वाराणसी की गलियों में, जहाँ हर दीवार पर इतिहास की परछाई है और हर मोड़ पर कहानी सांस लेती है, वहाँ से निकलकर डॉ. नेहा राय एक नया भविष्य लिख रही हैं— AI और भावनाओं के संगम से।
डॉ. नेहा राय का हाल ही में रिलीज़ हुआ AI जनरेटेड भोजपुरी गाना लोगों के दिलों को छू रहा है। जहाँ भोजपुरी गानों को अक्सर एक ही सांचे में ढला माना जाता है, वहीं इस गीत ने अपने नएपन और भावुकता से सबका ध्यान खींचा है। यह गाना गाँव की ज़िंदगी को केवल दिखाता नहीं, उसे महसूस करवाता है।
यह गाना डॉ. राय की हिंदी एआई जनित फिक्शन सीरीज़ का हिस्सा है—जो भारत की पहली ऐसी सीरीज़ है। इस सीरीज़ के ज़रिए एक कोशिश हो रही है—हमें हमारे ‘आँगन’ की याद दिलाने की। वो आँगन जो सिर्फ़ मिट्टी का टुकड़ा नहीं था, बल्कि एक ऐसा मंच था जहाँ परिवार बिना दीवारों के, बिना डर के, खुलकर संवाद करते थे। जहाँ रिश्ते साँस लेते थे, और बातें बहती थीं।
आँगन सिर्फ़ एक जगह नहीं था,” डॉ. राय कहती हैं, “वो एक एहसास था, जहाँ हर किसी की बात सुनी जाती थी, समझी जाती थी।” ये वही जगह थी जहाँ दादी-नानी अपनी कहानियाँ सुनाती थीं, परिवार एक साथ हँसते थे, अनुभव बाँटते थे। आँगन ही तो था जो कहानी सुनने की जगह भी था और सीखने की भी। आज जब हम मोबाइल पर जुड़े हैं लेकिन दिल से थोड़े दूर हो गए हैं।
इस सीरीज़ में वो पुराने आंगन की झलक मिलती है—जहाँ दादी की कहानियाँ, माँ की चुप्पियाँ और बच्चों की हँसी एक साथ गूंजती थीं। यह सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि एक हल्की सी दस्तक है जो याद दिलाती है कि जुड़ाव आज भी मुमकिन है—अगर हम सच में चाहें तो।
डॉ. नेहा राय अपने काम से भूत, वर्तमान और भविष्य के बीच एक पुल बना रही हैं। वो हमें दिखा रही हैं कि तकनीक से डरने की ज़रूरत नहीं है—अगर उसे सही भावना से जोड़ा जाए तो वो हमें फिर से इंसान बना सकती है।
चाहे वो ‘कहानियों का आँगन’ हो या उनका नया भोजपुरी गाना, एक बात तो तय है—डॉ. नेहा राय सिर्फ़ कहानियाँ नहीं कह रही हैं, वो हमें दोबारा महसूस करना सिखा रही हैं।
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