हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर की आज पुण्यतिथि है। 17 अगस्त 1916 को आगरा के गोकुलपुरा स्थित अपनी ननिहाल में जन्मे अमृतलाल नागर की मृत्यु 23 फरवरी 1990 के दिन लखनऊ में हुई।
गुजराती ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले अमृतलाल नागर के पितामह पं. शिवराम नागर 1895 में ही लखनऊ आकर बस गए थे।
अमृतलाल नागर ने नाटक, रेडियो नाटक, रिपोर्ताज, निबन्ध, संस्मरण, अनुवाद, बाल साहित्य आदि के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्हें साहित्य जगत् में उपन्यासकार के रूप में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई हालांकि उनका हास्य-व्यंग्य लेखन कम महत्वपूर्ण नहीं है।
अमृतलाल नागर ने एक छोटी सी नौकरी के बाद कुछ समय तक मुक्त लेखन एवं हास्यरस के प्रसिद्ध पत्र ‘चकल्लस’ के सम्पादन का कार्य 1940 से 1947 ई. तक कोल्हापुर में किया। इसके बाद बम्बई एवं मद्रास के फ़िल्म क्षेत्र में लेखन का कार्य किया। यह हिन्दी फ़िल्मों के लिए डबिंग कार्य में अग्रणी थे। दिसम्बर 1953 से मई 1956 तक आकाशवाणी लखनऊ में ड्रामा प्रोड्यूसर, उसके कुछ समय बाद स्वतंत्र लेखन का कार्य करते रहे।
अमृतलाल नागर हिन्दी के गम्भीर कथाकारों में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। इसका अर्थ ही यह है कि वे विशिष्टता और रंजकता दोनों तत्वों को अपनी कृतियों में समेटने में समर्थ हुए हैं। उन्होंने न तो परम्परा को ही नकारा है, न आधुनिकता से मुँह मोड़ा है। उन्हें अपने समय की पुरानी और नयी दोनों पीढ़ियों का स्नेह समर्थन मिला और कभी-कभी दोनों का उपालंभ भी मिला है। आध्यात्मिकता पर गहरा विश्वास करते हुए भी वे समाजवादी थे किन्तु जैसे उनकी आध्यात्मिकता किसी सम्प्रदाय कठघरे में कैद नहीं थी, वैसे ही उनका समाजवाद किसी राजनीतिक दल के पास बन्धक नहीं था। उनकी कल्पना के समाजवादी समाज में व्यक्ति और समाज दोनों का मुक्त स्वस्थ विकास समस्या को समझने और चित्रित करने के लिए उसे समाज के भीतर रखकर देखना ही नागर जी के अनुसार ठीक देखना है इसीलिए बूँद (व्यक्ति) के साथ ही साथ वे समुद्र (समाज) को नहीं भूलते।
-Legend News
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