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1 जनवरी, अंग्रेजी नववर्ष – भ्रमित करने वाली कालगणना, 14 दिन कर दिए गायब

INTERNATIONAL NATIONAL REGIONAL लेख

नए ईसाई वर्ष की शुरुआत होने वाली है, हम इसका स्वागत करने के लिए तैयार हुए हैं; लेकिन यह लेख सभी को यह बताने के लिए संकलित किया गया है कि इस नए वर्ष का इतिहास कितना भ्रमित करने वाला और तर्कहीन है। इस लेख में यह जानकारी मिलती है कि अंग्रेजी नव वर्ष कैसे प्रारम्भ हुआ तथा उसमे कैसे कैसे बदलाव किए गए। इस सन्दर्भ में आपको हास्यास्पद जानकारी पढ़ने को मिलेगी, आइए इस लेख के माध्यम से अब हम इसकी वास्तविकता को समझते हैं….

द्वादशमासै: संवत्सर : अर्थात एक वर्ष में बारह महीने होते हैं। इसका उद्गम स्रोत ऋग्वेद है। ऋग्वेद दुनिया का सबसे पुराना साहित्य है। इस के विषय में कोई दोमत नहीं है । यह सिद्धांत तब से प्रचलन में है, जब से ईसाई संस्कृति ने पृथ्वी पर जड़ें भी नहीं जमाई थी । रोमन सम्राट जूलियस सीजर को ईसा मसीह के जन्म से 45 वर्ष पूर्व यह बात ध्यान में आई और एक वर्ष के 12 महीने बनाए; परन्तु वह वर्ष के दिन की ठीक से गणना नहीं कर सका।

मूल रूप से समय की भी गणना करनी होती है, इसका ज्ञान रोम के राजा रोमुलस को 800 ईसा पूर्व में हुआ था। उन्होंने तुरंत मार्च से दिसंबर तक 304-दिवसीय वर्ष और 10 महीनों वाली कालगणना शुरू की । मार्च, मई, क्विंटिलिस (अब जुलाई) और अक्टूबर चार महीने 31 दिन के तथा अप्रैल, जून, सेक्टलिस (अब अगस्त), सितंबर, नवंबर और दिसंबर ये 6 महीने, 30 दिन के ऐसी काल गणना थी । ईसा मसीह के जन्म से 800 वर्ष पहले रोम में काल गणना अस्तित्व में लाई गई । रोमन ईसाई वर्ष को 10 महीने मानते थे। इन महीनों में से अधिकांश का नाम रोमन देवताओं के नाम पर रखा गया था। वर्ष की शुरुआत ’25 मार्च’ के रूप में निश्चित की गई थी। इसका कारण उस दिन युद्ध जीतना है, ऐसे कुछ लोग कहते हैं। जिसे हम मंगल ग्रह कहते हैं, उसे रोमन लोग मार्स कहते हैं। उसका अपभ्रंश ‘मार्च’ है। मार्स युद्ध के रोमन देवता है। उन्होंने इस युद्ध देवता की कृपा के लिए मार्च माह की शुरुआत की थी। इसका चंद्रमा या पृथ्वी इनके भ्रमण से कोई लेना-देना नहीं था।

रोमुलस के कालक्रम में प्रमुख त्रुटियां

यह ध्यान में आने पर कि रोमुलस के कालक्रम में बड़ी त्रुटियां हैं, रोमन सम्राट नुमा पोपिलियस ने 10 महीने के वर्ष में जनवरी और फरवरी को शामिल करके 355 दिनों वाले 12 महीने का वर्ष शुरू किया। ऐसा करते हुए, उसने 31-दिन का महीना नहीं बदला बल्कि 30 दिनों के छह महीनों में से प्रत्येक महीने में से एक दिन कम कर के जनवरी 29 दिन का और फरवरी को 28 दिन का कर दिया था। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। बस उसकी अपनी सहूलियत थी।


कालक्रम को जबरदस्ती ऋतुओं के साथ जोड़ने की प्रथा

भले ही नुमा पोपिलियस ने सुधार किए परन्तु काल गणना के गणित में तालमेल नहीं हुआ । क्योंकि यह ऋतुओं से मेल नहीं खाता था । हर वर्ष ऋतुएँ आगे चलती थीं। वर्ष,15 दिन पहले शुरू होता था इस कारण प्रत्येक 2 वर्ष में फरवरी महीने के बाद 13वां महीना जोड़कर जबरदस्ती ऋतुचक्र से कालगणना की मेल करने की प्रथा शुरू हुई। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि इस कालगणना में इ. स. पूर्व 46 तक 90 दिनों का अंतर था। इससे लगभग 750 वर्षों के काल गणना में भारी त्रुटियाँ रह गई । ऋतु चक्र तीन महीने आगे बढ़ने लगा । ऋतुएँ सूर्य के प्रभाव से होती हैं। अर्थात एक सौर वर्ष 365 दिन 6 घंटे 9 मिनट10 सेकेंड का होता है । अर्थात नए वर्ष की शुरुआत उसी समय होनी चाहिए; परंतु दिन के मध्य में 6 घंटे के बाद एक नई तारीख शुरू करना अव्यावहारिक होने से जूलियस कैलेंडर को हर वर्ष 365 दिन का बनाया गया ।

रोमन सम्राट ऑगस्टस ने अपना नाम अमर करने के लिए सेक्टलिस महिने का नाम अगस्त रखा।

4 वर्ष में प्रति वर्ष 6 घंटे के अनुसार कुल 24 घंटे अर्थात 1 पूरा दिन होने के कारण, प्रत्येक चार वर्ष में 1 दिन अधिक अर्थात 366 दिनों का लीप वर्ष गणना में लिया जाने लगा । जूलियस पहले रोमन सेना का सेनापति था। फिर उसने अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए वहां के गणतंत्र को नष्ट कर दिया तथा सत्ता अपने हाथ में ले ली । उसने कई देशों पर अनुचित युद्ध थोप दिया। इससे रोमन लोग उससे बहुत नाराज हुए। बाद में सत्ता के लिए उसके भतीजे ऑक्टेवियन ने उसकी क्रुरता से हत्या कर दी। इतना ही नहीं, ऑक्टेवियन ने जूलियस के सभी बच्चों को भी मार डाला। इससे रोमन चर्च सीनेट प्रसन्न हुए। सीनेट ने ऑक्टेवियन को “ऑगस्टस” के नाम से सम्बोधित किया । ‘ऑगस्टस’ का अर्थ है ‘महान’। ऑगस्टस सीजर बाद में रोमन सम्राट बना। ईसा पूर्व 8 में, ऑगस्टस ने अपने नाम को अमर करने के लिए ‘सेक्टलिस’ महीने का नाम बदलकर ‘अगस्त’ कर दिया। आगे अगस्टस के हठ के कारण फरवरी माह का एक दिन कम कर के अगस्त महीने में जोड़कर उसे 31 दिन का कर दिया गया। वर्तमान काल गणना पर्यावरण विरूद्ध होने के कारण कालबाह्य करना अपेक्षित है । वहां पर्यावरण के अनुकूल कालगणना को फिर से प्रारम्भ करने के लिए बड़े प्रमाण में जन जागरूकता अभियान करना, यह काल की आवश्यकता  है।

जूलियस सीजर के नाम से जुलाई महीने का नामकरण

कालगणना को ठीक करने के लिए, रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने खगोलशास्त्री सोसिजिनिस की सलाह पर मूल 355-दिवसीय चंद्र कालगणना को 365-दिवसीय सौर कालगणना में बदल दिया। उस समय 90 दिनों के अंतर को कम करने के लिए इ. स. पूर्व 46 यह एक वर्ष 455 दिन का करना पडा। इसका भी कोई खगोल शास्त्रीय आधार नहीं था। इसके अलावा मार्च, मई, क्विंटिलिस (जुलाई), सितंबर, नवंबर, जनवरी ये 31 दिनों के छह महीने तथा अप्रैल, जून, सेक्टिलिस (अगस्त), अक्टूबर, दिसंबर पांच महीने 30 दिन के और फरवरी 29 दिन का ऐसी रचना की गई ।

जूलियस सीजर एक महत्वकांक्षी और सत्तावादी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने रोमन लोगों की स्वतंत्रता छीन ली थी। यही कारण है कि अंततः रोम में उनकी हत्या कर दी गई। हालांकि, जूलियस के समर्थकों ने उसकी बहादुरी, उसके विरोधियों को सदैव स्मरण रहे, इसलिए इ.स.पूर्व 44 में, क्विंटिलस के महीने का नाम बदलकर जूलियस (जुलाई) कर दिया ।

पोप ग्रेगरी ने 1582 इस वर्ष से 1 जनवरी को नववर्षारंभ के रूप में घोषित किया ।

ऑगस्टस द्वारा इ.स.पूर्व 8 में किए गए परिवर्तन के कारण इस कालगणना  में 1582 तक 10 दिनों का अंतर आया । रोम के 13वें पोप ग्रेगरी के ध्यान में आया कि 22 जून, यह दक्षिणायन का दिन, 12 जून तक स्थानांतरित हो गया । महत्वपूर्ण रूप से, चर्च के समारोह जैसे यीशु मसीह का जन्म, क्रिसमस और नए साल की शुरुआत, गलत दिन पर मनाए जाने लगे। पोप ग्रेगरी इस बात को लेकर बहुत चिंतित हो गए कि इस बात का तालमेल कैसे मिटाया जाए । फिर उन्होंने गणितीय नियमों का जादू करके 11मार्च को बीता हुआ वसंत ऋतु का पहला दिन, 21 मार्च पर लाने के लिए वर्ष 1582 में कैलेंडर से 11 दिनों को हटा दिया । तदनुसार 4 अक्टूबर के बाद दूसरे दिन कैलेंडर में 15 अक्टूबर जोड़ा गया। यानी उस दिन 5 अक्टूबर को सोने वाला व्यक्ति14 अक्टूबर को उठा । उसी वर्ष 1 जनवरी को वर्षारंभ शुरू किया जाए, ऐसे घोषित किया गया ।

केवल रोमन सम्राट और रोमन चर्च द्वारा स्वयं के लिए की गई गणितीय सुविधा अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर

भले ही पोप ग्रेगरी ने इ. स. 1582 से ऋतुचक्रों को काल गणना से जोड़ लिया फिर भी, उन्हें पहले से ही पता था कि हर चौथे वर्ष को और हर 400 वर्षों में ऋतुओं के बीच अंतर होगा। इससे कैसे बचा जाए यह सोचकर उन्होंने एक नियम बनाया । इस नियम के कारण 400 वर्षों में, 3 दिन 2 घंटे 52 मिनट और 48 सेकंड इतने बड़े अंतर को मापना पड़ता । इसलिए, 3 दिनों को कम करने के लिए, यह निर्णय लिया गया की लीप वर्ष की गणना तभी की जाए जब शताब्दी वर्ष 400 से विभाज्य हो। अर्थात् 100, 200, 300 ये वर्ष 4 से विभाज्य हैं परन्तु 400 से विभाजीत नहीं होने के कारण ये लीप वर्ष नहीं हैं। इस तरह ग्रेगोरियन कैलेंडर अस्तित्व में आया।

रोमन चर्च द्वारा ग्रेगोरियन कैलेंडर लाने के उपरांत जहां जहां रोमन आक्रमण हुए उन देशों ने इसे स्वीकार कर लिया। धर्मगुरुओं द्वारा बताने के बाद, ईसाई संप्रदायों ने इसे स्वीकार कर लिया और प्रचार करना शुरू कर दिया। हालाँकि, प्रोटेस्टेंट कैथोलिकों ने इसे आसानी से स्वीकार नहीं किया। इसीलिए ब्रिटेन ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को स्वीकार नहीं किया। ब्रिटेन जूलियस कैलेंडर से बहुत प्रभावित था; लेकिन 1752 में, यह महसूस करने के बाद कि कालमापन में बड़ी गलतियाँ हो रही हैं, ब्रिटेन ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाने का फैसला किया। इस कैलेंडर के साथ कालक्रम को संरेखित करने के लिए, ब्रिटेन में उस वर्ष 2 सितंबर के बाद दूसरे दिन 14 सितंबर की तारीख निर्धारित की । तो यहाँ भी, ब्रिटेन में जो मनुष्य 2 सितंबर को सोए थे, वे सीधे 14 सितंबर को जागे । क्या यह चमत्कार नहीं है! बाद में यही काल गणना भारत में मैकाले द्वारा लागू किया गया। तब से, भारत में भी ग्रेगोरियन कैलेंडर लागू हुआ। बेशक, इस कैलेंडर का ब्रह्मांड के कालक्रम से कोई लेना-देना नहीं है। केवल रोमन सम्राट और रोमन चर्च द्वारा अपनी सुविधा के लिए की हुई गणितीय सुविधा है या ध्यान में आता है । तो विचार कीजिए कि हम भारतीय 31 और 1 जनवरी को नया वर्ष क्यों मनाते हैं?  यह लेख श्री. मोहन आपटे द्वारा लिखित मराठी भाषा का ग्रंथ “कालगणना” पर आधारित है। पाठकों की जानकारी के लिए एक लिंक भी दे रहे  है। लिंक: http://learnmarathiwithkaushik.com/courses/kalganana/

उपरोक्त लेख को पढ़ने से पता चलता है कि अंग्रेजों द्वारा बनाया गया कालक्रम कितना त्रुटिपूर्ण है। इसकी तुलना में हिन्दुओं का कालक्रम लाखों वर्ष पुराना है, जिसमें कोई त्रुटि नहीं है और यह कालक्रम पूर्ण है। हिन्दू कालक्रम का वैज्ञानिक आधार भी है। इसके बावजूद यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश अंग्रेजों द्वारा तैयार किए गए दोषपूर्ण कालक्रम का उपयोग कर रहा है और हिंदू कालक्रम जो परिपूर्ण है उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। इस पर विचार करने की आवश्यकता है।

 

संकलक – सौ. समृद्धी गरुड

 

Dr. Bhanu Pratap Singh