डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India. Bharat. 14, 15 और 16 जुलाई को भारत-पाक शिखर वार्ता हुई थी। 15 और 16 जुलाई को आगरा में शिखर वार्ता की धूम रही। इसे आगरा सम्मिट और आगरा शिखर सम्मेलन भी कहा जाता है। भारत के प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के बीट होटल जेपी पैलेस में बातचीत हुई। होटल मुगल शेरेटन में मीडिया वालों का जमावड़ा था। यहीं पर मीडिया को जानकारी दी जाती थी। इस दौरान मेरे साथ ऐसी घटना हुई, जो भुलाए नहीं भूलती है।
अमर उजाला में तैयारी
तब मैं प्रसिद्ध अमर उजाला अखबार में रिपोर्टर था। प्रशासन और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण समेत कई बीट मेरे पास थीं। अमर उजाला ने होटल मुगल के पास ही होटल कांत में अस्थाई कार्यालय खोला था। यहां नेट और कंप्यूटर भी लगाए गए थे। मैं (डॉ. भानु प्रताप सिंह, श्री सुभाष राय जी, श्री एसपी सिंह जी, श्री रामकुमार शर्मा जी, श्री राजकुमार शर्मा, मीनाक्षी झा समेत दिल्ली और अन्य जिले से एक पत्रकार को आगरा शिखर वार्ता की कवरेज के लिए तैनात किया गया था। इससे पहले श्री सुभाष राय ने अमर उजाला कार्यालय में एक बैठक करके भारत-पाकिस्तान के संबंधों के बारे में जानकारी दी। इससे हमें यह स्पष्टता हो गई कि किस तरह से काम करना है।
धुआंधार रिपोर्टिंग
मैं धुआंधार रिपोर्टिंग कर रहा था। पुरातत्व विभाग के स्मारकों का संबंध पाकिस्तान से जोड़ते हुए कई बाइलाइन समाचार प्रकाशित हुए। उस समय मेरी दृष्टि स्थानीयता से भरी हुई थी। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बारे में कामचलाऊ जानकारी ही थी।
पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को अजमेर जाने से रोकना
15 जुलाई को ही तय हो गया था कि परवेश मुशर्रफ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर शरीफ (राजस्थान) जाएंगे। इसे लेकर पाकिस्तानी पत्रकार उत्साहित थे। पूरे दिन इसे लेकर चर्चा होती रही। फिर अचानक ही उनका अजमेर शरीफ जाने की भारत सरकार ने अनुमति नहीं दी। पाकिस्तानी पत्रकार मायूस हो गए।
पाकिस्तानी पत्रकारों का हंगामा
शाम को भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता सुश्री निरूपमा राव ने होटल मुगल में पत्रकारों को संबोधित किया। उन्होंने लिखित वक्तव्य पढ़ा। इसके बाद पत्रकार चले गए। मैं वहीं रह गया। मैंने देखा कि पाकिस्तान के पत्रकार निरूपमा राव के सामने विरोध प्रदर्शन करने लगे। वे पूछ रहे थे- “आपने हमारे राष्ट्रपति को अजमेर शरीफ जाने से क्यों रोका?” यह कहते हुए पाकिस्तानी पत्रकार हंगामा करने लगे।

विदेश प्रवक्ता को घेरा
यूं तो आगरा सम्मिट को कवर करने के लिए देश-विदेश के करीब 400 पत्रकार मौजूद थे लेकिन उस समय पाकिस्तानी पत्रकारों के अलावा भारतीय पत्रकारों में सिर्फ मैं मौजूद था। निरूपमा राव कुछ फाइलें छाती से लगाए चलने को हुईं तो उन्हें पाकिस्तानी पत्रकारों ने घेर लिया। वे शोर मचा रहे थे। मांग कर रहे थे, “हमारे राष्ट्रपति को अजमेर शरीफ जाने दिया जाए।”
होटल की लॉबी तक पीछा
पाकिस्तानी पत्रकारों का रुख देख विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता होटल मुगल की लॉबी की ओर तेज कदमों से बढ़ीं। उनके पीछे-पीछे पाकिस्तानी पत्रकार थे। वे बार-बार एक ही सवाल पूछ रहे थे- “आपने हमारे राष्ट्रपति को अजमेर शरीफ जाने से क्यों रोका?” निरूपमा राव ऐसा आभास हुआ कि पाकिस्तानी पत्रकार कहीं पर हमला न कर दें। इसलिए उन्होंने गति बढ़ा दी और अपने कक्ष की ओर चली गईं। इसके बाद पाकिस्तानी पत्रकार शांत हुए।
पाकिस्तानी और भारतीय पत्रकार
मैंने अपने जीवन में इस तरह का दृश्य पहली बार देखा कि पत्रकार अपने देश के राष्ट्रपति के लिए विदेश में जाकर संघर्ष कर रहे हैं। मेरे मन में पाकिस्तान के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन वहां के पत्रकारों की देशभक्ति को प्रणाम जरूर किया। मैंने यह समाचार अमर उजाला में रिपोर्ट किया और प्रकाशित भी हुआ। यह एक्स्क्लूसिव समाचार था। इसके बाद 2013 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने ‘देहाती औरत’ कहकर मजाक उड़ाया। उस समय मौजूद भारत की महिला पत्रकार मुस्करा रही थी। यह अंतर है भारत और पाकिस्तान के पत्रकारों में।
जसवंत सिंह की लाइव प्रेसवार्ता
हम सब जानते हैं कि जनरल परवेज मुशर्रफ की जिद के कारण भारत-पाक शिखर वार्ता फेल हो गई। इसके बाद 16 जुलाई, 2001 को होटल मुगल में रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री जसवंत सिंह की प्रेसवार्ता हुई। सबसे आगे दिल्ली से आए अंग्रेजी अखबारों के पत्रकार बैठे थे। हिंदी अखबारों के पत्रकारों को पीछे बैठाया गया था। पत्रकार वार्ता में मैं (डॉ. भानु प्रताप सिंह), श्री सुभाष राय, श्री रामकुमार शर्मा भी थे। प्रश्नोत्तर शुरू हुए। सभी पत्रकार अंग्रेजी भाषा में ही प्रश्न कर रहे थे और अंग्रेजी में ही उत्तर मिल रहे थे।
जब हिंदी में पाकिस्तानी पत्रकारों के खिलाफ पूछा सवाल
प्रश्न पूछने से पहले हाथ उठाना पड़ता था। प्रवक्ता जिसकी ओर इशारा करती थीं, वह प्रश्न पूछ सकता था। मैं भी बार-बार हाथ उठा रहा था। अंततः मेर नम्बर आ ही गया। मैंने अमर उजाला अखबार के रिपोर्टर के रूप में परिचय देते हुए हिंदी में सवाल किया- “परवेज मुशर्रफ जी को अजमेर जाने से रोका गया, इस पर पाकिस्तान के पत्रकारों ने हंगामा किया और विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता को घेरा है। आप क्या ऐसे पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे?” मेरा सवाल सुनकर कई पत्रकार हँसने लगे। श्री रामकुमार शर्मा ने ताली बजाकर मेरा उत्साहवर्धन किया।

जसवंत सिंह का उत्तर
जसवंत सिंह ने उत्तर दिया- “आप अमर उजाले से हैं। कोई अजमेर शरीफ जाना चाहता है तो उसे कौन रोक सकता है? हम पत्रकारों के खिलाफ क्या कार्रवाई कर सकते हैं?” इतनी बात तो मुझे याद आ रही है लेकिन आगे क्या कहा, कुछ याद नहीं आ रही है।
भैयू जी को फोन
यह प्रेसवार्ता लाइव हो रही थी। जो पत्रकार मौके पर नहीं थे, वे टीवी पर लाइव देख रहे थे। मैंने उत्साह में आकर अमर उजाला के संपादक श्री अजय अग्रवाल जी (भैयू जी) को फोन किया। उन्होंने निरुत्साहित होकर पूछा- तुमने सवाल क्या पूछा था, कुछ समझ नहीं आया। यह सुनकर मेरा उत्साह शीतल हो गया।
सबने सवाल को गलत बताया
शाम को जब कार्यालय पहुंचा तो भैयू जी ने फटकार लगाई। उनके पास अमर उजाला के अन्य संस्करणों से फोन आने लगे। सबने सवाल पूछने वाले पत्रकार (डॉ. भानु प्रताप सिंह) को फटकारा। श्री राजुल माहेश्वरी समेत कई संस्करण ने तो बाकायदा पत्र भी भेजा। इसके बाद भैयू जी ने स्पष्ट कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों में कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा।
हिंदी और देशभक्ति की भावना पर प्रहार लगा
मुझे लगा कि मेरे हिंदी प्रेम और देशभक्ति की भावना पर जमकर प्रहार किया गया है। यह सोचने के अलावा कर भी क्या सकता था। हमारे मित्र प्रशंसा कर रहे थे लेकिन अमर उजाला के मालिकों को सवाल पूछना पसंद नहीं आया।
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शशि शेखर जी के आलेख ने उत्साह बढ़ाया
इसके बाद दो बातें हुई, जिसने मेरा उत्साह बढ़ा दिया। उस समय जाने-माने पत्रकार श्री शशि शेखर जी इंडिया टुडे में थे। उन्होंने पाकिस्तानी पत्रकारों की हरकत पर एक पेज का आलेख लिखा। उन्होंने पाकिस्तानी पत्रकारों को ‘नाग’ की संज्ञा दी। इंडिया टुडे के इस आलेख के बार में मुझे वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सिराज कुरैशी ने जानकारी दी।
पाकिस्तान सरकार ने खेद प्रकट किया
फिर कुछ दिनों बाद एक खबर आई- पाकिस्तान सरकार ने पाकिस्तानी पत्रकारों की अभद्रता के लिए भारत सरकार से खेद व्यक्त किया है। यह समाचार भी अमर उजाला में प्रकाशित हुआ। मेरे लिए यह उत्साह की बात थी। जसवंत सिंह की लाइव प्रेसवार्ता में पाकिस्तानी पत्रकारों की गलत हरकत के बारे में प्रश्न पूछने का ही यह परिणाम था।
मेरे जीवन की उपलब्धि
इस घटना के बाद मेरे जीवन चरित्र में एक उपलब्धि और जुड़ गई है- भारत-पाक शिखर वार्ता में 400 पत्रकारों के बीच लाइव प्रेसवार्ता में हिंदी में प्रश्न पूछने वाला एकमात्र पत्रकार।
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