पुण्‍यतिथि: लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर

पुण्‍यतिथि: लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर

साहित्य


मशहूर पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर की आज पुण्‍यतिथि है। हबीब तनवीर का निधन 8 जून 2009 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ।
1 सितंबर 1923 को तत्‍कालीन मध्‍यप्रदेश के रायपुर में जन्‍मे हबीब तनवीर की प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954) चरणदास चोर (1975) शामिल हैं। उन्होंने 1959 में नया थियेटर कंपनी स्थापित की थी।
हबीब तनवीर के बचपन का नाम हबीब अहमद खान था। उन्होंने लॉरी म्युनिसिपल हाईस्कूल से मैट्रिक पास की, म़ॉरीस कॉलेज नागपुर से स्नातक किया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए की परीक्षा पास की।
हबीब को बचपन में ही कविता लिखने का शौक चढ़ गया था। पहले उन्‍होंने सिर्फ तनवीर के छद्मनाम नाम से लिखना शुरू किया था जो बाद में उनके नाम से जुड़ गया।
सन् 1945 में हबीब मुम्बई चले गये और प्रोड्यूसर के तौर पर आकाशवाणी में नौकरी शुरू कर दी। वहां रहते हुए उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए गाने लिखे। कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया। फिर प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ गये और कलांतर में इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन के अंग बन गये। जब ब्रिटिश शासन के खिलाफ इप्टा से जुड़े कई लोग जेल चले गये तब हबीब तनवीर को संगठन की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। 1954 वे दिल्ली आ गये और हिन्दुस्तानी थियेटर से जुड़ गये। उन्होंने बाल थियेटर के लिए भी काम किया। कई नाटकों की रचना की। यहीं रहते हुए उनकी मुलाकात अभिनेता-निर्देशक मोनिका मिश्रा से हुई जिनसे उन्होंने आगे चलकर शादी कर ली। उसी साल उन्होंने अपना चर्चित नाटक आगरा बाजार लिखा।
हबीब तनवीर हिन्दुस्तानी रंगमंच के शलाका पुरुष थे। उन्होंने लोकधर्मी रंगकर्म को पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित किया और भारतीय रंगमंच को एक नया मुहावरा दिया।
उनके पिता हफ़ीज अहमद खान पेशावर (पाकिस्तान) के रहने वाले थे।
कार्यक्षेत्र
50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन व सर्जन किया। उनका कला जीवन बहुआयामी था। वे जितने अच्छे अभिनेता और निर्देशक व नाट्य लेखक थे, उतने ही श्रेष्ठ गीतकार, कवि, गायक व संगीतकार भी थे। उन्‍होंने फ़िल्मों व नाटकों की बहुत अच्छी समीक्षाएं भी की। उनकी नाट्य प्रस्तुतियों में लोकगीतों, लोक धुनों, लोक संगीत व नृत्य का सुन्दर प्रयोग सर्वत्र मिलता है। उन्होंने कई वर्षों तक देश भर ग्रामीण अंचलों में घूम-घूमकर लोक संस्कृति व लोक नाट्य शैलियों का गहन अध्ययन किया और लोक गीतों का संकलन भी किया।
नया थियेटर की स्थापना
छठवें दशक की शुरुआत में नई दिल्ली में हबीब तनवीर की नाट्य संस्था ‘नया थियेटर’ और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्थापना लगभग एक समय ही हुई। यह उल्लेखनीय है कि देश के सर्वश्रेष्ठ नाट्य संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पास आज जितने अच्छे लोकप्रिय व मधुर गीतों का संकलन है, उससे कहीं ज्यादा संकलन ‘नया थियेटर’ के पास मौजूद है। एचएमवी जैसी बड़ी संगीत कंपनियों ने हबीब तनवीर के नाटकों के गीतों के कई आडियो कैसेट भी तैयार किये जो बहुत लोकप्रिय हुए।
हिन्दी रंगमंच का विकास
आजादी से पहले हिन्दी रंगकर्म पर पारसी थियेटर की पारम्परिक शैली का गहरा प्रभाव था। साथ ही हिन्दुस्तान के नगरों और महानगरों में पाश्चात्य रंग विधान के अनुसार नाटक खेले जाते थे। आजादी के बाद भी अंग्रेज़ी और दूसरे यूरोपीय भाषाओं के अनुदित नाटक और पाश्चात्य शैली हिन्दी रंगकर्म को जकड़े हुए थी। उच्च और मध्य वर्ग के अभिजात्यपन ने पाश्चात्य प्रभावित रुढ़ियों से हिन्दी रंगमंच के स्वाभाविक विकास को अवरुद्ध कर रखा था और हिन्दी का समकालीन रंगमंच नाट्य प्रेमियों की इच्छाओं को संतुष्ट करने में अक्षम था। हबीब तनवीर ने इन्हीं रंग परिदृश्य को परिवर्तित करने एक नए और क्रांतिकारी रंग आंदोलन का विकास किया।
हबीब तनवीर की जितनी थियेटर पर पकड़ थी, उतनी ही मज़बूत पकड़ समाज, सत्ता और राजनीति पर थी। वे रंगमंच को एक पॉलिटिकल टूल मानते थे। उनका कहना था कि समाज और सत्ता से कटकर किसी क्षेत्र को नहीं देखा जा सकता।
-Legend News

Dr. Bhanu Pratap Singh