क्‍लाइमेट हीलिंग: हीट पंप्स से हो सकती है ऊर्जा और पैसे की बचत – Up18 News

क्‍लाइमेट हीलिंग: हीट पंप्स से हो सकती है ऊर्जा और पैसे की बचत

HEALTH

 

कीमत और कार्बन डायोक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने के मकसद से कंपनियां प्राकृतिक गैस की जगह हीट पंप के इस्तेमाल के पांच तरीके अपना रही हैं

लगभग सभी कंपनियों को अपने माल बनाने के लिए गर्मी (ऊष्मा) और ठंड की जरूरत होती है, फिर चाहे वो चीज या चीज बनाने वाली कंपनी हो या फिर ईंट बनाने वाली. तेल और गैस उद्योगों के लिए सबसे अहम ईंधन स्रोत होते हैं. जलवायु कारणों से अलग, ये जीवाश्म ईंधन सस्ते होने के कारण लंबे समय से इस्तेमाल होते आ रहे थे इसलिए औद्योगिक इकाइयों ने ऊर्जा के नए स्रोतों और तकनीकों पर बहुत ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया.

लेकिन यूक्रेन में युद्ध और गैस कीमतों में एकाएक हुई बढ़ोत्तरी ने व्यावसायिक जगत को ऊर्जा के नए स्रोतों पर विचार करने के लिए विवश कर दिया है. इन्हीं स्थितियों में हीट पंप के बारे में विचार किया जा सकता है. और जलवायु-अनुकूल हीटिंग सिस्टम बनाने वालों का कहना है कि इस बारे में उनसे काफी पूछताछ की जा रही है.

ये उपकरण हवा, जमीन, पानी या अपशिष्ट पदार्थों की गर्मी बाहर निकालने का काम करते हैं जो कि औद्योगिक प्रक्रियाओं के दौरान उत्पन्न होती है. इनका उपयोग इमारतों को गर्म रखने या फिर औद्योगिक प्रक्रियाओं के दौरान गर्मी (ऊष्मा) उपलब्ध कराने में किया जा सकता है.

साधारण हीट पंप से ठंड के मौसम में घर के तापमान को सुहावना बनाए रखा जा सकता है और इनसे ज्यादा से ज्यादा 95 डिग्री सेल्सियस या 203 डिग्री फारेनहाइट का तापमान प्राप्त किया जा सकता है लेकिन औद्योगिक इकाइयों के लिए जहां वस्तुओं का निर्माण होता है, इतना तापमान पर्याप्त नहीं होता है.

इस समय, उच्च तापमान देने वाले कुछ विशेष हीट पंप से 165 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उत्पन्न किया जा सकता है और कुछ पायलट प्लांट्स में तो 300 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान भी प्राप्त किया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, भविष्य में हीट पंप्स 400 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उत्पन्न करके करीब 30 फीसद ऊष्मा की आपूर्ति कर सकते हैं.

इस समय भी बहुत सी औद्योगिक इकाइयां बड़े पैमाने पर हीट पंप्स का उपयोग कर रही हैं और उनके परिणाम भी काफी सकारात्मक दिख रहे हैं.

चॉकलेट की खुशबू बिखेरने के लिए हीट पंप

क्या आपने कभी सोचा है कि चॉकलेट से इतनी अच्छी खुशबू कैसे आती है? दरअसल, यह स्वादिष्ट खुशबू कोंचिंग नाम की एक विशेष प्रक्रिया के जरिए आती है जिसमें चॉकलेट को 60 डिग्री सेलिस्यस के तापमान पर रखकर कई घंटे तक हिलाया जाता है. सभी चॉकलेट कंपनियां कोको के बीजों से चॉकलेट का पसंदीदा फ्लेवर बनाने के लिए गर्म करने के बाद उसे ठंडा करने की प्रक्रियाओं का उपयोग करती हैं और ज्यादातर कंपनियां अभी भी इस प्रक्रिया के लिए गैस का ही उपयोग करती हैं.

चूंकि हीट पंप्स और रेफ्रिजरेटर एक ही सिद्धांत पर काम करते हैं, नई मशीनें हीटिंग और कूलिंग प्रक्रियाओं को जोड़ देती हैं. चॉकलेट कंपनियों का कहना है कि इससे फैक्ट्री में ऊर्जा खपत 20 फीसद तक कम हो जाती है और CO2 उत्सर्जन में सालाना 170 टन तक की कटौती हो जाती है.

चीज का उत्पादन

स्विटजरलैंड में एक डेटा सेंटर अपने सर्वर को ठंडा करने के बाद बची ऊष्मा से चीज बनाने में मदद कर रहा है. गैस माउंटेन चीज डेरी के साथ मिलकर यह सेंटर काम कर रहा है जहां हीट पंप पानी को 85 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर देते हैं. इससे करीब पचास हजार लीटर दूध से हर दिन चीज बनाई जा रही है.

उत्तर पूर्वी स्विटजरलैंड में स्थित इस कंपनी का कहना है कि यह डेरी हर साल करीब बीस लाख किलोवॉट ऑवर गैस की बचत करती है. यह कंपनी गैस का इस्तेमाल सिर्फ आपातकालीन स्थितियों में ही करती है ताकि उत्पादन का कार्य प्रभावित न होने पाए.

ईंटों को सुखाने के लिए हीट पंप का प्रयोग

ईंटों के निर्माण में ईंधन की बहुत जरूरत पड़ती है. इसके लिए मिट्टी को रेत और अन्य चीजों के साथ मिलाया जाता है, ईंट के सांचे में ढाला जाता है और फिर सुखाया जाता है. इसके बाद, सूखी हुई ईंट को करीब 1,000 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पकाया जाता है.

लेकिन 2019 से उटेनडोर्फ स्थित ऑस्ट्रियाई म्युनिसपैल्टी की एक ईंट फैक्ट्री भट्ठी की गर्म हवा से हीट पंप बनाने में कर रही है जो कि ईंटों को भट्ठी में डालने से पहले सुखाने के काम आता है. इस प्रक्रिया से करीब 30 फीसद गैस की बचत होती है और हर साल CO2 का उत्सर्जन भी दो से तीन हजार टन तक कम हो गया है.

इस फैक्ट्री का संचालन दुनिया की सबसे बड़ी ईंट निर्माता कंपनी वीनरबर्गर एजी कर रही है. इस कंपनी की 28 देशों में 200 से ज्यादा इकाइयां हैं. वीनरबर्गर कंपनी पोलैंड, ब्रिटेन और नीदरलैंड्स में भी उच्च तापमान वाले हीट पंप लगाने की योजना बना रही है. उटेनडोर्फ स्थित संयंत्र में गैस की भट्ठी की बजाय इलेक्ट्रिक भट्ठी लगाई जाएगी.

जर्मनी की मल्टीनेशनल कंपनी बीएएसएफ दुनिया का सबसे बड़ा हीट पंप बनाने की तैयारी कर रही है. एक लाख बीस हजार किलोवॉट क्षमता वाला यह हीट पंप लुडविग्सहाफेन स्थित इसके मुख्य संयंत्र में लगाया जाएगा.

यह पंप फैक्ट्री के ही कूलिंग वाटर सिस्टम की ही बची ही हीट का इस्तेमाल करेगा. कंपनी का कहना है कि यह पंप हर घंटे 150 टन तक भाप पैदा करेगा जिससे प्राकृतिक गैस की बचत होगी और CO2 उत्सर्जन में हर साल 3 लाख 90 हजार टन तक की कटौती हो सकती है.

हीट पंप कार्बन रहित उत्पादन में मदद कर सकते हैं

ऑस्ट्रिया की इंटरनेशनल फूड ग्रुप अग्राना  पिशेल्सडॉर्फ स्थित अपने खाद्य और पशु खाद्य पदार्थ बनाने वाली फैक्ट्री में एक उच्च तापमान वाले हीट पंप का इस्तेमाल कर रही है जहां गेहूं के स्टार्च से 160 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पानी निकाला लिया जाता है. इस फैक्ट्री में सॉसेज और सूप बनाने में यही सूखा पाउडर बाइडिंग एजेंट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

ऑस्ट्रियन रिसर्च इंस्टीट्यूट एआईटी के मुताबिक, हीट पंप ड्राइंग प्लांट की हीटिंग पावर में करीब दस फीसदी का योगदान देता है. इससे 3200 मेगावॉट-घंटे की गैस की बचत होती है. हर साल 600 टन कार्बन डाइऑक्साइड की कटौती होती है.

एआईटी में इंडस्ट्रियल हीट पंप की विशेषज्ञ वेरोनिका विल्क कहती हैं कि उच्च-तापमान वाले ऐसे पंप मौजूदा संयंत्रों में भी लगाए जा सकते हैं. भविष्य में दुनिया भर की एक तिहाई से ज्यादा उत्पादन इकाइयां इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकती हैं- खासकर पेपर, खाद्य और रासायनिक उद्योग में.

विल्क के मुताबिक, “बिना इस्तेमाल की गई अपशिष्ट गर्मी के इस्तेमाल से जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग में कमी लाई जा सकती है और इससे औद्योगिक प्रक्रियाओं के दौरान उत्पन्न होने वाले कार्बन में भी कमी लाई जा सकती है.”

Dr. Bhanu Pratap Singh