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डॉ. अजय कुमार शर्मा की प्रथम पुण्यतिथिः जिनका लहू और पसीना मिट्टी में गिर जाता है, वे मिट्टी में दब कर उग आते हैं

लेख

डॉ. भानु प्रताप सिंह

मैं उन सौभाग्यशाली पत्रकारों में शामिल हूँ जिस पर भाईसाहब (डॉ. अजय शर्मा जी) गर्व किया करते थे। मुझे यह भी गौरव है कि वे मुझे हमेशा ‘भानू भाई’ का संबोधन देते थे। मुझे इस बात का भी गौरव हासिल है कि भाईसाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में पत्रकारिता की कक्षा में मेरा उदाहरण दिया करते थे कि रिपोर्टर बनना है तो भानू भाई जैसा बनो। भाईसाहब ने मुझे धरातल से उठाकर अतल और वितल में बैठा रखा था। वह भी तब जबकि मैं उनके समक्ष तृण मात्र था। वे स्वराज्य टाइम्स के मालिक और मैं प्रशिक्षु रिपोर्टर। वे शहर की जानी-मानी हस्ती और मैं अबोध। वे मडियामैन और मैं अज्ञानी। वे निराभिमानी और मैं अभिमान में चूर। ऐसे भाईसाहब के बारे में स्मारिका में संपादकीय लिखना पड़े तो हाथों में कम्पन स्वाभाविक प्रक्रिया है। काश, उनके अभिनंदन ग्रंथ का संपादन कर पाता।

मलाल इस बात का है कि जब भाईसाहब को वैरी कोरोना ने अपनी चपेट में लिया तो कुछ कर न सका। उनके पुत्र इंजीनियर बृजेश शर्मा तड़प रहे थे। दवा के साथ अन्य उपाय भी कर रहे थे। मैं स्वयं कोरोना संक्रमित रहा और नेमिनाथ हॉस्पिटल में होम्योपैथी उपचार से नवजीवन मिला। बृजेश को मैंने वहां भेजा भी था। मैं चाहता था कि भाईसाहब को वहां भर्ती करा दिया जाए लेकिन मन में अज्ञात भय था कि कुछ अनहोनी हो गई तो मैं स्वयं को क्षमा नहीं कर पाऊँगा। जब भाईसाहब के स्वर्गवास का समाचार मिला तो पूरा परिवार शोकमग्न हो गया। वे मेरी पत्नी को ‘बहू रानी’ कहते थे। बृजेश के लिए हम सब पत्रकार चाचा (अंकल नहीं) हैं। इसलिए जब वह कुछ कहता है तो मना नहीं कर पाते हैं। खुशी इस बात की है कि बृजेश अपने पिता डॉ. अजय शर्मा की स्मृति को अक्षुण्ण रख रहा है।

मैं अमर उजाला और दैनिक जागरण में संपादक के नाम पत्र लिखता था। खूब छपते थे। लिखने की ललक ने जन्म ले लिया। पारिवारिक स्थितियां ऐसी बनीं कि नौकरी की तलाश करनी पड़ी। कांग्रेस नेता डॉ. सुभाष गुप्ता मुझे अपने स्कूटर पर दैनिक जागरण अखबार ले गए। वहां एक सज्जन से मिलवाया जिनके बाल बड़े थे और सिगरेट फूंक रहे थे। डॉ. गुप्ता जी ने मेरा परिचय कराते हुए नौकरी पर रखने का आग्रह किया। उन पत्रकार महोदय ने सिगरेट में सुट्टा लगाया और रुआबदार आवाज में हड़काने के अंदाज में पूछा-  कितने साल का अनुभव है? मैंने कहा- कोई अनुभव नहीं है भाईसाहब। सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाने के बाद वे बोले-  हम क्या यहां काम सिखाने के लिए बैठे हैं। मैंने कहा- भाईसाहब, काम नहीं देंगे तो अनुभव कहां से होगा? उन पत्रकार महोदय ने मुझे कार्यालय से भगा दिया। गुप्ता जी का चेहरा उतर गया क्योंकि उन्हें पत्रकार महोदय पर बड़ा विश्वास था। वे अमर उजाला छोड़कर दैनिक जागरण की सेवा में आए थे।

अंततः मैं स्वराज्य टाइम्स में पहुंचा। मुझे प्रशिक्षु बतौर रख लिया गया। इससे पहले स्वराज्य टाइम्स में श्री आदर्श नंदन गुप्त जी के माध्यम से पत्र, समस्यापरक समाचार, कविता, कहानी, कुंडलियां नियमित प्रकाशित होती रहती थीं। आदरणीय आनंद शर्मा जी, विजय शर्मा जी, अजय शर्मा जी और विनोद भारद्वाज जी के निर्देशन में मेरा प्रशिक्षण शुरू हो गया। समाचार का आमुख (इंट्रो), शीर्षक, उप-शीर्षक आदि के बारे में श्री आनंद शर्मा जी ने खूब ज्ञान दिया। विजय शर्मा जी जितने तेज-तर्रार, अजय शर्मा जी उनते ही शांत। विजय शर्मा जी सख्त मिजाज के थे और अजय शर्मा जी मृदुल। 1989-90 में समाचार हाथ से लिखे जाते थे। मैं जो समाचार लिखता, उसे कई बार लिखवाया जाता। बड़ा गुस्सा आता था लेकिन मुझे बाद में पता चला कि मेरी नींव मजबूत की जा रही थी।

अजय शर्मा जी मुझे अपनी मोटर साइकिल पर बैठाकर रिपोर्टिंग के लिए ले जाया करते थे। उन्होंने मुझे सिखाया कि कुछ नई बात ही समाचार होती है। मैंने तीन महीने प्रशिक्षण प्राप्त किया। मानदेय कुछ नहीं मिल रहा था। बाबूजी शहर से बाहर कार्यक्रम जाते तो मुझे अपनी कार में रिपोर्टिंग के लिए ले जाते थे। चौथे महीने से 400 रुपये मिलने शुरू हुए। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मैं रिपोर्टिंग के लिए जाने लगा इसलिए लोगों से परिचय भी होने लगा। मेरे अंदर आगे बढ़ने की ललक थी। दैनिक जागरण से भगाया जाना भूला नहीं था। इसलिए दैनिक जागरण में नौकरी का संकल्प ले रखा था। तब जागरण के संपादक श्री श्याम वेताल जी थे। मैं उनसे मिला तो उन्होंने प्रूफ रीडर के रूप में नौकरी देने की बात कही। मानदेय 600 रुपये। मैं तत्काल तैयार हो गया। मैंने दैनिक जागरण में प्रूफ रीडर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। कुछ परिचित समाचार दे जाते थे, उन्हें नए सिरे से लिखकर सिटी इंचार्ज को देता था। मेरी इसी ललक के चलते मुझे संपादकीय विभाग में ले लिया गया।

एक दिन मुझे श्याम वेताल जी ने बताया कि तुम्हारे चक्कर में विजय़ शर्मा और अजय शर्मा से झगड़ा हो गया। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने पूछा- ‘झगड़ा क्यों हुआ भाईसाहब।’ इस पर श्री वेताल ने कहा- ‘मुझ पर आरोप लगाया कि मैं उनके आदमी तोड़ रहा हूँ। मैं तो तुम्हारे पास गया नहीं था, तुम्हीं मेरे पास आए थे।’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि तुम उनके काम के थे, इसी कारण झगड़ने लगे। उस दिन मैं स्वयं पर गौरवान्वित हुआ। जब दैनिक जागरण में वादे के बाद भी स्थाईकरण नहीं हुआ तो मैं अमर उजाला पहुँच गया। आदरणीय अजय कुमार अग्रवाल (भैय्यू जी) ने अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद कराया, फोन पर समाचार नोट करके लिखवाया। परीक्षण में उत्तीर्ण होने पर मैं अमर उजाला में आ गया। फिर तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। तब वेतन और पद कम होने के बाद भी संतुष्टि का भाव था। ताज प्रेस क्लब के चुनाव में भी हाथ आजमाया और उपाध्यक्ष चुना गया। इसमें भी स्वराज्य टाइम्स के साथियों ने सहयोग किया। डॉ. अजय शर्मा जी ने तो खुला समर्थन दिया था।

मुझे जब त्रकारिता विषय पर बोलने का अवसर मिलता तो स्वराज्य टाइम्स का उल्लेख अवश्य करता। बाद में विजय़ शर्मा जी और डॉ. अजय कुमार शर्मा जी मेरी पीठ थपथपाते हुए कहते- ‘एक तुम्हीं हो अपनी शुरुआत नहीं भूले हो। हमने काम तो सैकड़ों लोगों को सिखाया है लेकिन जब वे बड़े बैनर में पहुंच जाते हैं तो हमारा उल्लेख नहीं करते।’ मैं कहता- ‘भाईसाहब, आपने ब्रेक दिया है, कैसे भूल सकता हूँ।’

33 वर्ष में पत्रकारिता बदल गई है। अब रिपोर्टर और संपादक बंधुआ जैसे हो गए हैं। बाबूराव विष्णु पराड़कर ने उचित ही कहा था- ‘एक समय ऐसा आएगा जब संपादकों को ऊंची तनख्वाहें मिलेंगी, किन्तु उनकी आत्मा मर जाएगी और मालिक का नौकर हो जाएगा।’ अब विज्ञापन विभाग वाले तय करने लगे हैं कि कौन सा समाचार छपेगा और कौन सा नहीं। यह भी कि कितना बड़ा छपेगा। मीडिया समन्वयक या मीडिया प्रभारी भी मनचाहा समाचार छपवा और रुकवा लेते हैं। अब असली समाचार वह है जिससे धनोपार्जन संभव है। नेतागण भी विज्ञापन के स्थान पर समाचार का भुगतान करने लगे हैं। अखबारों के लिए यह आत्महत्या का दौर है। अखबारों के आत्मतत्व समाप्त होता जा रहा है। प्रखर संपादक श्री शशि शेखर जी ने ताज प्रेस क्लब के कार्यक्रम में 15 बरस पहले कहा था कि भविष्य में अखबार सजीले हो जाएंगे लेकिन उनकी आत्मा मर जाएगी। यही हो रहा है। अखबारों के बारे में कहा जाता है कि उन्हें विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए लेकिन अब तो पक्ष लेने की प्रतियोगिता सी हो रही है।

गणेश शंकर विद्यार्थी ने कहा था- समाचार पत्र पैसे कमाने, झूठ को सच, सच को झूठ करने के काम में उतने ही लगे हुए हैं जितने कि संसार के बहुत से चरित्रशून्य व्यक्ति। अंत में कार्ल मार्क्स की बात- वह प्रेस जिसका व्यापार के लिए संचालन होता है, जिसका नैतिक पतन हो चुका है, क्या वह स्वतंत्रत है? इस प्रश्न का उत्तर हम सब जानते हैं।

यहां मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया की बात नहीं कर रहा हूँ। सिर्फ प्रिंट मीडिया की बात कर रहा हूँ क्योंकि हमारे डॉ. अजय कुमार शर्मा जी प्रिंट मीडिया की हस्ती थे। स्वराज्य टाइम्स की पौधशाला में उगे अनेक पत्रकार आज वटवृक्ष बन गए हैं। एक पौधा ही वृक्ष बनता है। इसलिए महत्ता पौधा रोपने वाले की है। इस मायने में स्वराज्य टाइम्स अनूठा, अद्भुत, अनुकरणीय है। काश अखबारों के सभी मालिक और संपादक डॉ. अजय कुमार शर्मा जैसे सहज और सरल हो जाएं। पंजाबी कवि पाश की इन पंक्तियों के साथ मैं भाईसाहब को उन सभी पत्रकारों की ओर से श्रद्धांजलि देता हूँ जिन्होंने स्वराज्य टाइम्स में प्रशिक्षण लिया है-

जिन्होंने उम्र भर तलवार का गीत गाया है
उनके शब्द लहू के होते हैं
लहू लोहे का होता है
जो मौत के किनारे जीते हैं
उनकी मौत से ज़िन्दगी का सफ़र शुरू होता है
जिनका लहू और पसीना मिट्टी में गिर जाता है
वे मिट्टी में दब कर उग आते हैं

संपादकः  डॉ. अजय कुमार शर्मा स्मृति स्मारिका 2022

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Dr. Bhanu Pratap Singh