दुनिया में इंटरनेट और डिजिटल के साथ ऑटोमोबाइल ने मानव जिंदगी में ऐसी गति प्रदान की है। इसके साथ ही मानव दिन प्रतिदिन अपनी जीवन शैली के साथ उद्योग धंधे को भी एक विकास की राह पर ले गया है |आज अगर हम कल्पना करें तो लगता है डिजिटल और ऑटोमोबाइल के बिना हमारी जिंदगी अधूरी है| इस अधूरी जिंदगी में ऑटोमोबाइल ही एक ऐसा क्षेत्र है जिसने 146 साल पहले दुनिया को रफ्तार की राह पर ना केवल ले गया बल्कि विकास के आसमानी क्षेत्र खोल दिए।
सर कार्ल बेंज (( 25 नवम्बर 1844 – 4 अप्रैल 1929) द्वारा 1885 में 1 सिलेंडर की 2 सीटर गैस से चलने वाली फ़ोर स्ट्रोक कार मैं होरिजेंटल इंजन जो पीछे लगाया गया था उस कार का जन्मप्रमाण पत्र 29 जनवरी 1886 में अपने नाम का पेटेंट पत्र संख्या 37435 से पूरे विश्व में एक खून का संचार हो गया था। कार्ल बेंज के समानांतर में, गॉटलीब डेमलर पहली चार पहिया मोटर कार विकसित कर रहा था। इस प्रकार एक दूसरे से स्वतंत्र रूप में काम करते हुए आज गॉटलीब डेमलर एजी ने सभी वर्तमान यात्री कारों, वाणिज्यिक वाहनों और बसों की नींव रखी थी। ।2 सीटर वाहन की प्रमुख विशेषताएं जो 1885 में पूरी हुई थी, कॉम्पैक्ट हाईस्पीड सिंगल सिलेंडर फोर स्ट्रोक इंजन थे जो ट्यूबलर स्टील फ्रेम, डिफरेंशियल और 3 वायर स्पोक पहियों पर लगाई गई थी। इंजन आउटपुट 0.75 hp (0.55 kW) था। विवरण में डेमलर एजी के संस्थापक पिता और कार्ल बेंज के समांतर पहली चार पहिया मोटर कार को ना केवल विकसित किया बल्कि एक दूसरे से स्वतंत्र रूप में काम करते हुए अनेक नये वाहन बनाये। यह भी कहा जाता है कार्ल बेंज की पत्नी वर्था के कारण आधुनिक कारों का जन्म हुआ| वर्था का मानना था अगर कोई महिला कुछ शहरों में अकेले यात्रा करती हैं तो लोग उस पर भरोसा करेंगे और उसे एक स्वचालित वाहन खरीदेंगे|
हम सभी जानते हैं उस समय में दुनिया भर में केवल घोड़े से खींची जाने वाली गाड़ियां या बैलगाड़ी यही देखी जा सकती थी इसलिए यहां स्वचालित शब्द महत्वपूर्ण था| कार्ल बेंज ने स्वचालित वाहन बहुत ही आरामदायक बनाते हुए एक सीट एक लकड़ी का फ्रेम एक लकड़ी का पहिया घोड़े की स्थान पर 2 हॉर्स पावर का इंजन था जिससे जोर चीखते हुए शोर और धुआँ उगलता था । 29 जनवरी 1886 ऑटोमोबाइल जगत के लिए ऐसा स्वर्ण दिन बना जिसने आज विश्व में अनगिनत विकास के नए आयाम, रोजगार और जीवन को गति प्रदान की| यह रफ्तार की दुनिया ने विश्व में होने वाली बेरोजगारी की समस्या को काफी हद तक अपने आगोश में समा गया है| सबसे बड़ी बातें इसमें टेक्निकल से लेकर बिना पढ़े लिखे नवयुवक और युवतियों की ज़रूरत होती है| जिन्हें पढ़ना ना आता हो और टेक्निकल ज्ञान हो तो वह भी अपनी शारीरिक परिश्रम से देश के और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में अपना विकास का योगदान देते हैं|
आज कोरोना महामारी के समय ऐसा लग रहा था कि ऑटोमोबाइल की रफ्तार को ब्रेक लग जाएंगे परंतु करोना महामारी के बाद विश्व में केवल एक सोचने कि मुझे अपनी सुरक्षा के लिए अपनी स्वयं का वाहन पर यात्रा करनी है, ऑटोमोबाइल क्षेत्र को वह रफ्तार प्रदान की है। जिसे हम कल तक एक विलासिता की चीज मानते थे आज वह सब्जी में आलू की तरह उपभोक्ता की रोजमर्रा की आवश्यकता बन गया है|
राजीव गुप्ता जनस्नेही
लोक स्वर, आगरा
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