कांग्रेस आलाकमान ने 13 से 15 मई तक राजस्थान के उदयपुर में तीन दिन का नव संकल्प चिंतन शिविर करने का फैसला किया है, जिसमें 2024 के आम चुनावों सहित आगामी असेंबली चुनावों को लेकर पार्टी की रणनीति पर भी मंथन होगा। इसमें पार्टी के सभी सांसदों, तमाम विधायकों, प्रदेश के अहम नेताओं और पदाधिकारियों से लेकर फ्रंटल इकाइयों तक के प्रमुख नेताओं को बुलाया गया है।
कांग्रेस के सामने मुश्किलें
कांग्रेस में सबसे बड़ी दिक्कत नेतृत्व को लेकर है। कांग्रेस को फिलहाल एक स्पष्ट और मजबूत नेतृत्व की सख्त जरूरत है जो न सिर्फ अपने नेताओं व वर्कर्स में नई ऊर्जा भर सके बल्कि आम लोगों से लेकर सहयोगी राजनैतिक दलों को भी भरोसा दिला सके कि देश की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला कर सकती है, उसका विकल्प बन सकती है।
मजबूत नेतृत्व के अभाव में पार्टी बीजेपी के खिलाफ मुद्दे तो उठाती है लेकिन वो लोगों के मन में अपनी बातों को बैठा नहीं पाती है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष बनने से पहले तक सोनिया गांधी की लीडरशिप में यह सभी कुछ था लेकिन उनके बैकसीट पर जाने, राहुल के कमान संभालने और फिर उसे छोड़ने और इस बीच प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से नेतृत्व के स्तर पर कई पावर सेंटर बनते गए। इसने संगठन के भीतर आपसी खींचतान और गुटबाजी को एक नई धार दे दी।
हालांकि कांग्रेस में खींचतान और गुटबाजी हमेशा से रही है, लेकिन मजबूत नेतृत्व उनके बीच संतुलन बनाता रहा जबकि मौजूदा नेतृत्व इसमें खुद को कहीं न कहीं नाकाम पा रहा है। एक के बाद एक लगातार हो रही हार के चलते वर्कर्स और नेताओं का मनोबल गिरना और मोहभंग दोनों ही हुआ है जिसकी एक बड़ी परिणति तेजी से दूसरे दलों में जाते नेताओं के रूप में दिखती है। एक बड़ी कमजोरी कमजोर संगठन और जमीन पर कमजोर होती पकड़ भी है, जिससे पार्टी लोगों में भरोसा नहीं बना पा रही। कांग्रेस की एक दिक्कत एक ऐसा चेहरा भी है, जो मोदी के सामने विकल्प बने। राहुल गांधी को आगे करने की कोशिश की गई लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों ही अब तक कवायद में कामयाब नहीं हो पाए।
चिंतन शिविर से निकलेगी राह ?
कांग्रेस में चिंतन शिविर के इतिहास और उसके सार को देखें तो इसमें उम्मीद और निराशा दोनों नजर आती हैं। सोनिया के नेतृत्व में शुरू हुए चिंतन शिविरों ने कई ऐसे प्रस्ताव और फैसले सामने आए, जिसने 21वीं सदी में कांग्रेस के दस साल के शासन की नींव रखी। उदयपुर में हो रहे नव-संकल्प चिंतन शिविर में छह अलग-अलग विषयों राजनीतिक, सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण, इकॉनमी, संगठन, किसान और कृषि और युवा सशक्तीकरण पर मंथन होगा। कांग्रेस अगर मंथन से निकले निचोड़ों पर ईमानदारी से काम करे तो राह निकल सकती है।
इस बारे में नाम जाहिर न करने वाले कांग्रेस के एक सीनियर नेता का कहना था कि पार्टी की दिक्कत योजना और मंशा की नहीं, बल्कि जमीन पर उतारने और उसकी निगरानी की है। हम रणनीति तो बनाते हैं, लेकिन उसे जमीन पर उस तरह से लागू नहीं कर पाते और न ही उसकी मॉनिटरिंग और फॉलोअप करते हैं, जैसा बीजेपी करती है।
-एजेंसियां
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