ISRO के सहयोग से IISc ने खोजा अंतरिक्ष ईंट बनाने का तरीका

ISRO के सहयोग से IISc ने खोजा अंतरिक्ष ईंट बनाने का तरीका

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मंगल ग्रह हमेशा से इंसानों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। मंगल पर इंसानों को भेजने के लिए दुनिया भर की स्पेस एजेंसियां लगी हुई है। टेस्ला के CEO एलन मस्क भी इस दौड़ में हैं लेकिन इंसान वहां कैसे रहेंगे इसके अलग-अलग तरीखे वैज्ञानिक खोज रहे हैं। इस खोज में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने स्पेस ब्रिक यानी अंतरिक्ष ईंट बनाने का तरीका खोजा है। स्पेस ब्रिक बनाने के लिए मंगल ग्रह की मिट्टी और अंतरिक्ष यात्रियों की यूरिन यानी मूत्र का इस्तेमाल किया जाएगा। ये तरीका बेहद सस्ता और मजबूत है।
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सहयोग से इन ईंटों को बनाया है। यूरिन का मुख्य यौगिक यूरिया, बैक्टीरिया, ग्वार गम और निकल क्लोराइड को मिलाया गया। इसके जरिए एक घोल बना, जिसे सांचों में डाला गया। कुछ दिनों में बैक्टीरिया ने यूरिया को कैल्शियम कार्बोनेट के क्रिस्टल में बदल दिया।
सीमेंट की तरह काम करेगा क्रिस्टल
बैक्टीरिया द्वारा स्रावित होने वाले बायोपॉलिमर और ये क्रिस्टल सीमेंट की तरह काम करते हैं, जो मिट्टी के कणों को एक साथ रखते हैं। भारतीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता अब ये जांच करने की योजना बना रहे हैं कि मंगल ग्रह के कम गुरुत्वाकर्षण और वातावरण इन ईंटों को कैसे प्रभावित करेगा। इससे पहले ग्रुप ने चांद की मिट्टी से ईंटें बनाने पर काम किया था, लेकिन उसके साथ दिक्कत ये थी कि उससे सिर्फ बेलनाकार ईंटे बन सकती थीं। जबकि मंगल की मिट्टी से किसी भी आकार के ईंट बनाए जा सकते हैं।
मंगल पर ईंटों के टिकने पर होगी रिसर्च
IISc ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि अंतरिक्ष ईंटों का इस्तेमाल मंगल पर मानव बस्तियों को बसाने में किया जा सकता है। हालांकि अभी ये देखना बाकी है कि ये ईंटें मंगल पर टिकेंगी या नहीं, क्योंकि लाल ग्रह की मिट्टी में लोहा है जो जीवों के लिए जहरीली है, इसी कारण शुरुआत में इसमें बैक्टीरिया नहीं टिक पा रहे थे। लेकिन निकल क्लोराइड मिला कर इसे बना लिया गया।
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh