दुनिया पर राज करने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निर्देश पर बनाया गया ड्रीम प्रॉजेक्ट बेल्ट एंड रोड फेल होने की कगार पर पहुंच गया है। चीन के लिए उसके दोस्त पाकिस्तान और श्रीलंका संकट बन गए हैं। चीन बीआरआई योजना के तहत 880 अरब डॉलर खर्च कर रहा है। इसी योजना के तहत चीन ने पाकिस्तान में 53 अरब डॉलर, इंडोनेशिया में 44 अरब डॉलर, सिंगापुर में 41 अरब डॉलर, सऊदी अरब में 33 अरब डॉलर, मलेशिया में 30 अरब डॉलर समेत दुनिया के अन्य देशों में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है।
चीन की कोशिश इन देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर उन्हें अपनी गिरफ्त में लेने की थी लेकिन अब यही कर्ज उसके लिए मुसीबत बन गया है। यही नहीं, जापान के प्रतिष्ठित अखबार निक्केई ने यह भी खुलासा किया है कि चीन ने दुनियाभर के देशों की सरकारों को खुश करने के लिए 385 अरब डॉलर का ‘छिपा’ हुआ कर्ज भी बांट रखा है।
हालत यह है कि जिस चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर की चीन और पाकिस्तान की सरकारें उदाहरण देती हैं, उसमें 8 साल में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।
चीन ने वादा किया था कि ग्वादर में एक नया एयरपोर्ट बनाया जाएगा, ग्वादर फ्री जोन होगा। वहां 300 मेगावाट का कोयला आधारित पावर प्लांट लगेगा और पानी साफ करने की मशीन भी होगी।
निक्केई की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से कोई भी पूरा नहीं हुआ है। चीन ने जो निवेश यहां किया भी हुआ है, उससे कोई खास फायदा अर्थव्यवस्था को नहीं हो पा रहा है। चीन ने जिस ग्वादर को दुनिया के लिए उदाहरण बनाने का वादा किया था, वहां के शहर में नालियां बजबजा रही हैं और विकास कहीं दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है। चीन चाहता है कि मलक्का स्ट्रेट में आने वाले किसी संकट से बचने के लिए वह पाकिस्तान के ग्वादर के रास्ते अपने शिंजियांग प्रांत को जोड़ दे। इससे उसकी हिंद महासागर तक सीधी पहुंच हो जाएगी।
चीन का बीआरआई प्रॉजेक्ट 880 अरब डॉलर का
अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट का मानना है कि यह पूरा बीआरआई प्रोजेक्ट 880 अरब डॉलर का है। इसमें कर्ज, सहायता और आधारभूत ढांचे का ठेका शामिल है। इसमें अभियान में 149 देश शामिल हैं लेकिन भारत इसका सदस्य नहीं है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साल 2013 में बीआरआई को सिल्क रोड करार दिया था। इसके बाद साल 2015 में पाकिस्तान में सीपीईसी योजना शुरू हुई थी। चीन की योजना पाकिस्तान में 50 अरब डॉलर का निवेश करने की है। यह परियोजना बीआरआई की जान है। जब इस योजना को लॉन्च किया गया था तब पाकिस्तान सरकार ने कहा था कि ग्वादर को दुबई बनाया जाएगा। यह वादा खोखला साबित हुआ और सीपीईसी योजना भी बीआरआई की तरह से फेल होने की कगार पर पहुंच गई है। बीआरआई के ज्यादातर प्रोजेक्ट या तो फेल हो गए या फिर उनका नतीजा खराब रहा।
ग्वादर में भले ही चीन की योजना परवान न चढ़ी हो लेकिन यहां के रहने वालों के लिए यह बहुत ही विनाशक साबित हुई है। स्थानीय समुदाय मछली पकड़कर अपनी रोजी-रोटी चलाता था जो अब कड़े सुरक्षा इंतजामों के कारण बंद हो गया है।
पश्चिमी विश्लेषकों का कहना है कि चीन भले ही इसे विकास का प्रॉजेक्ट बता रहा है लेकिन आगे चलकर ग्वादर में चीन का नौसैनिक अड्डा बनेगा। पाकिस्तानी मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन मानते हैं कि ग्वादर जरूरत से ज्यादा अपेक्षा का शिकार हो गया है।
चीन के बीआरआई को पहले अमेरिका के मार्शल प्लान का दूसरा रूप माना गया था लेकिन अब इसके आर्थिक फायदे पर ही सवाल उठने लगा है। कई देशों के लिए तो यह संकट बन गया है। चीन दावा करता है कि बीआरआई के तहत वह आर्थिक सहायता दे रहा है लेकिन वह अक्सर होता नहीं है।
श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का कब्जा
चीन इसे सहायता का बोझ इतना ज्यादा हो जा रहा है कि श्रीलंका जैसे देश इसे चुका नहीं पा रहे हैं। चीन के कर्जजाल में फंसा श्रीलंका डिफाल्ट कर गया है और अपने विदेश कर्ज को नहीं लौटा पा रहा है। हालत यह हो गई कि जनता ने विद्रोह कर दिया और चीन समर्थक गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर जाना पड़ा है। कई श्रीलंकाई लोगों का मानना है कि चीन ने भ्रष्ट राजपक्षे सरकार को बढ़ावा दिया।
कर्ज नहीं चुका पाने की वजह से श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का कब्जा हो गया है। कंबोडिया में भी चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट सफेद हाथी साबित हुए हैं। ये देश अब चीन के कर्ज को नहीं लौटा पा रहे हैं और साल 2020 और साल 2021 में चीन को 52 अरब डॉलर के लोन को रिस्ट्रक्चर करना पड़ा है। लोन नहीं वापस होने के कारण चीन के आर्थिक सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा है। चीन की भारी भरकम योजना से उस देश की जनता को कोई फायदा नहीं होता है जहां यह प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं।
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