को 150 वर्ष की ब्रिटिश गुलामी से मुक्त कराया। यही कारण है कि हम स्वतंत्रता दिवस मना सकते हैं। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी भारत का स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाएगा। हमें स्वराज्य मिला लेकिन सुराज्य की स्थापना नहीं हुई। अगर हमें एक आदर्श व्यवस्था चाहिए तो लोगों को जागरूक होना होगा और संवैधानिक तरीके से अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा। आइए सुराज्य स्थापित करने और राष्ट्र की रक्षा करने के संकल्प के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाएं!
       
राष्ट्रप्रेम और एकता का अभाव इस कारण भुगतना पड़ा पारतंत्र्य

हर वर्ष हम अपने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। भारत के स्वतंत्र होने से पहले, मुगलों, पुर्तगाली, आदिलशाहों, कुतुबशाहों और अंग्रेजों जैसे कई लोगों ने भारत पर शासन किया था। उन सभी ने भारत के स्वार्थी और लालची लोगों का हाथ पकड़कर और स्वतंत्रता सेनानियों पर अत्याचार करके शासन किया। अंग्रेज व्यापार के लिए भारत आए। ऐसे मुट्ठी भर अंग्रेजों ने हमारे देश के लाखों लोगों पर 150 वर्षों तक शासन किया। हमारी सांगठनिक शक्ति की कमी के कारण इतनी कम संख्या होते हुए भी विदेशी हम पर शासन कर सके । कोई और हम पर शासन कर रहा है; वे जुल्मी है यह जानते हुए भी केवल देश-भक्ति और एकता की कमी के कारण ये विदेशी हम पर शासन कर सके। हमें परतंत्र में रहना पड़ा क्योंकि इन गुणों का सही समय पर उपयोग नहीं किया गया था।

स्वतंत्रता पूर्व काल में राष्ट्र ध्वज को प्राणों से भी अधिक जतन करने वाले देशभक्त  

तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज है। स्वतंत्रता पूर्व काल में, ब्रिटिश ‘यूनियन जैक’ झंडा भारत के ऊपर फहरा रहा था। अंग्रेजों के अत्याचारी शासन के विरोध में विद्रोह, संघर्ष और सत्याग्रह के दौरान, कई स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत का तिरंगा झंडा अपने हाथों में लेकर बहादुरी से लड़ाई लड़ी। बहुत से लोगों ने तिरंगे को अपने सीने से लगाकर मृत्यु को गले लगाया ; परंतु झंडे को जमीन पर गिरने या मरने तक हाथ से फिसलने नहीं देना, यह इतिहास है। ब्रिटिश शासन के समय तिरंगे को हाथ में लेना अपराध माना जाता था। ऐसे में यह झंडा राष्ट्र भावना को जगाता था । ध्वज का स्मरण होते ही हमें राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्य का स्मरण होता था । राष्ट्र प्रेमी नागरिक के शरीर की हर कोशिका-कोशिका उस समय का राष्ट्रीय महामंत्र के रूप में ‘वंदे मातरम’ बोला करती थी।
भारतीयों, राष्ट्रीय ध्वज के प्रति जागरूकता विकसित करें

 भारतीयों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र के अन्य प्रतीकों को संकुचित वृत्ति से देखे बिना उनके प्रति जागरूकता विकसित करें। राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक है, उसका उचित सम्मान करना यह राष्ट्राभिमान का प्रतीक है। राष्ट्रीय ध्वज हमें बलिदान, क्रांति, शांति और समृद्धि के मूल्य सिखाता है। याद रखें कि उत्साह के कारण राष्ट्रीय ध्वज का दुरुपयोग करते हुए हम इन मूल्यों को रौंद रहे हैं। राष्ट्रध्वज के अपमान को रोकना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। आइए हम उन स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों को याद करें जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और उनके उन गुणों का अनुकरण करने का प्रयास करेंगे जिन के कारण वे स्वतंत्रता की  लड़ाई लड़ पाए ।

राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करना बंद करो

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर, ध्वजारोहण के समय गर्व से ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ कहा जाता है; लेकिन साथ ही, बच्चों के हठ के कारण खेलने या वाहनों पर रखने के लिए , लिए हुए  कागज और प्लास्टिक के झंडे सड़कों पर और फिर कचरे में देखे जा सकते हैं, और उन्हें पैरों के नीचे रौंद दिया जाता है। कुछ लोग अपने चेहरे को तिरंगे की तरह रंग लेते हैं। इस के कारण,  स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया जा रहा है, इस का भान हमें नहीं होता । क्या यह उन क्रांतिकारियों के बलिदान का क्रूर उपहास नहीं है जिन्होंने तिरंगे को जमीन पर गिरने से रोकने के लिए लाठी खाकर अपने प्राणों की आहुति दे दी?

इस वर्ष भी यह पाया गया है कि तिरंगे के मास्क दुकानों के साथ-साथ ऑनलाइन भी बेचे जा रहे हैं। तिरंगे का मुखौटा/मास्क पहनने से राष्ट्रीय ध्वज की पवित्रता नहीं बनी रहती है। ‘तिरंगा मास्क’ देशभक्ति प्रदर्शित करने का साधन नहीं है। अशोक चक्र के साथ तिरंगे का मुखौटा बनाना और उसका उपयोग करना ध्वज संहिता के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज का अपमान है। ऐसा करना राष्ट्रीय मानकों के दुरुपयोग की रोकथाम अधिनियम, 1950 की धारा 2 और 5 के अनुसार है; यह राष्ट्रीय गरिमा के अपमान की रोकथाम अधिनियम 1971 की धारा 2 और तीन अधिनियम और नाम (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम, 1950 की धारा 2 के तहत एक दंडनीय अपराध भी है। यह स्वीकार करते हुए कि राष्ट्रीय ध्वज को बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है, जागरूक नागरिकों को उन विक्रेताओं के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए जो सरकारी अध्यादेशों, व्यक्तियों, संगठनों और राष्ट्रीय ध्वज को अपवित्र करने वाले समूहों की अवहेलना करते हुए प्लास्टिक के झंडे बेचते हैं। पुलिस-प्रशासन को भी सतर्क रहना चाहिए और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.

राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों को याद करें

15 अगस्त की सुबह ध्वज को सलामी देने का प्रयास करें। इस के उलट इस दिन देर तक सोना, घुमने के लिए जाना,  घर में दूरदर्शन का कार्यक्रम देखना, इस प्रकार की बातें दिखाई देती है । इसके अपेक्षा स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले स्वातंत्र्य वीरों की व  क्रांतिकारियों का स्मरण कर के  उनके जिन गुणों के कारण वे स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ पाए,उनके प्रति कृतज्ञता के लिए ध्वजवंदन करना अधिक उचित है। मैकाले की वर्तमान शिक्षा प्रणाली के कारण नागरिकों को केवल शिक्षित किया जा रहा है परंतु वे संस्कारी नहीं बन रहे । इसलिए, जो लोग भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), डॉक्टरों, वकीलों आदि में उच्च शिक्षा प्राप्त कर बड़े हुए हैं, वे आम आदमी को लूटते और भ्रष्टाचार करते दिखाई देते हैं। हमें नैतिक मूल्यों को विकसित करने की जरूरत है। इसके लिए प्रयास करना भी उतना ही जरूरी है। आज से हमें अपने देश के सर्वश्रेष्ठ नागरिक बनने का प्रयास करना चाहिए। हमें राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति को जगाने और अपने राष्ट्र को दुनिया भर में प्रसिद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।

सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ व्यापक लड़ाई छेड़ना जरूरी 

  भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा था कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर इसे लागू करने वाले शासक अक्षम हैं, तो लोकतंत्र विफल हो जाता है। उनके अनुसार, आज संसद में इतने भ्रष्ट और आपराधिक सदस्यों के कारण लोकतंत्र/लोकशाही फेल हुई है यह 74 वर्ष में ही सामने आया हैं। लोकतंत्र की व्यवस्था बदलने के लिए समाज को बिना सोए लोकतंत्र द्वारा प्रदान किए गए तरीकों उदाहरण स्वरूप प्रदर्शनों, जनहित याचिकाओं, सूचना के अधिकार के प्रयोग, शिकायतों आदि से न्याय मार्ग का उपयोग कर के लोकतंत्र में सामाजिक बुराइयों के खिलाफ व्यापक लड़ाई खड़ी करना अपेक्षित है। यह संघर्ष एक आदर्श व्यवस्था की ओर ले जाएगा।

सुरेश मुंजाल

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