क्या मथुरा पुलिस ने मुठभेड़ की? या किसी के जीवन की कहानी का करा दुखद अंत ?

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यह सवाल सिर्फ़ एक परिवार का नहीं है, यह उस नागरिक का है जो इस देश में रहता है और मानता है कि कानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी जिस वर्दी पर है, वह उसकी रक्षा करेगी. लेकिन जब ख़बरें सामने आती हैं तो दिल और दिमाग दोनों ही अविश्वास से भर जाते हैं.

मथुरा में 75 किलो चांदी की लूट हुई थी. पुलिस ने बड़े ताम-झाम के साथ ऐलान किया कि हमने एक आरोपी को एनकाउंटर में मार गिराया है. नाम था नीरज बघेल. गांव धाना तेहरा का रहने वाला. पुलिस ने कहा कि वो लूट के मामले में शामिल था और मुठभेड़ में उसे गोली लगी और वो मारा गया. एक और साथी घायल हुआ. ख़बरों की दुनिया में ये एक आम सी हेडलाइन बन जाती, अगर नीरज के परिवार ने पुलिस की कहानी पर सवाल न उठाए होते.

क्या पुलिस की कहानी में कोई सच्चाई है?

नीरज के भाई मनोज, जो गुजरात से अपने गांव वापस आए हैं, उनकी बात को सुनिए. वो कहते हैं कि मेरा भाई, जो किसी मजिस्ट्रेट की गाड़ी चलाता था, उसे गुरुवार सुबह मथुरा पुलिस ने ग्वालियर रोड के बाद गांव से उठाया था. अगर यह सच है, तो पुलिस के पास उसे गिरफ़्तार करने के लिए पूरा दिन था. दोपहर में पुलिस टीम उसके घर पहुंची. और कमाल की बात ये है कि उनके पास नीरज के कमरे की चाबी थी. उन्होंने ताला खोला, अंदर गए और चांदी बरामद कर ली.

अब यहाँ से सवाल उठने शुरू होते हैं.

सवाल नंबर 1: जब पुलिस ने नीरज को सुबह 11 बजे हिरासत में ले लिया था, तो फिर रात में मुठभेड़ का नाटक क्यों?

सवाल नंबर 2: पुलिस अगर चाहती तो उसे कोर्ट में पेश करती, उसकी पूरी पूछताछ करती. क्या कानून में अब यह प्रावधान नहीं बचा है? क्या अब एनकाउंटर ही ‘सज़ा-ए-मौत’ बन गया है?

सवाल नंबर 3: जब पुलिस ने ख़ुद ही उसके घर से चांदी बरामद कर ली, तो क्या इससे यह साबित नहीं होता कि पुलिस ने उसे ज़िंदा पकड़ा था? फिर भी उसे गोली मार दी गई. क्यों?

सवाल नंबर 4: क्या हमारे देश में न्याय अब इस तरह से तय होगा कि पुलिस जिसे चाहे, उसे ‘मुठभेड़’ में मार दे? अगर लूट के आरोपी को सीधे गोली मारनी है, तो क्या देश के सभी लुटेरों को इसी तरह ख़त्म किया जाएगा?

नीरज का भाई मनोज आरोप लगाता है कि पुलिस ने उनका शव परिवार को सौंपने के बाद भी चैन से नहीं रहने दिया. जब शाम को शव गांव पहुंचा, तो पुलिस ने तुरंत अंतिम संस्कार कराने का दबाव बनाया. परिवार ने कहा कि हम सुबह तक रुकना चाहते हैं. परिवार के लोग गिड़गिड़ाते रहे, हाथ जोड़ते रहे. लेकिन पुलिस ने किसी की नहीं सुनी. शव पर पेट्रोल और डीज़ल डालकर जला दिया गया.

सवाल नंबर 5: क्या पुलिस को इतनी जल्दी क्या थी? क्या वे किसी सबूत को मिटाना चाहते थे? क्या शव पर लगी चोटों को छुपाना चाहते थे?

एक वीडियो भी सामने आया है, जो इस बात को और भी पुख़्ता करता है कि नीरज का अंतिम संस्कार कितनी जल्दबाज़ी में, और किस तरह से हुआ.

यह सिर्फ़ एक एनकाउंटर नहीं है. यह हमारे सिस्टम पर एक बड़ा सवाल है. यह उस पुलिस की कहानी है, जो ख़ुद ही जज बन जाती है. ख़ुद ही मुजरिम को सज़ा दे देती है. और परिवार को शोक मनाने तक का मौक़ा नहीं देती. यह सिर्फ़ एक मौत नहीं है, यह न्याय की उस उम्मीद की मौत है, जो एक नागरिक अपने देश के सिस्टम से करता है. मथुरा पुलिस से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या आपके पास इस दुखद कहानी का कोई जवाब है?

लेखक- मोहम्मद शाहिद

Dr. Bhanu Pratap Singh