radha krishna dixit soron

महान ज्योतिषविद थे रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास, उन्हें सूकर क्षेत्र में अपने गुरु पं. नरसिंह चौधरी से मिला ज्ञान

Horoscope

डॉ. भानु प्रताप सिंह

Agra, Uttar Pradesh, India. केए (पीजी) कॉलेज कासगंज में हिंदी विभाग के आचार्य, ज्योतिषवेत्ता, कवि, लेखक, साहित्यकार, महान वक्ता, कई पुस्तकों के रचयिता और तुलसी जन्मस्थान के शोधकर्ता डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित को अगर आप नहीं जानते हैं तो यह आपकी कमी है। डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले की तहसील सोरों में रहते हैं। कहने को तो यह छोटा स्थान है लेकिन है पौराणिक। सोरों सूकर क्षेत्र है। यहां भगवान विष्णु ने सूकर अवतार लिया। सोरों के पास ही तुलसी दास ज्योतिषज्ञ तुलसीदास जी की जन्मस्थली है। डॉ. दीक्षित ने एक शोध में कहा है कि तुलसीदास जी महान ज्तोतिषविद भी थे। इसका परिचय उनकी कविताओं में मिलता है।

क्या है ज्योतिष

पहले जानते हैं कि ज्योतिष है क्या?  डा. राधाकृष्ण दीक्षित बताते हैं- ज्योतिष अखिल विश्व का मानव उपयोगी विज्ञान है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की संरचना का ज्ञान, खगोल की स्थिति, ग्रह, नक्षत्रादि की गणना और जगत पर उसका प्रभाव आदि भारत के विभिन्न गणितज्ञों, खगोल स्त्रियों और वैज्ञानिक संतों महन्तों, ऋषियों आदि ने अपने शोधों द्वारा स्थापित कर संसार को दिया है। काल गणना से लेकर सम्पूर्ण चराचर पर ग्रहों का प्रभाव, यहाँ तक कि मौसम, वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी आदि तक के के सम्बन्ध में जानकारियाँ ज्योतिष विज्ञान द्वारा ही संभव हो सकी है। वेधशालाओं की स्थापना हो या गणित की विभिन्न विधाएँ अथवा मानव जीवन का ब्राह्य और अर्न्तगत पक्ष सभी के सम्बन्ध में ज्योतिष ने अपनी अनिवार्यता सिद्ध की है।

ग्रहाधीनं जगत सर्वं ग्रहाधीनं तराऽवराः ।

काल ज्ञानं ग्रहाधीनं ग्रहा फल प्रदाः ।

सृष्टि-रक्षण-संहाराः सर्वेचापि ग्रहानुगाः ।

पूर्वकर्म फलानां च सूचकाः खेचरा मताः ।।

 

सूकर क्षेत्र सोरों की महत्ता

सोरों सूकरक्षेत्र चूकि आदितीर्थ है, इस कारण यह स्थान विद्वान सन्तों, कर्मकाण्डी ब्राह्मणों, यशस्वी ज्योतिषियों, निपुण संगीतज्ञों, गायकों, लोक कलाकारों आदि विद्याधनियों से फलीभूत रहा है। आदिकाल से चली आ रही यह परम्परा आज भी इसी रूप में विद्यमान है। मानसकार गोस्वामी तुलसीदास का ज्योतिष ज्ञान भी सूकरक्षेत्र की इसी परम्परा की देन था।

 

तुलसीदास को किसने बनाया ज्ञानवान

डॉ. दीक्षित ने बताया कि तुलसीदास के गुरु पं. नरसिंह चौधरी धर्म-दर्शन-ज्योतिष आदि के ‘उच्चकोटिय’ विद्वान थे। उन्होंने तुलसीदास को ज्योतिष की भी शिक्षा दी। तुलसीदास सोरों नगर की सांस्कृतिक परम्पराओं से कैसे अछूते रह जाते, उन्होंने गणित, दर्शन, ज्योतिष, संगीत सभी का ज्ञान प्राप्त किया। संगीत उन्होंने सीताराम मंदिर में रहकर हरिहर नामक संगीताचार्य से सीखा। तुलसीदास का ज्योतिष ज्ञान अद्भुत था। उन्होंने अपने काव्य में स्थान-स्थान पर इसका प्रशंसनीय प्रयोग किया है।

तुलसीदास थे गणित शास्त्र में प्रवीण

‘दोहावली’ में गणित शास्त्र का प्रयोग कर एक स्थान पर उन्होंने लिखा-

 

नाम चतुर्गुन पंचयुत दूने हर वसु शेष ।

तुलसी सकल चराचर, रामनाम मय देख।।

तुलसीदास जी कहते हैं कि किसी के नाम के अक्षर गिनकर उसके चार गुना करो, चार गुने अंक में पाँच जोड़ो,पाँच जोड़कर जो योग प्राप्त हुआ है, उसे दोगुना करो, फिर उसे आठ से भाग दो, तो शेष केवल दो बचेगा, वह राम (दो) होगा, अर्थात् राम नाम मय होगा।” तुलसीदास का गणित स्वरूप में यह उदाहरण कितना अद्भुत है।

 

दोहावली में ज्योतिष ज्ञान का प्रकटीकरण

डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित ने बताया कि तुलसीदास दोहावली में ही एक स्थान पर अपने ज्योतिष ज्ञान को प्रकट करते हुए कहते है –

ऊगन पूगन वि अज कृ म, आ भ अ मू गन साथ।

हरो बरो गाड़ो दियो, धन फिर चढ़े न हाय ।।

तुलसीदास का अभिमत है कि ऊगन (अर्थात् उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ और उत्तर भाद्रपद, पुरान अर्थात् पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाषाढ़ और पूर्वा भाद्रपद, वि अर्थात् विशाखा अज अर्थात् रोहिणी, कृ अर्थात् कृतिका, म अर्थात् मघा, आ अर्थात् आदा, भ अर्थात् भरणी, अ अर्थात् अश्लेषा, मू अर्थात् मूल इन नक्षत्रों में गया हुआ, खोया हुआ और गाड़ा हुआ धन पुनः वापस हाथ नहीं आता।

ग्रहों की वक्र गति का परिणाम

तुलसीदास ने ‘राम शलाका’ और ‘रामज्ञा-प्रश्न’ में अपने गणित और ज्योतिष ज्ञान का प्रदर्शन किया है। तुलसीदास ने रामाज्ञा- प्रश्न में ग्रहों की वक्र गति के फल का परिणाम बताते हुए कहा है कि-

सात पाँच ग्रह एक थल चलहिं वाम गति धाम ।

राजविराजिये सभउ गत सुभहित सुमरहु राम ।।

किस दिन कौन से काम शुभ

रामाज्ञा- प्रश्न में ही तुलसी ने यह बताया है कि किस दिन (वार) को कौन-कौन से काम शुभ होते हैं। सोमवार के लिए कौन-कौन से कार्य शुभ होते हैं-

रस गोरस खेती सकल विप्र काज शुभ आज ।

रामअनुग्रह सोम दिन प्रभुदित प्रजा सुराज ।।

इसी तरह तुलसीदास मंगलवार के सम्बंध में बताते है कि मंगल से भूमि राजा के हित संग्राम में विजय, आदि मिलते हैं।

मंगल- मंगल भूमि हित नृप हित जय संग्राम ।

सगुन विचारन समय सुभ करि गुरुचरन प्रनाम ।।

इसी प्रकार बुधवार के लिए क्या-क्या शुभ है, तुलसीदास कहते हैं कि बुध व्यापार, विद्या, वस्त्र विशिष्ट ग्रह कार्यों के लिए शुभ है।

विपुल वनिज विद्या वसन बुध विशेष गृह काजु ।

सुगुन सुमंगल कहव सुभ सुमिरि सीय रघुराज ।।

गुरुवार को सकल मंगल कार्य होते हैं। जिनमें यज्ञ, विवाह, व्रत आदि हैं-

गुरु प्रसाद मंगल सकल राम राज सब काज ।

जन विवाह उछाह व्रत शुभ तुलसी सब साज।।

शुक्रवार को भी सगुन देखकर सभी शुभ कार्य करने चाहिये यन्त्र, मंत्र, मणि औषधि आदि का विचार शुक्रवार को करना चाहिए।

शुक्र सुमंगल काज सब कहव सगुन सुभ देखि ।

जन्म मंत्र मनि औषधि सहसा सिद्धि विशेखि ||

तुलसीदास कहते हैं कि लोहा, गज का व्यापार आदि शनिवार को करें। शनिवार को स्थिर कार्य शुभ होते हैं। शनिवार का विवेचन देखें-

राम कृपा थिर काज शुभ सनि वासर विश्राम।

लौह महिश गज वनिज मल, सुख सुपासु ग्रह ग्राम।।

राहु-केतु के संबंध में तुलसीदास का विचार

तुलसीदास ने ग्रहों के कार्य और विभावों का उपर्युक्तानुसार वर्णन किया है, इसी तरह वे राहु और केतु के सम्बन्ध में बताते हैं कि राहु और केतु उल्टे चलते हैं तथा अशुभता और अमंगल के सूचक है-

राहु केतु उलटे चलहिं असुभ अमंगल मूल ।

सन्ड मुन्ड पाखण्ड प्रिय असुर अमर प्रतिकूल ।।

कार्य कब निष्फल होता है

दोहावली में तुलसीदास ने एक दोहे में तिथियों और दिनों के कुयोग और सुयोग के सम्बन्ध में बताया है। वे कहते हैं कि रवि-द्वादसी, हर-एकादशी, दिसि-दसमी, गुन-तृतीया, रस-षष्ठी, नयन – द्वितीया, मुनि – सप्तमी इन तिथियों में रविवार से लेकर सोम, मंगल, बुध, बृहरति शुक्र और शनिश्चर पड़ें तो कुयोग होता है- अर्थात कार्य-सिद्ध निष्फल होती है ।

ज्योतिष पर अटूट विश्वास

डॉ. राधाकष्ण दीक्षित ने बताया कि तुलसीदास ने रामचरित मानस में स्थान-स्थान पर योग-कुयोग, सगुन- अपसगुन आदि की चर्चा की है तथा कुयोग या अपसगुन को कार्य में बाधा तथा सुयोग या सगुन को कार्य सिद्धि का कारक माना है । तुलसीदास का ज्योतिष ज्ञान विषद है। वे गणित, फलित दोनों के ही निपुण विद्वान हैं। इससे उनकी ज्योतिष ज्ञान की ही जानकारी नहीं होती बल्कि ज्योतिष पर उनका अटूट विश्वास भी व्यक्त होता है ।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh