corona curfew in agra

आगरा ने कई बार झेला है कर्फ्यू का दंश, इस समय लागू है Corona Curfew, पढ़िए रोचक जानकारियां

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Agra, Uttar Pradesh, India. वैश्विक महामारी कोविड-19 पर काबू पाने के लिए सरकार अनेक जतन कर रही है। इनमें से एक है कोरोना कर्फ्यू। पूरे उत्तर प्रदेश में कोरोना कर्फ्यू लागू है। यह बात अलग है कि इसका अनुपालन कर्फ्यू की तरह नहीं हो रहा है, लेकिन कर्फ्यू तो है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर 22 मार्च, 2020 को 15 घंटे का जनता कर्फ्यू लगा था। प्रशासन ने कई बार धारा 144 के तहत कर्फ्यू जैसी स्थिति बनाई है लेकिन कर्फ्यू की घोषणा नहीं की है। कर्फ्यू की बात चली है तो हम आज आपको बता रहे हैं आगरा में सबसे पहले कर्फ्यू कब लगा था? अब तक कितनी बार कर्फ्यू लग चुका है?

1968 में भड़का था दंग

1947 में भारत को आजादी मिली। इसके साथ ही पाकिस्तान बना। हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। इस दौरान आगरा में शांति रही। इसी कारण आगरा को सांप्रदायिक सद्भाव की नगरी कहा जाने लगा। इसके ठीक 21 साल बाद 1968 में फिरोजाबाद में साम्प्रदायिक दंगा हो गया। प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा। फिरोजाबाद की आग से आगरा को बचाने के लिए संवेदनशीलता की दृष्टि से लोहामंडी, मंटोला और ताजगंज थाना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया। यह बात तब की है जब फिरोजाबाद अलग जिला नहीं था।

आगरा कांड

1978 में अंबेडकर जयंती के मौके पर 14 अप्रैल को शोभायात्रा में शामिल लोगों ने रावतपाड़ा में उत्तेजक नारे लगाने शुरू कर दिए। दुकानदारों ने विरोध किया। बाबा साहब के डोले पर पथराव किया। अंबेडकर प्रतिमा क्षतिग्रस्त हो गई। शोभायात्रा में आए लोगों को खदेड़ दिया। इसके विरोध में जाटव समाज ने लम्बा आंदोलन चलाया। एक मई, 1978 को जाटवों और पुलिस के बीच संघर्ष हुआ। फायरिंग में तीन की मौत हुई। इसके बाद पूर आगरा में कर्फ्यू के प्रावधान लागू कर दिए गए। लोगों को घरों में बंद कर दिया गया। आधिकारिक रूप से कर्फ्यू की घोषणा नहीं की गई। वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर शर्मा ने जनसंदेश टाइम्स को बताया कि आगरा नगर के इतिहास में यह घटना रावतपाड़ा कांड या आगरा कांड के नाम से चर्चित है। इस घटना से आगरा में जातीय तनाव हो गया था।

पनवारी कांड

आगरा में 21 जून, 1990 को पनवारी कांड हुआ था। दलित लड़की मुंद्रा की बारात चढ़ाने से रोकने पर विवाद हो गया। जाट और जाटवों के बीच खूनी संघर्ष हुआ। कई लोग भट्ठे में झोंक दिए गए। कुछ का आज तक पता नहीं है। इस घटना के बाद आगरा शहर और देहात में कर्फ्यू लगाया गया था।

अयोध्या की घटना

छह दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने की प्रतिक्रिया आगरा में हुई। हिंसा, आगजनी, लूटपाट हुई। ऐसा लगा कि पूरा शहर लड़ाई का मैदान बन गया है। पुलिस असहाय सी हो गई थी। शहर कई दिन तक कर्फ्यू की चपेट में रहा। तब लोग सुरक्षा के लिए स्वयं गश्त करते थे। छतों पर अलाव जलाकर रातभर निगरानी करत थे।

चार मुस्लिमों की मौत

आगरा में 14 साल पहले 27 अगस्त,  2007 को कर्फ्यू लगाया गया था। इसका कारण यह था कि नाई की मंडी क्षेत्र में एक ट्रक ने चार मुस्लिमों को रौंद दिया था। इसके बाद दंगा भड़क उठा। उपद्रवियों ने पुलिस पर पथराव किया। दंगे में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। प्रशासन ने ताजमहल भी बंद कर दिया था। उस समय आगरा के जिलाधिकारी मुकेश कुमार मेश्राम थे। उपद्रवियों ने उनकी हत्या करने का प्रयास किया था। उन्होंने नाई की मंडी थाना की कोठरी में बंद होकर जान बचाई।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह द्वारा लिखित उपन्यास मेरे हसबैंड मुझको प्यार नहीं करतेखरीदने के लिए यहां क्लिक करें

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