आगरा। छीपीटोला स्थित मुगलकालीन शाही हम्माम में आज आयोजित विरासत विदाई वॉक ने शहर के इतिहास प्रेमियों और जागरूक नागरिकों का ध्यान आकर्षित किया। यह वॉक बिजलीघर से शुरू हुई और शाही हम्माम के मुख्य द्वार पर समाप्त हुई। सभी ने मोमबत्तियां जलाकर और फूल अर्पित करके शाही हम्माम को एक भावपूर्ण विदाई दी। समापन के मौके पर “हम होंगे कामयाब” गीत प्रस्तुत किया गया।
एक तरफ आज इस हम्माम को भावपूर्ण विदाई दी गई। दूसरी ओर इस मध्यकालीन धरोहर को बचाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है। साथ ही, पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) और अन्य सरकारी संस्थानों को आवेदन प्रस्तुत किए जा चुके हैं। हमाम के ऐतिहासिक महत्व पर शोध पत्र भी जमा किया गया है। यह प्रयास इस ऐतिहासिक इमारत को संरक्षित करने की एक अंतिम कोशिश के रूप में किया जा रहा है।
आज के कार्यक्रम का उद्देश्य ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति समाज और प्रशासन को जागरूक करना था। कार्यक्रम के दौरान चर्चा हुई कि किस प्रकार उपेक्षा और विरासत के प्रति प्रेम की कमी के कारण ऐतिहासिक स्थलों को अपूरणीय क्षति हो रही है। वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकारी विभाग और प्रशासनिक संस्थान इन धरोहरों की जिम्मेदारी लेने में असफल रहे हैं। स्थानीय निवासियों के मुद्दों पर भी बात हुई, जो वर्षों से इस क्षेत्र में रह रहे हैं।
वॉक के दौरान, आत्मीय इरम, संस्थापक अध्यक्ष, जर्नी टू रूट्स ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस तरह धरोहरों के प्रति प्रेम की कमी और प्रशासन की लापरवाही के कारण ऐतिहासिक स्थलों को अपूरणीय क्षति हो रही है। उन्होंने शहरवासियों को इस मुद्दे पर जागरूक करने और एकजुट होने की अपील की।
हेरिटेज हिंदुस्तान से शांतनु,, जिन्होंने इस मुद्दे को पहली बार कवर किया और सोशल मीडिया पर जागरूकता फैलाने की शुरुआत की थी, ने भी अपने विचार साझा किए। हेरिटेज वॉक के प्रतिनिधियों ताहिर और कलीम अहमद ने विदाई वॉक का विचार प्रस्तुत किया था, ताकि शहरवासी इन स्थलों के महत्व को समझें। अर्सलान, हेरिटेज विद अर्सलान, और भानु ने सोशल मीडिया पर कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सिविल सोसाइटी आगरा के संस्थापक सदस्य अनिल शर्मा ने इस कार्यक्रम को औपचारिक रूप से सफल बनाने में सहयोग किया। गाइड्स एसोसिएशन के सदस्य, मुकुल पंड्या और योगेश ने कार्यक्रम में अपने ऐतिहासिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता डॊ. संजय चतुर्वेदी, राज सक्सेना, नेवीश के साथ-साथ जितेंद्र, नेहा, गगन, अरहान, डॉ. इमरान आदि ने भी भाग लिया।
यहां रह रहे गरीबों की स्थिति और गंभीर
चर्चा के दौरान यह भी सामने आया कि शाही हम्माम जैसे ऐतिहासिक स्थलों में रहने वाले स्थानीय निवासी, जो बेहद गरीब हैं और वर्षों से किराए पर रह रहे हैं और इस क्षेत्र के स्थायी निवासी बन चुके हैं, प्रशासन की लापरवाही और उचित योजना के अभाव ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
आयोजकों ने कहा कि यह वॉक शाही हम्माम और अन्य धरोहर स्थलों के संरक्षण के प्रति समाज और प्रशासन को जागरूक करने का एक छोटा प्रयास है। इस तरह के प्रयासों से शहरवासियों में अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति प्रेम और सम्मान जागृत होगा।
ये है शाही हम्माम का इतिहास
द ट्रैवलर गाइड टू आगरा (1892) और सैयद मोहम्मद लतीफ द्वारा लिखित, हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव” (1896) दोनों ही पुस्तकों में शाही हम्माम का विवरण मिलता है। इन पुस्तकों के अनुसार, हम्माम न केवल एक स्नानगृह था बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक केंद्र भी था। यहां आने वाले व्यापारी और यात्री विश्राम करते थे।. शाही हम्माम, जिसे अल्लाह वर्दी खान ने 1620 ईस्वी (1030 हिजरी) में बनवाया था, आगरा के छीपीटोला क्षेत्र में स्थित है। इन पुस्तकों में शाही हम्माम के वास्तुशिल्प, निर्माण के उद्देश्य और उसके समय की भव्यता का विस्तृत वर्णन है।
किताबों में है भव्यता का वर्णन
आगरा, हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव” के अनुसार शाही हम्माम का प्रवेश द्वार लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है, जिसमें बारीक नक्काशी और फारसी में शिलालेख अंकित हैं। इन शिलालेखों में मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल और अल्लाह वर्दी खान द्वारा निर्मित इस हम्माम की भव्यता की प्रशंसा की गई है। गुंबद का व्यास आधार पर 30 फीट है और इसकी लंबाई पूर्व से पश्चिम तक 122 फीट तथा चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक 72 फीट है। इसके आंगन में पानी के झरने और स्नानागार थे, जो तापमान को अनुकूल बनाए रखने में सक्षम थे।
शिलालेख पर ये है अंकित
“जहांगीर बादशाह के शासनकाल में, जो दुनिया के लिए एक शरणस्थल की तरह थे, आगरा शहर, जिसे दार-उल-खिलाफत कहा जाता है, वहां इस पवित्र और स्वच्छ हम्माम का निर्माण हुआ। यह हम्माम उतना ही सुंदर और विशाल है जितना स्वर्ग का आंगन। इसका पानी और चांद की झलक इसे चिरस्थायी बनाती है। इसका निर्माण अल्लाह वर्दी खान ने करवाया, और यह हमेशा शुभ और पवित्र कार्यों का प्रतीक रहेगा।”
पहचान खोने के कगार पर
शाही हम्माम आगरा के इतिहास और वास्तुकला का एक अनमोल हिस्सा है। यह स्थल न केवल मुगलकालीन शिल्प कौशल की झलक देता है, बल्कि उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को भी दर्शाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, आज यह स्थल उपेक्षा और संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान खोने के कगार पर है। स्थानीय प्रशासन और नागरिकों की उदासीनता ने इसे खतरनाक स्थिति में पहुंचा दिया है। अब ये सम्पत्ति निजी हाथों में चली गई है और जिस कारण ये जल्दी ही गिराए जाने के कगार पर हैI
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