2024 की शुरुआत में भारत करेगा पहले महासागर मिशन समुद्रयान ‘मत्स्य 6000’ की शुरूआत – Up18 News

2024 की शुरुआत में भारत करेगा पहले महासागर मिशन समुद्रयान ‘मत्स्य 6000’ की शुरूआत

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भारत अपने पहले महासागर मिशन समुद्रयान के तहत मानवयुक्त पनडुब्बी को अगले साल यानी 2024 की शुरुआत में गहरे समुद्र में भेजेगा। ‘मत्स्य 6000’ नाम की इस पनडुब्बी की टेस्टिंग बंगाल की खाड़ी में की जाएगी। पहले ट्रायल में इसे समुद्र की 500 मीटर गहराई में भेजा जाएगा। 2026 तक ये तीन भारतीयों को महासागर में 6000 मीटर की गहराई में ले जाएगी।

इसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) के साइंटिस्ट्स ने 2 साल में तैयार किया है। वो अभी इसे रिव्यू कर रहे हैं। जून 2023 में अटलांटिक ओशन में टाइटन नाम की पनडुब्बी डूब गई थी। पांच अरबपतियों की मौत हो गई थी। इस घटना को ध्यान में रखते हुए NIOT ने ‘मत्स्य 6000’ की डिजाइन को रिव्यू करने का फैसला किया।

टाइटेनियम एलॉय से बनी है ‘मत्स्य 6000’

NIOT के डायरेक्टर जी.ए. रामदास ने ‘मत्स्य 6000’ पनडुब्बी की खासियत बताते हुए कहा- ये 12-16 घंटे तक बिना रुके चल सकती है। इसमें 96 घंटे तक ऑक्सीजन सप्लाई रहेगी। इसका व्यास 2.1 मीटर है। इसमें तीन लोग बैठ सकते हैं। ये 80mm के टाइटेनियम एलॉय से बनी है। ये 6000 मीटर की गहराई पर समुद्र तल के दबाव से 600 गुना ज्यादा यानी 600 बार (दबाव मापने की इकाई) प्रेशर झेल सकती है।

समुद्र तल से धातुएं निकालने की कवायद

भारत सरकार इस मिशन के जरिए समुद्र तल से मोबाइल-लैपटॉप जैसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाने के लिए कोबाल्ट, निकल और सल्फाइड जैसी धातुएं और खनिज निकालने का प्रयास कर रही है।

दरअसल, ग्‍लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए ई-वाहनों और उनके लिए बैटरियों की मांग में तेजी हो रही है। वहीं, इनको बनाने में इस्‍तेमाल होने वाले संसाधन दुनियाभर में कम होते जा रहे हैं।

समुद्र की गहराई में पाया जाने वाला लीथियम, तांबा और निकल बैटरी में इस्‍तेमाल होते हैं। वहीं, इलेक्ट्रिक कारों के लिए जरूरी कोबाल्‍ट और स्‍टील इंडस्‍ट्री के लिए जरूरी मैगनीज भी समुद्र की गहराई में उपलब्‍ध है।

अनुमानों के मुताबिक तीन साल में दुनिया को जहां दोगुना लीथियम और 70% ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत होगी वहीं अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि 2030 तक करीब पांच गुना ज्यादा लीथियम और चार गुना ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत होगी। इन रॉ-मटेरियल का उत्पादन मांग से काफी कम हो रहा है। इस अंतर को बैलेंस करने के लिए समुद्र की गहराई में खुदाई को विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।

सिर्फ रिसर्च के लिए 14 देशों को डीप सी एक्सप्लोर करने की इजाजत

UN से जुड़ी इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) ने​ सिर्फ रिसर्च के लिए 14 देशों को डीप सी को एक्सप्लोर करने की मंजूरी दी है। इन देशों में चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, भारत, ब्रिटेन, फ्रांस, पोलैंड, ब्राजील, जापान, जमैका, नाउरू, टोंगा, किरिबाती और बेल्जियम शामिल हैं।

भारत सरकार ने 2021 में ‘डीप ओशन मिशन’ को मंजूरी दी थी। इसका उद्देश्य समुद्री संसाधनों का पता लगाना और गहरे समुद्र में काम करने की तकनीक विकसित करना है। साथ ब्लू इकोनॉमी को तेजी से बढ़ावा देना भी इसका एक उद्देश्य है। ब्लू इकोनॉमी एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो पूरी तरह से समुद्री संसाधनों पर आधारित है।

हालांकि स्वीडन, आयरलैंड, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन, न्यूजीलैंड, कोस्टा रिका, चिली, पनामा, पलाऊ, फिजी और माइक्रोनेशिया जैसे देश डीप सी माइनिंग पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं।

अटलांटिक महासागर में डूबे टाइटैनिक शिप के मलबे को देखने गई टाइटन सबमरीन हादसे का शिकार होकर पानी में डूब गई थी। हादसे में सबमरीन में सवार पांच अरबपतियों की मौत हो गई थी। इसमें टाइटन सबमरीन बनाने वाली कंपनी ओशनगेट के सीईओ स्टॉकटन रश भी शामिल थे।

Dr. Bhanu Pratap Singh