इस्कॉन चेयरमैन देवकी नंदन प्रभु बोले- अध्यात्म के बिना नैतिकता और चरित्र बिना अध्यात्म सम्भव नहीं
आगरा। इस्कॉन के चेयरमैन देवकी नन्दन प्रभु ने ने अध्यात्म में विश्वास विषय पर अपने व्याख्यान देते हुए कहा कि गीता वो शास्त्र है जो सम्पूर्ण विश्व को सुखी कर सकता है। सभी वेद पुराण पुल्लिंग और स्त्रीलिंग हैं। इसलिए श्रीमद्बागवत गीता को माता का दर्जा दिया गया है। म का अर्थ है जहां न हो और त का अर्थ है दुख। जिसकी शरण में रहने से दुख न हो, वह माता कहलाती है।
इस्कॉन चेयरमैन सूरसदन में लायन्स क्लब प्रयास के सहयोग से इस्कॉन द्वारा आयोजित यूथ फैस्ट गीता ओलम्पियाड (शंखनाद) कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस कार्यक्रम में डेढ़ सौ से ज्यादा मेधावियों को सम्मानित भी किया गया। नैतिकता और अनुशासन के संकल्प के साथ पुरस्कार प्राप्त कर मेधावियों के चेहरे खिले हुए थे।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते देवकी नंदन प्रभु ने कहा कि संसार में बहुत चिन्ता है, इसलिए लोग दुखी हैं। भगवान की शरण में जाने से ही चिन्ता और दुख से मुक्त हो सकते हैं। चिता मृत मनुष्य को जलाती है तो वहीं चिंता जीवित मनुष्य को जला देती है, इसलिए चिंता और चिता से बचने के लिए संतों की शरण में गीता का ज्ञान लें।
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति भगवत गीता की शरण में रहता है, उसे कोर्ट में जाकर गीता की कसम नहीं खानी पड़ती। यानि वह गलत कार्यों से दूर रहता है। किसी भी काम को करने के लिए श्रद्धा बहुत जरूरी है। धीरे-धीरे जब श्रद्वा सुदृढ़ होती है तो वह विश्वास के रूप में परिणित हो जाती है। आम एक ही है परन्तु कच्चा होने पर वह हरा होता है लेकिन पकने पर पीले रंग का हो जाता है।
श्री देवकी नंदन प्रभु ने कहा कि श्रद्धा इनबिल्ड सिस्टम है हमारे अंदर। इसे सुदृढ़ और परिपक्व करने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है। उन्होंने एक पंडित व मोची की कथा के माध्यम से ईश्वर पर श्रद्धा के भाव का अर्थ समझाया। कहा कि अध्यात्म की शुरुआत खुद को जानने से होती है। जीवन के प्रारम्भ से अंत तक ब्रह्म जिज्ञासा होना और इस प्रश्न का उत्तर जान लेना कि मैं कौन हूं, यही अध्यात्म है।
महात्मा गांधी कहते थे कि धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब कुछ गया। परन्तु आज इसका उल्टा हो रहा है। चरित्र गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया और धन गया तो सब कुछ गया। उन्होंने कहा कि जीवन यही जानने के लिए है कि मैं कौन हूं, और वहां तक पहुंचने के लिए चरित्र और आचरण बहुत जरूरी है। बच्चों को चरित्रवान और अच्छे आचरण देने हैं तो बच्चों को सिखाने से पहले खुद उस पर अमल करें। बच्चे खुद ब खुद सीख जाएंगे। आचरण जीवन में अनुशासन लाता है। आज जीवन से आचरण और अनुसासन गायब हो गए हैं।
भारत की असली धरोहर है अध्यात्म
कानपुर इस्कॉन मंदिर के उपाध्यक्ष नीलमणि ने कहा कि हमारी वैदिक गुरुकुल शिक्षा प्राणाली के तीन स्तर होते थे। आत्म, चरित्र और कला ज्ञान। सबसे आसान कला ज्ञान, उसके बाद चरित्र और फिर सबसे कठिन आत्मज्ञान है। एक इंजीनियर बनने के लिए मात्र चार वर्ष, चरित्र निर्माण करने में वर्षों और आत्म का साक्षात्कार करने में जीवन निकल जाता है। परन्तु आज की शिक्षा प्रणाली में युवाओं को सिर्फ कला ज्ञान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चरित्र ज्ञान का आधार आत्म ज्ञान है। तीनों ज्ञान के बिना युवाओं का समुचित विकास सम्भव नहीं। जीवन में नैतिकता आत्मज्ञान के बिना सम्भव नहीं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम ने मोहा सभी का मन
सूरसदन सभागार उस समय तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा जब रुचि शर्मा के मार्गदर्शन में इस्कॉन द्वारा आयोजित गीता ओलंपियाड पुरस्कार समारोह में सांस्कृतिक प्रस्तुति बच्चों ने दी। मयूर नृत्य के साथ भगवान श्री कृष्णा और राधारानी की अलौकिक छवि के किरदारों ने हरे रामा हरे कृष्णा संकीर्तन पर प्रस्तुति देकर सभी का मन मोह लिया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ श्रील प्रभुपादजी की प्रतिमा के समक्ष दीप जलाकर किया गया। इस अवर पर मुख्य अतिथि उप्र महिला आयोग की अध्यक्ष डॊ. बबिता चौहान, आगरा इस्कॉन के अध्यक्ष अरविन्द प्रभु, शैलेन्द्र अग्रवाल, कामता प्रसाद अग्रवाल, आशु मित्तल राहुल बंसल, सुनील मनचंदा, सुशील अग्रवाल, संजीव बंसल, संजय कुकरेजा, राजेश उपाध्याय, ओमप्रकाश अग्रवाल, राजनारायण प्रभु, नितेश अग्रवाल, सुरेश चंद प्रभु रेखा अग्रवाल, सुशील गुप्ता अदि उपस्थित थे।
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