pramod gautam

22 जनवरी 2024 को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर सवाल उठाने वाले चारों शंकराचार्यों को शास्त्र सम्मत जवाब एस्ट्रोलॉजर पं प्रमोद गौतम ने दिया

Horoscope REGIONAL लेख

भानु प्रताप सिंह

Live Story Time 

आगरा में वैदिक सूत्रम चेयरमैन भारत के नास्त्रेदमस के नाम से सम्पूर्ण विश्व में विख्यात एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को नवनिर्मित श्री राम लला की प्रतिमा के प्राण प्रतिष्ठा के महूर्त और अर्ध्यनिर्मित मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर चारों शंकराचार्यों ने जो सवालिया निशान लगाए हैं उनका समुचित शास्त्र सम्मत जवाब देते हुए कहा कि अयोध्या में प्रभु रामलला की जन्मभूमि पर 22 दिसंबर 1949 को जो कुछ हुआ, उसने एक ही रात में राम मंदिर आंदोलन की सूरत बदल कर रख दी थी।

अयोध्या में 1949 से 15 साल पहले 1934 में अयोध्या में जुटे राम भक्तों ने दूसरी बार बाबरी मस्जिद तक पहुंचाने का साहस दिखाया था। पहली बार 1853 में बाबरी मस्जिद तक राम भक्त पहुंचे थे। पहली बार आंशिक नुकसान पहुंचाया गया था। इसके बाद अगले 2 साल तक दंगे भड़कते रहे। अवध के शासक नवाब वाजिद अली शाह की रिपोर्ट कहती है कि 1855 के दंगों में 70 मुसलमानों की मौत हुई थी। 1934 में मस्जिद के तीनों गुंबदों को हिंदुओं ने ढहा दिया। तनाव भड़का। बाद में फैजाबाद डीएम ने इसका पुनर्निर्माण कराया।

आजाद देश में पहली बार पौराणिक काल की धरोहर अयोध्या की धरती पर वह हुआ, जिसका अंदेशा किसी को नहीं था। हिंदू पक्ष जिस विवादित बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद को प्रभु रामलला का जन्म स्थान बताता रहा था, वहां पर भगवान राम के बाल स्वरूप का 22 दिसम्बर 1949 की आधी रात को दिव्य प्रकाश के रूप में स्वयंभू प्रतिमा का प्रगटीकरण हो गया था। 22 दिसंबर की ठंडी में आधी रात की इस घटना ने सुबह तक तूल पकड़ लिया था। 23 दिसम्बर 1949 की सुबह अयोध्या की गलियों में जुटे लोग ‘भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी’ भजन गाने लगे थे। 23 दिसम्बर 1949 की सुबह देखते ही देखते राम जन्मभूमि परिसर हिंदुओं से पट गया। इसके बाद 15 अगस्त 1947 को पुष्य नक्षत्र में आजाद देश की पहली सत्ता उस वाकये से निपट पाने में सक्षम नहीं हो पाई।

वर्ष 1949 से 15 साल पहले 1934 में जिस मस्जिद के गुंबद को तोड़ा गया था, वहां उस समय के फैजाबाद डीएम ने पुनर्निर्माण कराया। उसी मस्जिद में प्रगट हुए प्रभु रामलला को बाहर निकालने की हिम्मत फैजाबाद के तत्कालीन डीएम ने नहीं दिखाई। केंद्र की जवाहरलाल नेहरू सरकार से लेकर यूपी की गोविंद बल्लभ पंत सरकार तक फैजाबाद डीएम से कार्रवाई की बात करती रही, लेकिन उन्होंने आदेश मानने से साफ इनकार कर दिया। डीएम की ओर से कहा गया कि इस समय कोई भी एक्शन अयोध्या, उत्तरप्रदेश और देश के सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंक सकता है।

इसके बाद शुरू हुआ विवाद का एक लंबा दौर, जो अगले करीब 70 सालों तक आजाद देश की दशा और दिशा तय करता रहा। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद से धार्मिक तौर पर लोगों में जागरूकता बढ़ने लगी थी। सोमनाथ का मामला गरमाया हुआ था। लौह पुरुष सरदार पटेल ने इसके पुनर्निर्माण की योजना को हरी झंडी दे दी।

इसके बाद हिंदूओं ने अयोध्या में प्रभु रामलला के धाम को मुक्त कराने की मांग शुरू कर दी। देश में संविधान की रचना चल रही थी। पाकिस्तान ने खुद को मुस्लिम देश के रूप में स्थापित कर लिया था। वहीं, भारत को धर्म निरपेक्ष देश के रूप में विकसित किए जाने की बात संविधान में रखे जाने पर चर्चा चल रही थी। इसी दौरान हिंदुओं की महत्वाकांक्षा ने हिलोर मारना शुरू कर दिया। प्रभु रामलला को उनके धाम में स्थापित करने की चर्चा शुरू हो गई।

पंडित गौतम ने बताया कि 1859 में अंग्रेजी सरकार के बंटवारे के तहत प्रभु रामलला को बाबरी मस्जिद के बाहर बनाए गए चबूतरे पर स्थापित किया था। अयोध्या में प्रभु की वहीं पूजा हो रही थी। वहीं, बाबरी मस्जिद मुसलमानों को दी गई थी। देश को धर्म के आधार पर आजादी मिली तो हिंदू पक्ष ने प्रभु रामलला के जन्मस्थान पर दावा शुरू कर दिया। हालांकि, आजाद भारत की सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। फिर, ऐसा कुछ हुआ, जिसने देश में हलचल पैदा कर दी।

1949 में अयोध्या में रामलला स्वयंभू हो गए थे प्रग

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा महूर्त पर चारों शंकराचार्यों के द्वारा जो विरोध किया जा रहा है उसका शास्त्र सम्मत जवाब देते हुए कहा कि जिस प्रकार भारत में शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंग स्वयंभू प्रकट हुए थे, और स्वयंभू प्रकट हुए ज्योतिर्लिंग या प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा के महूर्त की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि भारत देश के चारों पीठों के शंकराचार्यों के द्वारा अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के महूर्त पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा किया जा रहा है इसलिए उन्होंने बताया कि अयोध्या में 22-23 दिसंबर 1949 की रात्रि को श्री रामलला की प्रतिमा स्वयंभू प्रकट हुई थी, और 23 दिसंबर 1949 की सुबह अयोध्या में खबर फैली कि बाबरी मस्जिद के गर्भगृह में रामलला स्वयंभू प्रगट हो गए हैं। देखते ही देखते यह खबर आग की तरह अयोध्या में फैल गई थी। चारों तरफ से ‘भये प्रगट कृपाला दीन-दयाला कौशल्या हितकारी, हर्षित महतारी मुनि मनहारी अद्भुत रूप विचारी’ का पाठ करते लोग राम जन्मभूमि की तरफ बढ़ने लगे। ऐसा नहीं था कि अयोध्या में पहली बार भय प्रगट कृपाला का पाठ हो रहा था। अयोध्या में तो 500 सालों से यह भजन पढ़ा जाता रहा है। 23 दिसबर 1949 को इस भजन के मायने ही बदल गए थे। भोर होते-होते ही जंगल में आग की तरह भगवान राम के प्रगट होने की बात फैल गई थी। बस अयोध्या में यही चर्चा हो रही थी कि रघुकुल कुलभूषण भगवान श्रीराम बाल रूप में जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू पधार चुके थे। बाबरी मस्जिद का प्रांगण हिंदू श्रद्धालुओं की भारी भीड़ से पट चुका था। प्रभु श्रीराम के बालरूप के दर्शन के लिए वहां पर भारी भीड़ जमा थी। भगवान का दर्शन कर हर कोई विभोर हो रहा था।

कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि भगवान श्री राम लला की प्रतिमा 1949 में स्वयंभू प्रकट प्रतिमा है उसे सिर्फ इतने लंबे अरसे के बाद नव निर्मित मंदिर के गर्भ गृह स्थल में विधि विधान से सूर्य के उत्तरायण के सिद्ध काल में 22 जनवरी 2024 को अमृत सिद्धि योग में अभिजीत महूर्त में स्थापित किया जा रहा है, वैसे भी स्वयंभू प्रतिमा को स्थापित करने के लिए शास्त्र सम्मत महूर्त की भी आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि राम लला की वो स्वयंभू प्रकट हुई प्रतिमा है।

पंडित गौतम ने बताया कि कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि अयोध्या में वर्ष 1934 की घटना के बाद से राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद परिसर का रोज निरीक्षण होने लगा था। रूटीन जांच के लिए अयोध्या थाने के एसएचओ यहां रोज आते थे। 23 दिसंबर 1949 की सुबह 7 बजे तत्कालीन एसएचओ रामदेव दुबे जब रूटीन चेकिंग के लिए पहुंचे तो वहां की स्थिति देखकर दंग रह गए थे। करीब 500 लोग बाबरी परिसर में जमा थे। उन्होंने तत्काल मामले की सूचना सीनियर अधिकारियों को दी। सीनियर अधिकारी स्थिति को समझ पाते, तब तक दोपहर हो चुकी थी। बाबरी परिसर करीब 5000 लोगों से पट चुका था। अयोध्या के आसपास के गांवों से भी लोग दौड़ते-भागते राम जन्मभूमि मंदिर पहुंच रहे थे। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी इस भीड़ को देखकर दंग थी। कहीं प्रभु रामलला किसी आम मंदिर में तो प्रगट हुए नहीं थे।लेकिन रामलला अयोध्या में बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे वे प्रगट हुए थे। बाबरी को लेकर लोगों में धारणा थी कि राम मंदिर को तोड़कर इसे बनाया गया था। रख-रखाव के अभाव में बाबरी जर्जर हो रही थी। शुक्रवार को जुमे की नमाज के लिए खुलती थी। बाकी दिनों में तो एक-दो लोग ही इधर आते थे।

अयोध्या में राम चबूतरा पर विराजमान थे रामलला
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि बाबरी मस्जिद के बाहरी हिस्से में 21 फीट लंबा और 17 फीट चौड़ा का एक चबूतरा बनाया गया था। इसे राम चबूतरा के नाम से जाना जाता था। इस राम चबूतरे पर भगवान राम के बालरूप की एक मूर्ति विराजमान थी। इनके दर्शन के लिए उस समय उतने ही लोग जुटते थे, जितने अयोध्या के किसी अन्य मंदिर, मठ या आश्रम में जुटते थे। रामलला के प्रगट होने की सूचना ने स्थिति ही बदल दी थी। 23 दिसंबर 1949 की सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्ति प्रगट हुई थी, जो कई दशकों या सदियों से राम चबूतरे पर विराजमान थी। उनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था। राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़ा के नियंत्रण में थी। इसी अखाड़े के साधु-संन्यासी वहां पर पूजा-पाठ और अन्य विधान किया करते थे।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने उपरोक्त तथ्यों के आधार पर बताते हुए कहा कि कुल मिलाकर हम यह समझ सकते हैं कि 27 नक्षत्रों के सम्राट ब्रह्मांड के न्यायधीश शनि के दिव्य पुष्य नक्षत्र में स्वतंत्र भारत का निर्माण विधि के विधान के द्वारा पूर्व निर्धारित था क्योंकि पुष्य नक्षत्र में ही स्वतंत्र भारत में कलियुग में श्री हरि विष्णु ने अपने आखिरी कल्कि अवतार में बैकुंठ लोक से पृथ्वी लोक पर अदृश्य रूप में मनुष्य रूप में एक ब्राह्मण परिवार में पूर्ण कुम्भ वाले वर्ष 1974 में 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने का निर्णय पहले से ही निर्धारित कर लिया था।

पौराणिक ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि श्री हरि विष्णु का पृथ्वी लोक पर कलियुग में आखिरी अवतार पुष्य नक्षत्र में ही होगा यही कारण है कि भारत को स्वतंत्रता 15 अगस्त 1947 को पुष्य नक्षत्र में प्राप्त हुई। और 22 दिसंबर 1949 की आधी रात को अयोध्या में श्री राम लला की प्रतिमा ने स्वयंभू प्रकट होकर इसका अदृश्य रूप में संकेत भी दे दिया था। और अपने पौराणिक काल के दूत वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी को 17 सितंबर 1950 को पूर्ण कुंभ पर्व वाले वर्ष में पृथ्वी लोक पर एक दूत के रूप में भेजा, जिससे उपयुक्त समयावधि आने पर राम मंदिर का मामला पूर्ण रूप से सुलझ कर वहाँ पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हो सके यही कारण है कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में श्री राम की बाल प्रतिमा की गर्भ गृह में प्रधानमंत्री मोदीजी ही प्राण प्रतिष्ठा के धार्मिक कार्यक्रम के मुख्य यजमान हैं, और मनुष्य रूप में पृथ्वी लोक पर अवतरित हो चुके श्री हरि विष्णु अयोध्या में अपनी दिव्य अलौकिक शक्तियों के आधार पर अदृश्य रूप में विराजमान रहेंगे, यही वर्ष 2024 का वास्तविक रहस्यमयी तथ्य है जो मैनें मीडिया के माध्यम से विधि के विधान के अनुसार उपयुक्त समयावधि आने पर जग जाहिर कर दिया है।

Dr. Bhanu Pratap Singh